सागर की साहित्यकार डॉ. चंचला दवे की शिक्षक दिवस पर रचना : ख्वाब
ख्वाब
शिक्षक दिवस पर विशेष
🔲 डॉ. चंचला दवे
यह मेरे सबसे प्यारे
छात्र की कक्षा है
हर रोज की तरह
वह आज भी
फटी चप्पल मट मेले से कपडे
पहनकर,
पांच मिनिट विलंब
से आया
उसने मेरी ओर,निहारा
और मैंने उसे
वह चुपचाप/हमेशा की तरह
सबसे पीछे की बैंच पर
बैठ गया
और पढने का ,बहाना कर
कापी में,खींचने लगा
आडी तिरछी रेखायें
जब मैंने उसे देखा
वह कुछ लिख नहीं
गिन रहा था
पैसे जो कमाये थे
उसने आज
वह बुन रहा था
मां की दवाई/बहन की फ्राक
भाई के जूते
बूढे पिता की लाठी
लगा रहा था हिसाब
फिर जैसे ही मैंने
उसे देखा
वह सकपकाया/और खडा हो गया
मैने भी देखकर/अनदेखा
उसका स्वाभिमान
मरने नहीं दिया
मैंने कहा तुम
उगते सूरज की आभा हो
प्रकाश हो,सुबह का
मां के जीवन की आशा
पिता की लाठी/बहिन का अरमान
भाई का सपना
बस तुम्हे पंख फैलावर
उड़ना है
और वह उडा बहुत ऊंचा
बहुत उंचा
उसने सितारों से सजाया
घर
अपने सपनों में भरे
रंग
और आज भी मुझे
इंतजार है
उसके लौटने का
और तो और
उसके ख्वाबों के सच होने का
🔲 डॉ. चंचला दवे, सागर म प्र