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दो गज दूरी, बहुत जरूरी, स्लोगन नहीं औचित्य का है पैगाम : आचार्यश्री विजयराजजी महाराज

हरमुद्दा
रतलाम,8 मई। औचित्य का दृष्टिकोण अपनाने वाला कई विकृतियों से बचता है। उसके जीवन में कई विसंगतियां प्रविष्ठ नहीं होती। कोरोना महामारी के इस संकटकाल में औचित्य का परिपालन आवश्यक ही नहीं अनिवार्य बन गया है। दो गज दूरी, बहुत जरूरी ये स्लोगन ही नहीं अपितु औचित्य का पैगाम है। इस औचित्य का जो भी परिपालन कर रहे है, वो दूसरों का हित बाद में और अपना हित पहले कर रहे है।
यह संदेश शांत क्रांति संघ के नायक, जिनशासन गौरव प्रज्ञानिधि,परम श्रद्धेय आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी महाराज ने दिया है। सिलावटों का वास स्थित नवकार भवन में विराजित आचार्यश्री ने धर्मानुरागियों के लिए प्रसारित धर्म संदेश में कहा कि औचित्य की परिधि में रहकर मानव उच्चता और श्रेष्ठताओं को प्राप्त करता है। इस परिधि का जो उल्लंघन करता है, उसके जीवन में अनेक तरह की आपत्तियां उत्पन्न होती है। औचित्य का विवेक जीवन को सदाबहार बनाता हैं। इस विवेक से किए गए कार्यों का परिणाम कभी बुरा नहीं आता। आज के जमाने में कोई भी व्यक्ति अपना अहित नहीं चाहता। सब अपना हित चाहते है और उसके लिए सतत सजग,जागरूक और लालायित रहते है। इस लालसा की पूर्ति औचित्य के पालन पर निर्भर करती है। समझदारी इसी में कि व्यक्ति कभी औचित्य की सीमा का उल्लंघन नहीं करे। अनुचित कार्य का समर्थन करना औचित्य परिधि के बाहर है, क्योंकि एक अनुचित कार्य को सहारा देने से अनेक अनुचित कार्यों के द्वार खुलते है। वे अनुचित कार्य ही सारी अव्यवस्था और अराजकता पैदा करते है। बुराईयां इसीलिए हावी और प्रभावी रहती है कि लोग औचित्य का महत्व नहीं समझते।

तो वे उल्लंघन नहीं करेंगे औचित्य की सीमा का

आचार्यश्री ने कहा कि शिक्षा जगत में प्रारंभ से यदि बच्चों को औचित्य के मूल्य व महत्व समझाएं जाए, तो बड़े होने पर वे कभी औचित्य की सीमा का उल्लंघन नहीं करेंगे। उनका जीवन सकारात्मक और सृजनात्मक बना रहेगा। औचित्य का विवेक ही सारे सृजन का उदगम स्थल है। अच्छाईयों को अपनाने में व्यक्ति को कभी संकोच नहीं करना चाहिए। अच्छाईयां कल भी अच्छी थी, आज भी अच्छी है और कल भी अच्छी ही रहेगी। ये त्रैकालिक सत्य है। अच्छाईयों को अपनाने में संकोच करना औचित्य की उपेक्षा करना है। संघर्ष हो या समझौता किसी में भी व्यक्ति को अवसरवादी नहीं होना चाहिए। ऐसे समय औचित्य का पालन होगा, तभी औचित्य की समझ सही रास्ते पर गतिशील रहेगी।

काफी महत्व है औचित्य का

आचार्यश्री ने कहा कि जहां विरोध के लिए विरोध और समर्थन के लिए समर्थन होता है, वहां औचित्य का अतिक्रमण हो जाता है। अतिक्रमित औचित्य, औचित्य नहीं रहता। वह अनेक तरह के अनाचारों का जन्मदाता बन जाता है। विरोध और समर्थन में बौद्धिक जागरूकता जरूरी है। एक ने विरोध किया और उसके पीछे सबने विरोध स्वर बुलंद कर दिया, तो यह औचित्य नहीं है। औचित्य का जितना महत्व है, उतना किसी को संतुष्ट करने का नहीं है। तुष्टिकरण की नीति औचित्य की परिधि का उल्लंघन करवा देती है। इससे सबकों बचना चाहिए। यदि आत्मा साक्षी दे कि जो कार्य कर रहे है, उसमें औचित्य है और वह दूसरों के विकास में सहयोगी है। उससे दूसरों का भला होगा और स्वयं की आत्मा का भी हित निहित है, तो उस औचित्य के पालन से कभी मुंह नहीं मोडना चाहिए। ऐसे औचित्य का पालन पूरी शक्ति, क्षमता और योग्यता के साथ करना चाहिए।

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