ज़िंदगी अब-52 : वक़्त का डर : आशीष दशोत्तर
वक़्त का डर
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🔲 आशीष दशोत्तर
‘ अब तो हम पर भी लिखिए। हम भी आपके पात्रों की श्रेणी में आ गए हैं।’ बीच सड़क पर अपनी कार से झांकते हुए उन्होंने यह बात कही। उनकी बात सुन अपनी मोटरसाइकिल एक तरफ लगा कर मैं रुका तो वह भी रुक गए। कहने लगे , अब तो आपको हम पर भी कुछ लिखना ही पड़ेगा। मैंने कहा, ऐसा क्या हो गया। आप तो हमेशा हमारे लिखे हुए में कुछ न कुछ मीन मेख निकाला करते थे।
वे कहने लगे, अभी मेरी कार में जो गाना बजाता हूं पहले उसको सुनिए । यह कहते हुए उन्होंने अपने कार में गाना बजाया। गाना फिल्म वक्त का था जो कह रहा था, “आदमी को चाहिए, वक्त से डर कर रहे। कौन जाने किस घड़ी वक्त का बदले मिज़ाज।” गाना सुनाने के बाद वे कहने लगे, इस गाने का अर्थ तो मुझे अब महसूस होने लगा है। वाकई इस वक्त ने तो डरा ही दिया है।
वे शहर के उद्योगपतियों की श्रेणी में आते हैं। मध्यम और लघु उद्योग संचालित करते हैं। मगर इन दिनों उनकी हालत ठीक वैसी ही है जैसे उनके श्रमिकों की। अक्सर कमज़ोर वर्ग के लोगों पर मेरे लिखे हुए पर उनकी टिप्पणी रहा करती है कि आप कितना ही लिख लें, इन लोगों का मुक़द्दर नहीं बदलने वाला। लेकिन आज वही कह रहे थे कि अब तो हमारी हालत भी इनके जैसी हो गई है ।
उनकी हालत देख मुझे बहुत आश्चर्य हुआ। इस वक्त ने उनका ह्रदय परिवर्तन कर दिया या फिर वह मजबूरी में यह बात कह रहे हैं। बताने लगे कि उनकी यूनिट इन दिनों बड़े संकट से गुज़र रही है । मजदूर बहुत कम हैं। जो है वे भी असुरक्षा के डर से काम पर नहीं आ रहे हैं। ऐसे में यूनिट संचालित करना बहुत मुश्किल हो रहा है। ऊपर से टैक्स ,बिजली के बिल, कच्चे माल की कमी, सुरक्षा के प्रबन्धों पर खर्च और कई सारी दिक्कतें हैं। हमारी दिक्कतों को आप अखबार में पढ़ ही रहे हैं। जैसे-तेसे गाड़ी चला तो रहे हैं लेकिन अब तो हमें लगने लगा है कि वाकई हालत बहुत ख़राब हैं। अगर यही हाल बने रहे तो हमें संभलना बड़ा मुश्किल हो जाएगा।
मैंने कहा, आप इतने सक्षम होते हुए जब यह बात कह रहे हैं तो जरा सोचिए वे लोग जो बिल्कुल असहाय हैं और जो आप जैसे जिम्मेदारों के बल पर अपनी ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं, उन पर इस समय क्या बीत रही होगी।
वे कहने लगे, इस दौर के बाद उनके दर्द को भी मैंने समझना सीख लिया है। वाकई इतना बुरा दौर कभी नहीं देखा। ईश्वर न करे ऐसा दौर किसी को देखना पड़े।
यह कहते हुए वे अपनी कार में वही गाना बजाते हुए चले गए। वक्त ने किस-किस को किस-किस तरह के डर से गुज़ार दिया है, यह सोच कर भी रूह कांप जाती है।
🔲 आशीष दशोत्तर