🔲 डॉ. विवेक चौरसिया

हमारे देश में कानून कितना अपंग है और दबंग कितने बेख़ौफ़, इसकी ताज़ा मिसाल एक दलित लड़की की लाश की शक़्ल में सम्भवतः इस वक्त दिल्ली से उत्तरप्रदेश के हाथरस के बीच सफ़र कर रही है।

FB_IMG_1601470488013

आज जब तथाकथित विश्व ह्रदय दिवस के नाम पर सुबह से भाई लोग दिल को सम्भालने के तरीके एक दूसरे को साझा कर रहे थे तब यह दिल तोड़ने वाली ख़बर आई कि दिल्ली के सफ़दरजंग अस्पताल में कल भर्ती कराई गई उस लड़की ने आख़िर दम तोड़ दिया, जिसे सामूहिक बलात्कार के बाद गाँव में दबंगों के चार आवारा लौंडों ने पहले ही मार-मारकर अधमरा कर दिया था।

IMG_20200905_123825

हाथरस कांड का शर्मनाक सच

अब तक आपने भी जान ही लिया होगा और नहीं जाना तो जानकर आप भी डर से सिहर उठेंगे और गुस्से से भर जाएंगे। इसी महीने की 14 तारीख़ को हाथरस के एक गाँव में खेत पर अपनी माँ के साथ काम कर रही एक 20 साल की लड़की को चार लड़कों ने दबोचा और हवस के जुनून में बुरी तरह नोच डाला। उनका पाप वह किसी को बता न सके इसलिए उसकी जुबान खींच ली और इंसाफ़ के लिए खड़ी न हो सकी, इस इरादे से उसकी रीढ़ की हड्डी तोड़ डाली। लड़की को मरा जान वे चारों कमीने पेंट पहनकर चलते बने और लड़की बेहोशी की हालत में इलाज़ की खातिर पहले स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र और फ़िर अलीगढ़ के बड़े अस्पताल ले जाई गई। हैवानियत के बाद से ही वह वेंटिलेटर पर थी और आज मर गई।

रौंद दिया इंसानियत को

इंसानियत को रौंद देने वाली इस वारदात की स्याह हक़ीक़त परत-दर-परत जिस क़दर सामने आ रही हैं, सुन-सुन कर सिर चकरा रहा है। काला और कटु सत्य यह कि पहले तो पुलिस ने पर्दा डालने की कोशिश में अपराधियों को पकड़ा ही नहीं और फिर जब हल्ला मचा तब सात-आठ दिन में एक-एक कर गिरफ्तारियां ली। मुख्य आरोपी दस दिन बाद पकड़ा गया और भारी जनाक्रोश के बीच सम्बंधित थाने के इंचार्ज को लाइन हाजिर कर चारों दरिंदों को जेल भेजा गया। प्रदेश की योगी सरकार ने बलात्कार के मुआवजे के रूप में पीड़ित ग़रीब परिवार के मुँह में दस लाख रुपए ठूँस दिए हैं ताकि लाश बन चुकी उनकी बेजुबान बेटी की तरह अब घर के बाक़ी लोग भी बेजुबान और लाश बन जाए। बदले में प्रदेश के ‘रामराज्य’ पर कलंक न लगे।

मौकापरस्त लोगों लगी हाथ बटेर

इस काण्ड के उछलने से काँग्रेस, समाजवादी, बसपा, आप समेत सारे मौकापरस्तों के हाथ सूबे की भाजपा सरकार के खिलाफ बटेर लग गई है। अखिलेश यादव और मायावती ने बयानों का विलाप शुरू कर दिया है और प्रियंका गाँधी इतने ग़म में है कि पीड़िता के घर मातमपुर्सी के लिए जाने की जल्दी में बैग बाँधकर तैयार खड़ी है।

एक बार फिर एक लड़की आबरू लूटकर लाश में तब्दील कर दी गई और अब सियासत के गिद्ध अपने दाँव के लिए पैंतरेबाजी पर उतारू हैं। हम आम भारतवासी क्या कहे, किससे कहे और कब तक कहे, समझ से परे हैं! निर्भया काण्ड से कठुआ तक और हैदराबाद से हाथरस तक, देश के चारों कोनों से बेटियों की चीखें ही चीखें हैं और हमारे हाथ हर बार बस बेबसी ही बेबसी।

कहाँ है रोमियो स्क्वाड

उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री की रोमियो स्क्वाड कहाँ है, पता नहीं। मगर इतना साफ़ है कि प्रदेश की सड़कों पर ज़िस्म के भूखे ‘रोमियो’ बेख़ौफ़ शिकार की फिराक में घूम रहे हैं और कानून के राज का दावा पूरी तरह पंचर है। कुछ ही दिन पहले बाराबंकी में 13 साल की दलित लड़की की रेप के बाद हत्या कर दी गई थी और हापुड़ में छह साल की बच्ची की बलात्कार के बाद आंखें फोड़ दी गई थी। गोरखपुर से शाहजहांपुर तक एक के बाद एक इस तरह की वारदातों में तेज़ी से इज़ाफ़ा हुआ है मगर योगी इन सबसे बेख़बर सूबे में फ़िल्म सिटी के निर्माण की क़वायद में व्यस्त हैं।

हाथरस काण्ड की हक़ीक़त

मैं उज्जैन से हूं, जहां पिछले दिनों कानपुर का बदनाम और पुलिसवालों का हत्यारा बहुचर्चित गुंडा विकास दुबे पकड़ाया था। उसके गिरफ्त में आते ही हम सब मन ही मन जानते थे कि रास्ते में ही उसके भागने की कहानी बताकर पुलिस उसे मौत के घाट उतार देगी, लेकिन हाथरस काण्ड की हक़ीक़त सुन हम केवल कसमसा रहे हैं। इस वारदात के अपराधियों को लेकर हममें से एक को भी वैसा पक्का यकीन नहीं है, जैसा विकास के मामले में यूपी से लेकर एमपी तक के जन-जन को था। इसलिए कि विकास दुबे की कहानी और थी और बेटियों की अस्मत लुटने की कहानियाँ और हैं। विकास का एनकाउंटर तय था मगर हाथरस के हवस के भेड़ियों का किसी हाल में तय नहीं है। देश ने निर्भया के हत्यारों को कानून का मज़ाक बनाकर सालों गुज़ारते देखा है, इसलिए हाथरस के भावी हश्र का हम बख़ूबी अंदाज़ लगा सकते हैं।

महिला आयोग को साँप सूँघा

हैरानी होती है कि फ़िल्मों में सक्रिय पायल घोष नाम की एक लड़की अनुराग कश्यप के खिलाफ मीडिया में अपनी इज्जत से छेड़छाड़ की बात भर करती है तो दो घण्टे के भीतर राष्ट्रीय महिला आयोग का बयान आ जाता है कि ‘हमने संज्ञान लिया है’ मगर देश में बेहिसाब बलात्कार और बेटियों के साथ बेरहमी पर आयोग को स्थायी साँप सूँघा रहता है। मानो कानून से लेकर सत्ता तक और आयोगों से लेकर अदालतों तक बातें तो बहुत हैं किंतु बेटियों की हिफाज़त, इज़्ज़त और इंसाफ़ के मुद्दे पर ईमानदारी कम और जुमले ही ज़्यादा हैं।

सिंहासनों पर बैठे लोग नपुंसक

दो दिन बाद गाँधी जयंती है। सोचता हूँ आज महात्मा गाँधी होते तो बेटियों की हालत देखकर अपनी अहिंसा भूल जाते। कह पड़ते, ‘मेरी बच्चियों! जिस देश की आज़ादी की ख़ातिर मैं कुर्बान हो गया, उस देश के सिंहासनों पर बैठे लोग नपुंसक हो चले हैं। बेहतर है तुम अपनी रक्षा के लिए मेरी लाठी ख़ुद ही थाम लो!’

🔲 डॉ. विवेक चौरसिया

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *