🔲 नरेंद्र गौड़

हिंदी कविता में नागार्जुन और रघुवीर सहाय दो ऐसे कवि हो चुके हैं, जिन्होंने भारतीय लोकतंत्र की तमाम विद्रूपताओं और विडम्बनाओं को नंगा कर दिया था। इन दोनों ने अपने-अपने स्वरों से कविता की पूरी भाषा ही बदल दी थी। वे उसे जनता की बोलचाल के करीब लाए और अपनी-अपनी मौलिकता के साथ नई व्यंग्य भंगिमा प्रदान की। ऐसे ही अनूठे और अति विश्वसनीय कवि स्व. शलभ श्रीरामसिंह भी हिंदी साहित्य की दुनिया में खासी शौहरत हासिल कर चुके हैं और आज भी उनकी कविताएं हिंदी साहित्य जगत में व्यापक रूप से पढ़ी तथा सराही जाती है। शलभजी ने नई कविता के अलावा गीत गजल की दुनिया भी अपना मुकाम हासिल किया और और शौहरत की दुनिया में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। उन्होंने लम्बा साहित्यिक जीवन जिया और आज भी भोपाल, विदिशा तथा गंजबासौदा में अनके प्रेमी उन्हें याद करते है। ऐसे ही युयुत्सावादी कवि शलभजी की बेटी प्रज्ञासिंह इन दिनों हिंदी तथा बांग्ला साहित्य की दुनिया में अपना नाम उजागर कर रही हैं।इसके साथ ही प्रज्ञाजी शलभ श्रीरामसिंह की विरासत को भी संजोए हुए भी हैं।

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साहित्य सृजन की प्रेरणा मिली मां से

कहना न होगा कि साहित्य रचना की प्रेरणा प्रज्ञाजी को अपने पिता शलभजी तथा माता स्व. कल्याणी सिंह से मिली। कल्याणीजी भी हिंदी तथा बांग्ला भाषा की जानी मानी लेखिका रही हैं। प्रज्ञाजी इन दिनों कोलकता में रहकर अध्यापन कर रही है। पालतू जानवरों के साथ समय बिताना और साहित्य रचना इनका शौक है। हालांकि प्र्रज्ञा का कोई कविता संकलन अभी नहीं छपा है। इसे लेकर इनका कहना है कि अभी वह अपनी रचनाओं का और परिष्कार करना चाहती हैं। इनका कविता कर्म न केवल प्रतिबध्द वरन आत्ममुग्धता से परे रहा है। इन दिनों वह ऐसी काव्यभाषा तथा मुहावरा अर्जित करने की कोशिश कर रही है जिसमें मुखरता कम लेकिन प्रामाणिकता अधिक हो।

प्रज्ञासिंह की चुनिंदा कविताएं

मैं नारी हूं

मैं नारी हूं
जिसे बेटे का जन्म नहीं होने पर
तुम आए दिन
दिया करते हो धमकियां
मैं नारी हूं
जिसे तुम चाय के बागानों में
दिन भर तपती धूप में
खटने के लिए भेज दिया करते हो

मैं नारी हूं
जिसे तुम चाय की पत्तियां
तोड़ते समय तुम उसे
बिना बात बिना वजह
धमकाते हो पगार काट लिए जाने का
हर बार उलाहना दिया करते हो
रात के अंधेरे में अपने
बिस्तर की शोभा बनाते हो

मैं नारी हूं
जिसे तुम अपने बच्चों को
सम्भालने के लिए अपनी
मजदूरी बचाने की
कोशिश में रहते हो
और वह तुम्हें लगातार
खुशियां देने की कोशिश में
घुटघुट कर मरा करती है
उसके बहते पसीने में
तुम्हें दिन के समय बदबू
और रात को खुशबू महसूस होती है

ध्यान से देखो
मैं नारी हूं
संहारकारिणी हूं
मैं काली हूं।

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यादें

यादे भी कभी मुझे
कभी अकेला नहीं करती
कभी पिता की गोद में
होती तो कभी मां की
झिड़कियों को
याद करती हैं याद

कभी बचपन की शरारत
कभी जवानी के
दिनों की गलतियां
यादें जो मेरी साथ चलती हैं

वह शादी का मंडप
वह ससुराल का आंगन
मां होने का अहसास
छोड़ना पति का दामन
यादें जो मुझे
अहसास दिलाती हैं
कोई नहीं है
लेकिन फिर भी सब कुछ है।

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मां

मैं मां हूं
एक बेटी की मां
जिसने मुझे जीना सिखाया
दर्द को सहना सिखाया
मौत से लड़ना सिखाया

अंधेरों में चलना सिखाया
जिंदगी क्या है यह भी बताया
स्वजन दुर्जन अपने पराए
झूठे सपने क्या हैं
यह सब मुझे अपनी बेटी ने बताया
मैं मां हूं
सिर्फ और सिर्फ एक मां।

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वह लड़की

एक प्यारी-सी लड़की
जो चुप-सी थी अकेली
मां के आंचल में पली थी
अब वह लड़की बड़ी हो चली है
मां के आंचल से निकलकर
अब उसे उड़ना है
लेकिन वह एक लड़की है
और उसे एक लड़के की
तलाश करना है।

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