वक्र-चक्र

🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲

🔲 आशीष दशोत्तर

वह सीधे-सीधे दुकानदार से पूछ रहा था कि अपना बिगड़ा हुआ रोटेशन तुम कब ठीक कर पाओगे। दुकानदार उसकी बात को समझ रहा था और बार-बार यही कह रहा था ” यह चक्र तो अब बिगड़ गया हैं। इस बिगड़े हुए चक्र को मैं नहीं सुधार पाऊंगा। तुम चाहो तो अपना यह खाता चालू रखो अन्यथा इसे बंद कर दो।” वह बोला, ऐसे अगर सब अपना-अपना खाता बंद करवा लेंगे तो हमारा क्या होगा? हम तो घर ही बैठ जाएंगे। दुकानदार ने कहा, हम भी घर ही बैठे हुए हैं। यहां अभी कमाया, न कमाया बराबर है। वह सब उधारी चुकाने में ही जा रहा है।

1591157474801
दरअसल ये बातचीत एक कलेक्शन एजेंट और दुकानदार के मध्य हो रही थी। कलेक्शन एजेंट किसी निजी संस्थान का दिखाई दे रहा था, जो हर दिन आकर दुकानदार से पचास रुपए ले जाता है। पिछले तीन महीने में दुकानदार ने न तो दुकान खोली और न ही देने लायक कुछ पैसा था, इसलिए वह दे नहीं पाया।

एजेंट उससे पूछ रहा था कि पिछले तीन महीने में जो तुमने राशि नहीं दी है वह कब एडजस्ट करोगे। दुकानदार अपनी हालत सामने रख चुका था।
दोनों अपनी-अपनी जगह पर सही थे, मगर दोनों परिस्थिति के शिकार। एजेंट का कहना था कि वह हर दिन कलेक्शन कर जितनी राशि संस्था में देता है उस हिसाब से उसका वेतन उसे मिल पाता है। पिछले तीन माह में कलेक्शन का कोई काम नहीं हुआ इसलिए उसे उन तीन माह की कोई तनखा नहीं मिली। अब फाइनेंस कंपनी ने यह शर्त रखी है कि यदि तीन महीने का कलेक्शन तुम ले आते हो तो तुम्हें उन तीन माह का वेतन दे दिया जाएगा।
दुकानदार की मुसीबत यह थी कि वह अभी ठीक से कमाने भी नहीं लगा। जो कमा रहा है उसमें घर चलाने के साथ पिछले तीन माह में जो कर्जा उसने लिया है उसे चुकाने में जा रहा है। ऐसे में वह बचत कैसे करे। उसके बचत की गणित गड़बड़ा गई है। यह बचत उसके जीवन का बहुत बड़ा सहारा थी, जिसका उपयोग वह मुसीबत के समय कर लिया करता था।

अब बचाना तो दूर उसके हाथ में नगद भी नहीं बच रहा है। कलेक्शन एजेंट जिसका परिवार इसी डेली कलेक्शन पर चल रहा है उसका कहना है कि लॉकडाउन के दौरान रोज जमा करने वाले लोगों से कुछ मिला ही नहीं अलबत्ता लॉकडाउन खुलते ही लोगों ने अपनी जमा राशि भी कंपनी से निकलवा ली। सभी को ज़रूरत थी।

ऐसे में कंपनी के पास देने के लिए पैसा नहीं है। वह हमें वेतन कहां से दें। जमा पूंजी पर जो ब्याज था, उससे संस्था चला करती थी। इससे संस्था भी घाटे में आ गई है। यानी कलेक्शन एजेंट, दुकानदार , संस्था के अन्य कर्मचारी और इनसे जुड़े कितने ही लोगों का जीवन चक्र बिगड़ गया है। यह वापस कब अपने केंद्र के परित: घूमेगा, यह किसी को नहीं पता। तब तक दुकानदार, एजेंट, कंपनी और ऐसे तमाम लोग बेरोज़गार ही रहेंगे मगर इन्हें बेरोज़गार मानेगा कौन?

🔲 आशीष दशोत्तर

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *