इसे क्या हुआ?

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🔲 आशीष दशोत्तर

इसे कुछ खिलाती क्यों नहीं? कितना दुबला हो गया है। सब्ज़ी खरीद रही एक महिला ने पास ही खड़ी एक अन्य महिला से कहा। यह इन दोनों महिलाओं के बीच की बातचीत थी और मैं सिर्फ एक श्रोता। दूसरी महिला जिसकी गोद में बच्चा था, वह भी सब्ज़ी खरीद रही थी। महिला के प्रश्न के जवाब में उसने कहा, आजकल न जाने इसे क्या हो गया है। कुछ खाता ही नहीं।

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पहली महिला बोली, कुछ अच्छी चीज खिलाओ। दूसरी महिला कहने लगी खिलाओ भी क्या, घर में कुछ ऐसा तो है नहीं तो इसकी ताक़त को बढ़ा दे। शायद उस महिला के कहने का आशय यह था कि घर में जो कुछ भी है , वह बच्चे के शारीरिक बढ़त के लिए बहुत कम या अपर्याप्त महसूस होती है। वो कहने लगी पिछले तीन माह में तो हालत और भी ख़राब रही। घर में वैसे ही खाने के लाले पड़े थे। बड़ी मुश्किल से गुज़ारा हो रहा था। बच्चा भी घर के घर में मुरझाने लगा था। कहीं बाहर ले जाना भी ख़तरे से खाली नहीं था। यह सब कारण रहे कि यह दिनोंदिन दुबला होता गया। पहली महिला बोली, इसकी शारीरिक स्थिति को देखकर मुझे चिंता होती है। इन दोनों महिलाओं की बात सुनकर सब्ज़ी बेचने वाली महिला बोल पड़ी, इनका बच्चा ही क्या, अभी तो सभी बच्चों की हालत ऐसी ही है। बेचारे घर के घर में मुरझा गए हैं । न तो ठीक से खाते हैं, न खेलते हैं, न हंसते हैं, न बोलते हैं। इस बुरे समय ने तो बच्चों से जैसे उनका बचपन ही छीन लिया।

संक्रमण काल के दौरान आए इस बदलाव की तरफ़ इन महिलाओं की चर्चा ने ध्यान आकृष्ट किया। यकीनन यह हमारी जिंदगी का एक बहुत बड़ा बदलाव है, जिसकी भरपाई करना बहुत मुश्किल है। यह बच्चे जो भविष्य का आधार है उनका इस दौर में इस तरह कुम्हलाना वाकई चिंतित करता है।

संक्रमण काल के दौरान बच्चों के हालत पर केंद्रित जो विश्लेषण अखबारों में पढ़ने को मिले वे और भी ज्यादा चिंतित करते हैं। ये विश्लेषण कहते हैं कि लॉकडाउन के दौरान बच्चों को ज़रूरत का आधा पोषण ही मिल पाया। जबकि गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को आधे से भी कम पोषण मिला। गैर-सरकारी संस्था ‘विकास संवाद’ ने प्रदेश के छह जिलों में 45 दिनों तक पोषण आहार का अध्ययन कर अपनी रपट में कहा कि बच्चों में ज़रूरत के हिसाब से 693 कैलोरी यानी 51 फीसद पोषण की कमी दर्ज की गई। गर्भवती महिलाओं में रोजाना 2157 यानी 67 फीसदी और स्तनपान कराने वाली माताओं में 2334 कैलोरी यानी 68 फीसद की कमी आई है। आंगनवाड़ी केन्द्रों से 3 से 6 साल उम्र के बच्चों को जो ‘रेडी टू ईट फूड’ मिलता था, उसमें भी लॉकडाउन के दौरान बेहद कमी आ गई। करीब 60 फीसद बच्चों को यह जरूरी आहार नहीं मिला। जाहिर है कि जब बच्चों को जरूरत के मुताबिक पौष्टिक आहार नहीं मिलेगा, तो वह पूरी तरह से मां के दूध पर ही आश्रित हो जाएगा। इससे स्तनपान कराने वाली माताओं के स्वास्थ पर भी असर पड़ा है। कुपोषण का सीधा संबंध मां के स्वास्थ्य से जुड़ा होता है।

इसके साथ ही बच्चों के जीवन में आए बदलाव पर भी गंभीरता से विचार किए जाने की ज़रूरत है । इस दौरान बच्चे न तो बाहर निकल सके, न खेल सके। रहा-सहा ऑनलाइन पढ़ाई ने इन्हें क़ैद कर दिया। जो बच्चे अभी हंसना और खेलना खिलाना भूल गए हैं, उन्हें पुनः अपने सहज जीवन से जुड़ने में कितना वक्त लगेगा यह कहा नहीं जा सकता।

🔲 आशीष दशोत्तर

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