सनसनीखेज दोहरे हत्याकांड के आरोपी रहे अधिकारी की कोरोना से मौत
🔲 दंत चिकित्सक डॉ. मुदगल की पुत्रियों प्रीति-निधि की 21 साल पहले गला काटकर की थी हत्या
हरमुद्दा
शाजापुर, 11 अक्टूबर। बहुचर्चित दोहरे हत्याकांड के आरोपी रहे अधिकारी आशीष बाथम की भोपाल के चिरायु अस्पताल में कोरोना वायरस के संक्रमण से मौत हो गई। 21 साल पहले शहर के दंत चिकित्सक की दो पुत्रियों की गला काटकर निर्दयतापूर्वक हत्या हुई थी। इस हत्याकांड के आरोपी को शाजापुर जिला कोर्ट से फाँसी की सजा दी गई थी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट से आरोपी को बरी कर दिया गया था।
नई सड़क पर स्थित उपकार लॉज के सामने जिला अस्पताल के शासकीय क्वार्टर में जिला अस्पताल में पदस्थ दंत चिकित्सक डॉ. आरए मुदगल अपनी पत्नी व दो बेटियां कु. प्रीति मुदगल (22) और कु. निधी मुदगल (17) के साथ रहते थे। हर दिन की तरह 8 अप्रैल 1999 की सुबह करीब 6.15 बजे डॉ. मुदगल अपनी पत्नी के साथ मार्निंग वॉक पर गए थे। इसी दौरान उनकी दोनों बेटियों प्रीति और निधि की बेरहमी से चाकूओं से गोदकर गला काटते हुए हत्या कर दी थी। मेडिकल रिपोर्ट में प्रीति के शरीर पर चाकू के तीन दर्जन घाव व निधि के शरीर पर 1 दर्जन घाव मिले थे।
2001 में सुनाई थी फांसी की सजा
इस हत्याकांड में पुलिस जांच में आशीष बाथम पिता हरिनारायण बाथम निवासी इंद्राभवन परिसर, प्रोफेसर कॉलोनी, भोपाल जो कि तत्कालीन समय में एमपी एग्रो भोपाल में असिस्टेंट मैनेजर होकर शाजापुर में पदस्थ था। इसको गिरफ्तार किया गया था। मामला शाजापुर कोर्ट में चला। यहां पर आशीष के खिलाफ मिले सबूतों के आधार पर शाजापुर जिला कोर्ट से 30 जून 2001 को फाँसी की सजा सुनाई गई।
सुप्रीम कोर्ट से हुआ बरी
इस मामले में आशीष बाथम ने हाईकोर्ट में अपील की थी। जहां पर सुनवाई के बाद फाँसी की सजा-ए-मौत को उम्रकैद में बदल दिया गया। बाद में सुप्रीम कोर्ट से मामले में आरोपी को बरी कर दिया गया था।
46 वर्षीय बाथम की कोरोना ने ले ली जान
सुप्रीम कोर्ट से बरी होने के बाद आशीष बाथम एमपी एग्रो से शासकीय आपूर्ति विभाग में अधिकारी के रूप में पदस्थ हो गया था। भोपाल में मप्र आपूर्ति अधिकारी संघ के प्रांताध्यक्ष आशीष बाथम को करीब एक माह पहले कोरोना संक्रमित होने के कारण भोपाल के चिरायु अस्पताल में भर्ती कराया गया। जहाँ बीती रात 46 वर्ष की आयु में उसकी कोरोना से मौत हो गई।
आज भी वो मंजर नहीं हटता आंखों से
डॉक्टर मुदगल ने बताया कि 21 साल पहले की वो दर्दनाक सुबह मैं कभी नहीं भूल सकता। जब मैंने अपनी दोनों मासूम लाड़ली बेटियों के क्षत-विक्षत शवों को घर में देखा था। आज भी वो मंजर मेरी आंखों के सामने से नहीं हटता। उम्र ढल चुकी है, लेकिन वो घटनाक्रम हर वक्त जेहन में बसा हुआ है। भगवान के घर देर है, पर अंधेर नहीं