दस हजार महिलाओं ने मिलकर बदली मध्य प्रदेश के गांवों की तस्वीर
🔲 एक लाख से ज्यादा दीवारों पर महिलाओं द्वारा की गई पेंटिंग में बखूबी चित्रित होता है आसपास का पर्यावरण
🔲 नदी, पहाड़, रास्ते, पेड़, हिरन, बेल बूटे और गणितीय आकार के जरिए दिया संदेश स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण का
🔲 शिवकुमार विवेक
बीजरी (शिवपुरी), मधुसूदनगढ़ (गुना), लिंगा(बालाघाट), चंदेसरा (उज्जैन), मोहरी (अशोकनगर), धामननिया (नीमच), सेमरखापा (मंडला) मध्यप्रदेश के किसी भी गांव में जाएंगे तो दीवारों पर बनी हुई तस्वीरें आपका ध्यान खींचेंगी। इन चित्रों में हैरत करने लायक ज्यादा कुछ नहीं है। हैरत हाथों के हुनर में है। ये हाथ इन्हीं गांव की महिलाओं के हैं। इन महिलाओं ने प्रदेश की एक लाख से ज्यादा दीवारों पर चित्रकारी की हैं।
यूनिसेफ ने अपने अन्तरराष्ट्रीय मीडिया पोर्टल पर मध्यप्रदेश की इस अनोखी पहल की जानकारी दी है। तीज-त्योहारों और मांगलिक अवसरों पर आंगन और दीवारों को सजाना, उन पर लेखन करना, उन्हें मांडणा और रंगोली सजाना ग्रामीण समाज का जाना-माना लोकाचार है। यह लोक आनंद के साथ सृजनात्मकता को बढ़ाता है। इस बार इसे एक अभियान के रूप में राज्य सरकार ने ग्राम्य वातावरण का हिस्सा बनाया। यह उसके स्वच्छता अभियान का एक हिस्सा था।
‘लोक चित्र से स्वच्छता संवाद’
चार महीने के इस अभियान का नाम ही था – ‘लोक चित्र से स्वच्छता संवाद’। अभियान के तहत दीवारों पर पेंटिंग की गई। ग्रामीण दीवारों पर चित्रकारी इस मायने में अलग है कि इसे गांवों की 10 हजार 230 आम महिलाओं ने बनाया है। इन तस्वीरों ने हमारे गांव में कला की चेतना को पुष्ट और पोषित किया है।
इन चित्रों में आसपास का पर्यावरण बखूबी चित्रित होता है। नदी है, पहाड़ हैं, रास्ते हैं, पेड़ हैं, हिरन हैं, बेल बूटे हैं और गणितीय आकार भी है। इनके जरिए स्वच्छता का संदेश दिया गया है।
दक्षता दिखा चुके जिम्मा संभालने की
कला और संस्कृति के उपकरण भी मन और वातावरण को शुद्ध करते हैं। इस दृष्टि से ये तस्वीरें गांव के पर्यावरण के लिए बड़ी उपयोगी हैं। बदरवास तहसील की गायत्री दागी ने बताया, “हम कुछ अच्छा कर रहे हैं, यह देखकर गांव के लोग बड़ा सहयोग करते हैं। हमारा संदेश इसी बहाने पहुंच जाता है।” यह काम महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों ने किया है। ये समूह पहले ही बड़े-बड़े जलाशय बनाने से लेकर गांव की व्यवस्थाओं को चलाने का जिम्मा संभालने की दक्षता दिखा चुके हैं। अब तक 1 लाख 4 हजार दीवारों पर महिला स्वसहायता समूहों की प्रशिक्षित महिलाओं ने लोकचित्रों के जरिए 4 करोड़ रुपए की कमाई की है।
तीन स्तर पर दिया गया प्रशिक्षण
उज्जैन जिले के चंदेसरा की 60 वर्षीय शांता बाटी ने बताया कि वह मूलत: मांडणा कलाकार हैं। 40 महिलाओं को सिखाकर उन्होंने लगभग इतने ही गांवों में चित्र बनवाए। वह बेटे के दोपहिया वाहन पर बैठकर गांव-गांव गई। इस अभियान को आकार देने वाले अतिरिक्त मुख्य सचिव मनोज श्रीवास्तव कहते हैं, “संस्कृति विभाग का उनका अनुभव पंचायत विभाग में काम आया। जिला स्तर से मानक स्तर की पाई गई 93,217 पेंटिंग का भुगतान महिलाओं के खातों में डीबीटी द्वारा 1,000 रुपए प्रति पेंटिंग के हिसाब से 5 करोड़ 32 लाख रुपए किया जाना है। प्रत्येक महिला पेंटर को 4,000 रुपए का अग्रिम भुगतान किया था।” इन्हे तीन स्तर पर प्रशिक्षित किया गया। राज्य स्तर पर सभी जिलों के दो-दो मास्टर ट्रेनर्स को यूनिसेफ द्वारा प्रशिक्षित कराया गया, जिसमें भारत भवन के ख्यात चित्रकार पाटीदार भी थे। इसमें पेंट और डिस्टेंपर का उपयोग किया गया है ताकि कम से कम यह पेंटिंग एक बरसात में नष्ट ना हो।
🔲 शिवकुमार विवेक, लेखक मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं