ज़िन्दगी अब-41 : नसीहतें : आशीष दशोत्तर
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🔲 आशीष दशोत्तर
उनका मन खिन्न था। वे परेशान दिखाई दे रहे थे। उनकी व्यथा का कारण यही था कि आजकल संबंधों के अर्थ बदल गए हैं। रिश्ते पहले जैसे नहीं रहे और समय बड़ा ख़राब है। कहने को ये बातें पिछले कई दिनों से सुनी जा रही है, महसूस भी की जा रही है। इस तरह के संदर्भ पहले भी बहुत आ चुके हैं। मगर उनकी बातों में जो दर्द था, वह गौर करने लायक था।
वह कहने लगे कि अब किसी के यहां जाना भी अपना अपमान करने के समान हो गया है। किसी के यहां जाकर हम अपना अपमान कर ही रहे हैं इससे सामने वाले का भी अपमान होता है।
बताने लगे कि वह पिछले दिनों अपने मित्र के यहां पहुंचे तो मित्र ने सबसे पहले उनसे आने का कारण पूछा। उन्होंने कारण बताया कि बहुत दिन हो चुके थे, इसलिए आना हुआ। मित्र ने नसीहत दी कि इन दिनों बिना किसी विशेष काम के कहीं भी मत जाइए। हर बार मिलने वाले मित्र का यह व्यवहार उन्हें नागवार गुज़रा। उसके बाद दूसरी नसीहत मित्र ने दी कि आपने मास्क क्यों नहीं लगाया है। मित्र ने मास्क लगा रखा था। उन्होंने कहा कि लगा रखा था बस यहीं आकर खोला। मित्र ने इस पर भी नसीहत दे डाली कि मास्क को हमेशा लगाए ही रखें। कभी उतारे नहीं, ख़ासकर किसी से मिलते समय तो बिल्कुल नहीं।
तीसरी नसीहत तब मिली जब मित्र ने उन्हें घर में प्रवेश करने से पहले अपने हाथ सेनेटाइज़ करने को कहा। सेनिटाइजर की बोतल मित्र के घर के बाहर ही रखी थी। उन्होंने अपने हाथ साफ किए, फिर वे मित्र के उसी कक्ष में पहुंचे, जहां वे पहले भी कई बार आ चुके थे। इस बार उस कक्ष की रंगत बदली हुई थी। वह सोफे पर बैठने लगे तो मित्र ने कहा कि आप इधर कुर्सी पर बैठिएगा। आजकल आगंतुकों के लिए हमने यही स्थान निर्धारित कर रखा है। मित्र का यह व्यवहार उन्हें अजीब सा लग रहा था। मित्र के चेहरे पर न कोई उनके आने की खुशी, न कोई सत्कार। चाय – पानी की बात को छोड़ ही दीजिए। मित्र से मिल रही नसीहतों ने उन्हें वहां ज्यादा देर रुकने नहीं दिया । वे वहां से चलने लगे। जो मित्र उन्हें जाने से रोका करता था, उसने तत्काल नमस्कार कर लिया।
अपनी व्यथा बताते हुए वे काफी व्यथित थे।उन्हें इस स्थिति से उबारने की कोशिश करते हुए मैंने कहा, इसमें आपके मित्र ने कुछ ग़लत नहीं किया। यह समय ही ऐसा है। एहतियात बरतने की ज़रूरत है। वे कहने लगे, गम इस बात का नहीं है कि उसने ऐसा व्यवहार किया और यह सब मेरे साथ हुआ। मुझे तकलीफ़ इस बात की हुई कि व्यक्ति के व्यवहार में कितना रूखापन आता जा रहा है। कल तक लोगों के बीच में जो आत्मीयता थी, वह संक्रमण काल ने खत्म कर दी है । यही हाल रहा तो हमारे संबंध और रिश्ते कितने दिन रह पाएंगे? उनकी आवाज़ में जो पीड़ा थी उस पीड़ा को वे अकेले ही नहीं भोग रहे थे। आप और हम सभी इस वक्त इस पीड़ा से दो-चार हो रहे हैं।
🔲 आशीष दशोत्तर