🔲 नरेंद्र गौड़

पाषाणयुग से मनुष्य अपने मनोभावों की अभिव्यक्ति करता रहा है। जिसका उदाहरण भोपाल के निकट भीम बेटका में देखा जा सकता है, जहां बीसियों शैल चित्र आदिमानव की विभिन्न जीवनचर्या का चित्रण करते हुए चित्रित है। यह खोज का विषय हो सकता है कि उन दिनों मनुष्य ने किस प्रकार के रंगों से इन चित्रों की संरचना की थी। उस समय जैसे रंग तो आज भी दुर्लभ हैं। चित्रकला के क्षेत्र से युवा पीढ़ी इसलिए दूर हो रही है क्योंकि यह कला सीखने के पश्चात रोजगार के द्वार उतने नहीं खुलते जितने खुलने चाहिए। लेकिन व्यावसायिक क्षेत्र में चित्रकला में पारंगत हो चुके लोगों को कमाने खाने की काफी गुंजाइश है।

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शख्सियत : गजाला यासमीन

संभवतः इसी को ध्यान में रखकर रांची की गजाला यासमीन ने एक्रेलिक, एग शेल्स पेंटिंग और क्राफ्ट के क्षेत्र में खासी महारथ हांसिल की है। उनकी कला की अनेक प्रदर्शनियां रांची तथा अनेक शहरों में आयोजित हो चुकी है।

कला के अनेक मर्मज्ञ भी थे मौजूद

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गजाला यासमीन की एक ऐसी ही पेंटिंग विगत दिनों रांची के आड्रे हाउस में आयोजित की गई थी। इस दो दिवसीय प्रदर्शनी में गजाला द्वारा निर्मित कलाकृतियों का प्रदर्शन किया गया। जिनमें ग्लास, एक्रेलिक एवं एक शेल्स पेंटिग्स के अनेक नमूने शामिल थे। दर्शकों की अपार भीड़ दो दिनों तक उमड़ती रही और इनमें अनेक कला मर्मज्ञ भी थे।

सात साल की उम्र से रंगों से दोस्ती

ज्ञात रहे कि 7 साल की उम्र से गजाला ने अपनी कापी, किताब को पेन पेंसिल से रंगना शुरू कर दिया था। बाद में उन्होंने अपने अभिभावकों के प्रोत्साहन से फाइन आर्ट में डिग्री हासिल की और रंगों के साथ उनकी दोस्ती स्थाई हो गई।

विभिन्न रूपाकारों को चित्रित करना गजाला की खासियत

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विगत बीस वर्षों से गजाला यासमीन जिंदगी के विभिन्न रूपों को अपने केनवास पर उतार रही है। रांची में आयोजित इस प्रदर्शनी का शुभारंभ वरिष्ठ लोक गीतकार, गायक, पद्मश्री मधु मंसुरी हंसमुख और वरिष्ठ चित्रकार ताराशंकर दास ने किया था। जीवन के विभिन्न रूपाकारों को चित्रित करना गजाला की खासियत है। ऐसा नहीं कि गजाला का काम बहुत आसान है। वरन इसे सीखने में खासा परिश्रम तथा धन की आवश्यकता होती है। आम गरीब घरों के बच्चे तो इस प्रकार की कला सीख ही नहीं सकते। चर्चा के दौरान गजाला ने इस प्रतिनिधि से कहा कि सरकार को चाहिए कि चित्रकला के विभिन्न रूपाकारों को प्रोत्साहित करें। चित्रकारों को सर्वश्रेष्ठ शिक्षा मिलनी चाहिए।

विदेशों में चित्रकारों को रोजगार के बेहतर अवसर

इसके साथ ही चित्रकला को रोजगार से भी जोड़ा जाना आवश्यक है। साथ ही चित्रकला को पाठ्यक्रम में भी अनिवार्यतः शामिल किया जाना चाहिए। विदेशों में चित्रकारों को बेहतर रोजगार के अवसर मिलते हैं। जबकि भारत में ऐसा नहीं है। अनेक जाने माने चित्रकार आज भी आर्थिक परेशानियों का सामना कर रहे हैं।

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