शाजापुर की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक विरासत को मिलना चाहिए संरक्षण : संतोष शर्मा
🔲 नरेंद्र गौड़
साहित्य को सांस्कृतिक विरासत के मामले में शाजापुर जिला अत्यंत समृद्ध रहा है। यहीं कि कवियत्री संतोष शर्मा ने बताया कि बहुत कम लोगों को जानकारी होगी कि प्रखर पत्रकार प्रताप भाई और किशोर भाई द्विवेदी की कर्मस्थली भी यह नगर रहा है। यहीं गजानन माधव मुक्तिबोध और प्रभाकर माचवे जिले की तहसील शुजालपुर के हाईस्कूल में कुछ समय पढ़ा भी चुके है। इसके साथ यदि यह भी जोड़ दिया जाए कि जाने-माने व्यंग्यकार शरद जोशी यहीं की एक मुस्लिम लड़की इरफाना को साठ के दशक में भगा ले गए थे और उनसे शादी की। इस बात को लेकर नगर में खासा हंगामा मचा। जहां तक कि दंगा फसाद तक की नौबत भी आ गई थी। माच और तिलंगी तुर्रा नामक लोक नाट्य इस नगर के ग्रामीण क्षेत्रों में इतना अधिक लोकप्रिय था कि लोग रात से सूर्योदय तक इसे देखने के लिए डटे रहते थे।
श्रीमती शर्मा नगर की अत्यंत जागरूक लेखिका है। जिनकी अनेक कविताएं विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है। आकाशवाणी के विभिन्न केंद्रों से विगत कई वर्षों से उनकी रचनाओं का प्रसारण होता रहा है। इनका कहना है कि शाजापुर जिले की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित एवं समृद्ध किया जाना अत्यंत आवश्यक है।
बालकृष्ण शर्मा नवीन की नगरी होने के बावजूद उपेक्षित
श्रीमती शर्मा ने बताया कि इसी जिले की शुजालपुर तहसील के गांव भ्याना में प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और कवि बालकृष्ण शर्मा नवीन का जन्म हुआ। तारसप्तक प्रकाशन योजना में सक्रिय रहे अज्ञेय जी के परम मित्र स्व. प्रभागचंद शर्मा, भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कवि नरेश मेहता का भी जन्म इस नगर में हुआ। जाने माने पत्रकार एवं कवि विष्णु नागर का भी जन्म इसी शहर के नाग-नागिनी गली में हुआ।
श्रीमती शर्मा को मिल चुके अनेक पुरस्कार
श्रीमती शर्मा ने एमए, बीएड तक शिक्षा प्राप्त की है। इनकी प्रमुख विधा गीत, गजल, लेख आदि हैं। उन्होंने पहचान साहित्यिक पत्रिका, पर्यावरण मित्र एवं पंडित बालकृष्ण शर्मा नवीन पुस्तक का सम्पादन भी किया है। इन्हें महादेवी वर्मा अलंकरण, काव्य सरिता, रामकृष्ण बेनीपुरी, राजीव रत्न आदि पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। श्रीमती शर्मा स्थानीय सर्वब्राह्मण समाज की महिला अध्यक्ष, औदिच्य ब्राह्मण समाज की प्रांतीय अध्यक्ष, एकता ग्रुप की उपाध्यक्ष, संस्कृत प्रचार प्रसार समिति की सचिव एवं मप्र लेखक संघ की सक्रिय सदस्य हैं।
संतोष शर्मा की चुनिंदा कविताएं :-
जिंदगी ढूंढती हूं
सुबह-सुबह प्यालों में
झलकती है जिंदगी
ताजा-ताजा पवन के
झोंकों-सी लगती है जिंदगी
फिर धीरे-धीरे खिसकती
कुछ खोजने लगती है जिंदगी
विचारों के चक्रव्यूह में
उलझ जाती है जिंदगी
उधेड़बुन उलझन समस्याओं
समाधानों में गोते खाती जिंदगी
दिनभर भीड़भाड़ में धक्के खाती
बहुत थक जाती है जिंदगी
कभी कभी ऐसा लगता है
कि कहीं थम जाती है जिंदगी
कल फिर जिंदगी से मुलाकात होगी
यही सोचकर सो जाती हूं
मीठे-मीठे सपनों में खो जाती हूं।
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यह कैसी निराशा ?
यह कैसी निराशा
यह कैसा अंधेरा
अंधेरे से ही तो निकलता सवेरा
सुख-दुख तो जीवन के किनारे
झरना-सा बह चल इनके सहारे
मन में जीन की चाह जमा ले
और भूल जा अपने दर्द सारे
हौंसलों की उड़ान भर ले मन
और तोड़ दे उदासी का घेरा
ये कैसी निराशा
ये कैसा अंधेरा ?
ये नागिन-सी काली रात है तो
पूनम की उजियाली भी होगी
पतझड़ से क्यों घबराता है
सावन की ठंडी फुंहार भी होगी
मन में उम्मीदों के दीप जला ले
तो जीवन ही मुस्कुराएगा तेरा
ये कैसी निराशा ये कैसा अंधेरा
अंधेरे से ही तो निकलता सवेरा
डर का अंधेरा मिटा दे साथी
खुशियों का सवेरा आने वाला है
झंझावातों से क्या घबराना
तूफानों का दौर जाने वाला है
परीक्षा की घड़ियां तेरे सामने है
समाधानों से जीवन बचा ले अपना
ये कैसी निराशा ये कैसा अंधेरा
अंधेरे से ही तो निकलता सवेरा।
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परिणाम
हम तो विवादों में उलझ कर
बहुत पीछे छूट जाते हैं
और वर्तमान की घटनाओं
के परिणाम बहंुत दूर तक जाते हैं
चंद लम्हें गलतियां कर जाते हैं
और सजा सदियां भुगतती रहती हैं
जख्म तो भर जाते हैं किंतु
जहन में चिंगारियां सुलगती रहती हैं
और यही चिंगारियां
एक दिन शोले बन जाती हैं
हम तो विवादों पराए पैरों के सहारे
मंजिल तलाशते हैं लोग
हकीकत की चैखट से
दूर भागते हैं लोग
विध्वंसक प्रवृत्तियां
खंडहरों के ढेर लगा देती है और
इंसान मूक पाषाण बनकर रह जाते हैं।
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कामकाजी महिला
छोड़छाड़ कर घर की छांव
अपना दांव
कभी-कभी तो अपना गांव
वह सड़कों पर आती है
सुबह-सवेरे
जल्दी उठकर सब निपटा कर
चूल्हा, चौका, महरी बर्तन
झाड़ू पौछा धोबी धोबन
चाय नाश्ता टिफन लंच
और अतिथि भोजन
वृत उत्सव पर भोग छप्पन
कभी बचत की
अपनी खातिर बासी खुरचन
सुबह-सवेरे जल्दी उठकर सब निपटाकर
वह सड़कों पर आती है
पोल तार से तपती सड़कें
शोर शराबा सहती सड़कें
न सुनती न सुनाती सड़कें
ऐसी सड़कें लांघ फांद कर
थकती सांसे थाम-थाम कर
चेहरे पर ताजगी लाती है
और जब कमा के लाती है
तब कामकाजी कहलाती हैं।
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प्रेम के बंधन
प्रेम के बंधन होते कितने सुहाने
आओ हम भी द्वैष भुलाकर छेड़े तराने
पल दो पल की जिंदगी
पल दो पल का साथ है
मिल जुल के काट लो
जिंदगी सौगात है
क्यों हो रहे हो खुद से
ही बैगाने आओ
गिले शिकवे दूर हो
फांसले भी मिट जाए
ढाई अक्षर प्रेम के जो दिल में समा जाए
दो मीठे बोल से हो सपपन सुहाने
साथ कुछ न जाएगा
यादे रह जाएंगी
प्यार मोहब्बत की बातें
रह जाएंगी
रह जाएंगे मीठे अफसाने
आओ हम भी द्वैष भुलाकर छेड़े तराने
प्रेम के बंधन होते ….. ।
🔲 संतोष शर्मा, शाजापुर, मध्य प्रदेश