🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲

🔲 आशीष दशोत्तर

बातचीत और व्यापार के तौर तरीके उसे नहीं आते। यह जरा सी देर में समझ आ चुका था । उससे केले के भाव पूछे तो पहले उसने 30 रूपए किलो बताए।आदत के मुताबिक ग्राहक ने कहा कि यह तो बहुत ज्यादा है ,तो कहने लगा जो कम लगे वह दे दो ।

1591157474801
उसे अपने केले बिक जाने की चिंता थी। यह चिंता भी थी कि उस बिक्री से वह कुछ कमा ले।
उसके व्यापार के इस तरीके को देखकर लगा कि वह इस क्षेत्र में नया-नया उतरा है ।पूछा तो बताने लगा कि जीवन में कभी फल बेचने का काम किया ही नहीं। इसलिए इस व्यापार के तौर तरीकों से बिल्कुल वाकिफ नहीं है। यह तो पिछले कुछ महीनों से घर में फाक़ों की स्थिति होने से करना पड़ रहा है। जो काम करते थे वह रहा नहीं। जो काम करना चाहते हैं वह मिल नहीं रहा है। इसलिए एक साथी ने सलाह दी कि फल बेचने का काम करो। इसलिए गाड़ी लगा ली। आज इस धंधे का पहला दिन है शाम को पता चलेगा कि क्या खोया और क्या पाया।
इस धंधे के तौर-तरीके पता नहीं होने से मोलभाव करना भी नहीं आता है ।जिस मित्र ने यह धंधा शुरू करने की सलाह दी थी उसने कहा था कि अपना माल बिक जाए यह ज़रूरी है । लोग ताज़ा माल ही खरीदते हैं। अगर यह केले कल बेचेंगे तो इतने दाम भी नहीं मिलेंगे। इसलिए मेरी कोशिश है कि इसे आज ही बेच दूं।
इस धंधे में कितना फ़ायदा होगा या नहीं इस बारे में मैंने अभी सोचा नहीं है।  वह बता रहा था कि तीन महीने पहले तक सब कुछ ठीक चल रहा था । अचानक संक्रमण के हालात होने से सब कुछ बिगड़ गया।
जो काम कर रहा था वह प्रतिबंधों के तहत हो नहीं पा रहा है। जिन कार्यों को करने की उसने कोशिश की उसमें उसे कोई सफलता नज़र नहीं आई। इसलिए थक हार कर यह काम शुरू किया है।
मैंने कहा, काम कोई भी बुरा नहीं होता। बस करने की लगन चाहिए। वह कहने लगा , लगन तो बहुत है मगर जब पेट भरने की चिंता हो तो कमाना महत्वपूर्ण हो जाता है और लगन कहीं पीछे रह जाती है। इसलिए अभी कोशिश कर रहा हूं कि कुछ कमाऊं ताकि अपनी गृहस्थी को फिर से पटरी पर लगा ला सकूं।
उसने नए व्यापारी की यह बातें सुनकर  उन लोगों का दर्द भी उभर आया जो इस दौर के शिकार होकर अपने मूल काम से विमुख हो गए हैं और यहां- वहां कुछ काम कर अपना गुज़ारा करने की कोशिश कर रहे हैं।

🔲 आशीष दशोत्तर

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *