आग लगी है तुम्हारे भीतर
डॉ. मुरलीधर चाँदनीवाला
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आग लगी है तुम्हारे भीतर
तो ईधन की लकड़ियाँ भी तैयार हैं इधर ,
तुम उतर पड़े हो मैदान में
तो हम सब तुम्हारे पीछे ।
ये आग और ये ईधन
कहाँ खपाओगे , जहाँपनाह !
यह साफ-साफ बता दोगे
तो हवा तय करेगी
कि लपटें किधर उठेंगी ,
साफ-साफ बता दोगे
तो तय होगा कि शेर मरेंगे
या गीदड़ मरेंगे आग में जल कर।
आग लगी है तुम्हारे भीतर
तो अच्छी खबर है जहाँपनाह !
युद्ध कौन सा लड़ोगे ?
बिगुल कहाँ बजेगा ?
रणभूमि कौन सी होगी ?
यह साफ-साफ बता दोगे
तो खून तेजी से दौड़ने लगेगा
तुम्हारी तरफ ,
सिंहासन की जड़ें तो फिर सींच लेंगे ,
नौजवान झंडे फिर उठा लेंगे ,
दो मुँह मत रखना जहाँपनाह !
आग लगी है तो इसे बुझने मत देना।
आग लगी है तुम्हारे भीतर
तो उसे हवा में घुल जाने देना ,
आग लगी है तुम्हारे भीतर
तो लपटें उठने देना आसमान तक,
आग लगी है तुम्हारे भीतर
तो परवाह मत करना उन खेलों की
जो जीतते -हारते रहते हो
कभी यहाँ -कभी वहाँ ,
आग लगी है , बवंडर उठा है
तो वह सब करने का साहस दिखाना
जिसके लिये आतुर है माँ ,
यह मातृभूमि
और सवा अरब जलती मशालें ।