सभी संस्कारों से बड़ा है शब्दों का संस्कार : आचार्यश्री विजयराजजी महाराज

हरमुद्दा
रतलाम,11 मई। शांत क्रांति संघ के नायक, जिनशासन गौरव, प्रज्ञानिधि श्रद्धेय आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी महाराज ने जीवन व्यवहार में अच्छे शब्दों का प्रयोग करने पर बल दिया है। उनके अनुसार अच्छे शब्द नरक बने जीवन को स्वर्ग बना देते है। ओछी प्रकृति के लोग ही ओछे शब्दों का प्रयोग करते है। जिनकी प्रवृत्ति अच्छी होती है, वे कभी अपने मुंह से ओछे शब्दों का इस्तेमाल नहीं करते। ओछे शब्द शत्रुता बढातें है, वहीं अच्छे शब्द आपसी मित्रता में वृद्धि करते है। उनसे पारस्परिक शांति, समाधि, सौहार्द भाव और सौम्यता बनी रहती है।
आचार्यश्री ने धर्मानुरागियों के लिए सिलावटों का वास स्थित नवकार भवन से धर्म संदेश प्रसारित कर कहा कि शब्दों का संस्कार जीवन के सभी संस्कारों से बड़ा होता है। मनुष्य के लिए मितभाषी और मृदुभाषी होना सम्मान की बात है। व्यर्थ ही, कुछ भी, समय-असमय, सम्बद्ध-असम्बद्ध बोलते रहने में व्यक्ति की शोभा नहीं है। वचन शक्ति, अन्य शक्तियों की तरह एक महान शक्ति है, जो इस शक्ति का महत्व और मूल्य समझते है, वे अधिक नहीं बोलते। ज्यादा बोलने वाले की महत्वपूर्ण बात भी महत्वहीन बन जाती है। ऐसे व्यक्ति की बात को कोई गंभीरता से नहीं लेता और कभी वह अच्छी और सच्ची बात भी बोले, तो लोग उसे बकवास समझकर सुनी-अनसुनी कर देते है। ऐसा व्यक्ति उपहास का पात्र बन जाता है। कोरोना के इस संकटकाल में हर व्यक्ति को अपनी वचन शक्ति की महत्ता को पहचानना चाहिए। इसके सार्थक और सम्यक उपयोग की दिशा में जागरूक होना चाहिए।

IMG_20200505_180025

शब्द ही व्यक्ति के चरित्र का दर्पण

उन्होंने कहा कि वाक चातुर्य, चतुर मानव की पहचान है। वह विवेक की आंख को खुला रखता है। इसी कारण वह कभी गलत वचनों का प्रयोग नहीं करता। इससे उसे बोलने के बाद कभी पश्चाताप नहीं होता और किसी के सामने क्षमा भी नहीं मांगना पड़ती है। बोलो तो पहले तोलो, इस नीति पर चतुर पुरुष चलता है। असम्य शब्दों का प्रयोग वे ही करते है, जिनका चरित्र छिछला होता है। चरित्रनिष्ठ व्यक्ति के शब्दों का प्रयोग संयत होता है। होते है। अर्थ और पदार्थ के अभाव में व्यक्ति उतना दुखी और परेशान नहीं होता, जितना वह ओछे एवं गलत शब्दों का प्रयोग करके होता है। गृह कलह और पारस्परिक क्लेश में शब्दोंकी बहुत बडी भूमिका होती है। एक शब्द घर-घर में कलह पैदा कर देता है, तो एक शब्द ही उत्पन्न कलह को समाप्त कर देता है। इसलिए अपने शब्दों के प्रति जागृत चेतना रखों। जागृत चेतना जीवन को आध्यात्मिक मूल्यों के अनुरूप ढालती है।

सत्य की साधना हैं शब्द

आचार्यश्री ने कहा कि जो शब्द स्वयं को अप्रिय और प्रतिकूल लगे, जिनसे स्वयं के भीतर पीड़ा पैदा हो, ऐसे शब्दों का प्रयोग दूसरों के प्रति नहीं करना, यह शब्द सत्य की साधना है। वाक चातुर्य बुरा नहीं होता, वह बुरा तो तब बनता है, जब उसमंे कुटिलता, कपट और वंचना जुड जाती है। सामाजिक और पारिवारिक जीवन को समरस बनाए रखने के लिए वाक चातुर्य जरूरी है। अच्छे शब्दों के प्रयोग से आहत हो राहत मिलती है, जबकि बुरे शब्द नई नई समस्याएं खडी कर देते है। उन्होंने कहा कि धन, वैभव, सत्ता से ही व्यक्ति सम्मानित नहीं होता। सम्मान की प्राप्ति तो अच्छे शब्दों के उच्चारण से होती है। अच्छे शब्दों का महत्व जो नहीं समझता,वह सम्पन्न होकर भी दरिद्र, पढालिखा होकर भी अनपढ और विद्वान होकर भी मूर्ख रह जाता है। ऐसा व्यक्ति अपना विश्वास नहीं जमा पाता और अपनी छवि को भी उज्जवल नहीं बना पाता है। शब्दों के संसार में मैत्री है, अहिंसा है, विशुद्धि है और तनावों का विसर्जन है। ऐसे संसार को अपनाने वाले का ही जीवन सुख पूर्वक बनता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *