यह मेरे शहर को हुआ क्या है? क्या सबको सांप सूंघ गया है?

🔲 हेमंत भट्ट

मनमानी, मनमानी, मनमानी… आखिर आम जनता पर प्रशासन इतनी मनमानी क्यों कर रहा है? समझ से परे है। मुद्दे कई हैं लेकिन यह मेरे शहर को हुआ क्या है? सब को क्या सांप सूंघ गया है? सब के सब मौन हैं, न जाने क्यों? शहर के सैकड़ों पार्षद, विधायक हैं। हारे या जीते, चाहे कितने ही साल पुराने क्यों ना हो? सब की चुप्पी क्यों हैं? आमजन के लिए मुखर क्यों नहीं हो रहे हैं? राजनीति करने वाले तो पार्टी विरोधी एजेंडे के तहत भीड़ के साथ ज्ञापन देकर अपने होने का एहसास करा रहे हैं। लेकिन तमाम सामाजिक संस्थाएं, तमाम हिंदूवादी संगठन के लोगों के मुंह में दही क्यों जमा हुआ है?

IMG_20200607_130355

शहरवासी कोरोनावायरस से तो बचने की जद्दोजहद 3 महीनों से कर रहे हैं। लेकिन सड़क पर वाहन चलाने वाले व वाहन पर बैठने वाले इन दिनों खासे परेशान हैं। यातायात विभाग ने जो गति अवरोधक लगाए हैं। वह बिल्कुल भी ठीक नहीं है। व्यक्ति विशेष को ऊपर के लेवल से लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से अमानत घटिया गति अवरोधक बना दिए गए और सड़कों पर लगा दिए गए। इससे चाहे आमजन की रीढ़ की हड्डी टूटे या गाड़ी खराब हो, इससे उनको कोई लेना देना नहीं। फिर भी शहर की जिम्मेदारी की डींगे हांकने वाले चुप बैठे हैं।  यह समझ में नहीं आता है कि यातायात विभाग दुर्घटना रोकने के लिए है या फिर दुर्घटना कराने के लिए? यातायात सिग्नल तो लगाने की बनती नहीं, सिग्नल का पालन कराने की बनती नहीं है। मेंटेनेंस के अभाव में लाखों के सिग्नल सड़ गए हैं। इसका कोई रखवाला नहीं।  बस गति अवरोधक लगाकर अपने होने की उपस्थिति जता देता है विभाग।

बिना व्यवस्था के विकास

माना कि विकास होना चाहिए मगर? बिना व्यवस्था के विकास। यह कौन सा तरीका है? पावर हाउस रोड का विकास हो रहा है। लेकिन ना तरीका है ना सलीका।
पूरा खोद दिया। जबकि एक साइड खोदी जाती और बनाई जाती। फिर दूसरी पर कार्य होता लेकिन ऐसा नहीं किया। डोंगरे नगर सहित अन्य कालोनी में जाने वाला मार्ग सुभाष नगर फाटक बंद होने के कारण शहर से कट गया है। वही सागोद रोड पर निर्माण कार्य होने के कारण भी डोंगरे नगर जाने का मार्ग अवरुद्ध है। सैलाना बस स्टैंड वाला मार्ग अभी 30% मलबे में अतिक्रमित है। आमजन परेशान हैं, मगर शहर के यातायात विभाग को इससे कोई लेना देना नहीं है। नहीं जिम्मेदारों ने इसकी कोई रणनीति बनाई की यातायात सुगम कैसे होगा? जबकि इंदौर में भी ऐसे ही विकास हुए हैं, लेकिन वहां पर कभी भी यातायात अवरुद्ध नहीं हुआ। नहीं, लंबे लंबे जाम लगे। आखिर यह सीखते क्यों नहीं है? ठेकेदार अपनी मनमर्जी चला रहे हैं। यातायात अव्यवस्था का शिकार हो रहा है लेकिन जिम्मेदार चालानी वसूली में तल्लीन हैं। जब सभी काम कलेक्टर को ही देखना है तो फिर संबंधित विभागों के मुखिया क्या करेंगे उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं बनती?

कब तक रेफर के नाम पर गवाएंगे जान

जिला प्रशासन स्वस्थ होने वालों को ताली बजाकर विदाई दे रहा है। यह औपचारिकता का सिलसिला कब तक चलता रहेगा पता नहीं, मगर चिकित्सा के नाम पर जीवन से जूझने वाले रेफर के नाम पर कब तक मौत को गले लगाते रहेंगे। उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। चिकित्सकों ने तो एक संकल्प ले लिया है। वे हाथ नहीं लगाएंगे तो नहीं लगाएंगे बस। नहीं उपचार करेंगे। मेडिकल कॉलेज का होना और ना होना कोई मायने नहीं रखता। आखिर कब तक उपचार के लिए रतलाम से इंदौर रेफर किया जाता रहेगा और उपचार की अपेक्षा में कब तक दम तोड़ते रहेंगे? इन अनुत्तरित प्रश्नों के जवाब कब मिलेंगे, कोई पूछने वाला नहीं है?

पुकारते हैं मूक पशु

IMG_20200628_134052

शहर के पटरी पार क्षेत्र में बिजली के खंभों से उतरने वाले करंट ने मूक पशुओं की जान ले ली तो, घायल कर दिया। कभी सज्जन मिल क्षेत्र, कभी विरियाखेड़ी तो, कभी टाटानगर। मूक गाय, सांड, बंदर करंट के शिकार होते रहे। इस मुद्दे पर ने जिला प्रशासन ने न तो संबंधित विभाग के अधिकारी को जिम्मेदार ठहराया, नहीं कोई कार्रवाई हुई। हां, यह जरूर हुआ कि लाइट जरूर निकलवा दी। यह तो कोई निराकरण नहीं हुआ। करंट लगता रहा, मूक जानवर मरते रहे। हिंदूवादी संगठन के जिम्मेदार कान में तेल डालकर सोते रहे। किसी ने इस मुद्दे पर आवाज नहीं उठाई। समाजसेवी संस्थाओं का तो बस मास्क बांटने और फोटो खिंचवाने तक का ही एजेंडा है वर्तमान में।

किसका है शहर

परिवार होता है तो उसका एक मुखिया भी होता है। मुखिया अपनी जिम्मेदारी का पूरा निर्वाह करता है। मुखिया का पूरा नियंत्रण रहता है। यदि मुखिया ही अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं करता है तो परिवार टूटने में देर नहीं लगती या फिर परिवार के सभी मनमानी करने में स्वतंत्र हो जाते हैं। ठीक ऐसा ही शहर के साथ भी हो रहा है। शहर भी शहरवासियों से ही बना है लेकिन मुखिया की जिम्मेदारी का निर्वहन करने वाले कहां चले गए हैं, कोई नहीं जानता? जिम्मेदारों ने तो बस यही ठान लिया है। अपन अपनी मस्ती में, आग लगे बस्ती में। शहरवासी असुविधाओं में भी मौन धारण किए हुए हैं। चाहे विधायक अभी के हो या पहले के, शहर की दुर्दशा पर दोनों ही मौन है। मास्क लगाने का मतलब यह तो नहीं कि शहर के लिए कोई बोलेगा ही नहीं। अपना मुंह खुलेगा ही नहीं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *