वेब पोर्टल हरमुद्दा डॉट कॉम में समाचार भेजने के लिए हमें harmudda@gmail.com पर ईमेल करे मिलादुन्नबी पर विशेष : जब तुम शिक्षा का रास्ता अपनाते हो तो... -

🔲 नईम क़ुरैशी

मज़हब ए इस्लाम के अंतिम पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहू अलैहि व सल्लम की 1449 वीं यौमे पैदाइश का मुक़द्दस मौक़ा है। हर वर्ष की तरह इस ख़ास दिन को दुनियाभर के मुसलमान जश्ने ईद मिलादुन्नबी के रूप में मनाते हैं। मगर उनकी शिक्षा का असल अर्थ भूल जाते हैं। उन्होंने जो संदेश दिया है वह सिर्फ़ मुसलमानों के लिए ही नही विश्व की समस्त जाति और धर्म के मानने वालों के लिए है। इसमें शिक्षा ख़ासतौर पर महिलाओं की तालीम, समानता के अधिकार को ही आत्मसात कर लिया जाए तो स्वंय का जीवन तो संवरेगा ही राष्ट्र और समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को भी पूरा किया जा सकता है।

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हज़रत जिबरईल अमीन ने रसूल सल्लल्लाहू अलैहि व सल्लम को सबसे पहला संदेश “इक़रा” यानि ‘पढ़ो’ का दिया। अल्लाह के रसूल ने अपने मानने वालों को हमेशा यही सबक़ दिया कि तालीम हासिल करो। ये अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलैहि व सल्लम ही थे जिन्होंने फरमाया, तुम जब शिक्षा के रास्ते पर चलते हो तो जैसे अल्लाह के रास्ते पर चलते हो।” आपका ये भी कहना है कि ‘एक आलिम विद्वान के क़लम की रौशनाई एक शहीद के खून से ज़्यादा क़ीमती है।”

पहले बेटियों को तालीम

मोहम्मद सल्लल्लाहू अलैहि व सल्लम का इरशाद है कि इल्म हासिल करना हर मुसलमान औरत और मर्द के ऊपर फ़र्ज़ है, लाज़मी है। ये भी फ़रमाया कि अगर किसी को एक बेटी, एक बेटा है और वह एक को ही तालीम दिला सकता है, तो वह बेटी को तालीम दिलाये। इस्लाम में औरतों को शैक्षिक और सभी सामाजिक अधिकार हैं, मगर धरातल पर अमल की कमी भी साफ़ दिखाई देती है। अब जबकि इस्लाम में पढ़ाई-लिखाई का इतना महत्त्व है, तो क्या इसका यह अर्थ हुआ कि मुस्लिम केवल दीन की पढ़ाई करें? हदीस, क़ुरआन, फिक्ह, सर्फ ओ नहल, इल्मुल क़लाम आदि ही पढ़ें? क्या वे दुनिया की पढ़ाई न करें? वास्तव में, इस्लाम में दीन की पढ़ाई के साथ-साथ दुनिया की पढ़ाई भी इतनी ही ज़रूरी है। तभी तो कहा गया था कि एक मुस्लिम को पढ़ाई करने के लिए अगर दूर-दराज़ क्षेत्रों में भी जाना पड़े, तो उसे जाना चाहिए। आज के दौर में, मुस्लिम संप्रदाय की विडंबना यह है कि जिसके रसूल ने कहा कि पढ़ने के लिए अगर चीन तक जाना हो तो जाओ, वह तो अपने भारत देश में भी पढ़ने को तैयार नहीं।

पैगम्बर हज़रत मोहम्मद सल्ललाहु अलैहि व सल्लम ने ये भी फ़रमाया है कि ‘तुमने अगर एक मर्द को पढ़ाया तो सिर्फ एक इंसान को पढ़ाया, लेकिन एक औरत को पढ़ाया तो एक खानदान, एक नस्ल को पढ़ाया।’ हमें  मोहम्मद साहब के बताये रास्ते पर चलना है, ‘हमारे प्यारे हुजूर का दामन नहीं छोड़ेंगे’ का दंभ भरने वाले इस कौल पर कितना अमल करते हैं, यह जगजाहिर है! हमेशा से मुस्लिम औरतों के पिछडऩे की वजह इस्लाम धर्म में ढूंढऩे की कोशिश की जाती रही हैं। बुनियादी तालीम से दूर मुस्लिम औरतों के बहाने इस्लाम में कमियां खोजना आज के दौर में चलन सा हो गया है। जबकि इस्लाम में बेटियों की तालीम को बेटों से पहले बताया गया है।

वोट बैंक बने, शिक्षा में पिछड़े मुसलमान

अब देखना यह है कि कितने मुस्लिमों ने अपने रसूल, हज़रत मुहम्मद की यह बात मानी कि हर प्रकार की शिक्षा में उन्हें दक्ष होना है। खेद का विषय है कि अगर शिक्षा में न केवल भारत, बल्कि पूर्ण विश्व में अगर कोई कौम पीछे है, तो वे न ईसाई हैं, न हिंदू, न बौद्ध, न सिख और न ही यहूदी आज शिक्षा में सबसे पीछे मुसलमान हैं और उनमें सबसे पीछे भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और सूडान हैं। भारत में आज भी शिक्षित मुस्लिमों की संख्या साठ प्रतिशत के नीचे है, जिनमें सबसे पीछे मुस्लिम बच्चियां हैं। जब हम भारत की बात करते हैं तो यह कारण भी समझना होगा कि यहां मुसलमानों का शिक्षा प्रतिशत इतना कम कैसे है। दरअसल, फिलहाल तक मुस्लिमों को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है और अपनी सत्ता के लिए ऐसे ही दुहा जाता रहा है कि जैसे गाय को दुहा जाता है।

राष्ट्रद्रोही भ्रष्टाचारी इस्लामी नहीं

पैग़म्बर मोहम्मद साहब का स्पष्ट संदेश है कि इस्लाम शांति और सुरक्षा का धर्म है। वह युद्ध, राजद्रोह और अव्यवस्था का प्रबल विरोधी है। शांति और सुरक्षा सिखाता है न कि राष्ट्रद्रोह और अव्यवस्था पैदा करना अराजकता फैलाना। देशद्रोह, भ्रष्टाचार और उत्पीड़न का कारण बनने में शामिल या मदद करने वालों का इस्लाम से कोई सरोकार नही। ऐसे तत्वों का दृढ़ता से विरोध करना चाहिये। मुक़द्दस किताब क़ुरआन में लिखा है कि अत्याचार और दुर्व्यवहार के मामले में दूसरों के साथ सहयोग नहीं करना चाहिए।
बुखारी शरीफ हदीस नंबर 1496.1498 के मुताबिक़ पैग़म्बर ए इस्लाम ने बड़ी स्पष्टता के साथ कहा कि जो भी लोगों पर दया नहीं करता, अल्लाह उस पर दया नहीं करते। दुश्मनों के अत्याचारों से तंग आकर उनके साथियों ने एक बार बद्दुआ देने की इल्तजा की, उन्होंने कहा “मुझे बद्दुआ देने नहीं, बल्कि दुआ, दया और रहमत के रूप में भेजा गया है।” उनकी सहिष्णुता और उदारता के बहुत उदाहरण हैं। उन्हें दुश्मनों ने कई तरीक़े से प्रताड़ित किया, लेकिन हुज़ूर ने उन सभी को बहुत धैर्य और संयम के साथ सहन कर माफ़ कर सब्र, शांति, प्रेम व इंसानियत का संदेश दिया।

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