हरमुद्दा

मुद्दे की बात यह है कि आजकल एकल परिवार में हर एक मां अपने मासूम को मोबाइल पकड़ा देती है। ताकि वह कार्टून देखते देखते दूध पी सके। कुछ खा सके। लेकिन ऐसा करना मासूम के साथ ठीक नहीं है। थोड़ी सी नादानी के चलते मासूम गंभीर बीमारी का शिकार हो जाता है।

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अक्सर देखने में आता है कि अभिभावक बच्चों को संभालने की बजाय उन्हें मोबाइल पकड़ा देते हैं। बच्चे भी बड़े चाव से मोबाइल से जुड़ जाते हैं। छोटे बच्चों की उंगलियां मोबाइल पर चलने लगती है। मासूमों का छोटा दिमाग इतना तेज चलता है कि वह ऐप्स खोल लेते हैं और अपने पसंद के कार्टून देख लेते हैं। बच्चों के ऐसे गुणों का बखान करते हुए अभिभावक भी नहीं थकते हैं।

जिम्मेदारी से नहीं झाड़ सकते पल्ला, संभालो अपना लल्ला

बच्चों को मोबाइल की लत लगा कर आप तो जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेते हैं और मां अपने काम निपटा देती है, लेकिन वे यह नहीं जानती कि मोबाइल बच्चों की जिंदगी छीन सकता है। मोबाइल बच्चे की नर्वस सिस्टम को डैमेज करता है।

जरूरी है बच्चों को मोबाइल से दूर रखना

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बच्चों को मोबाइल से दूर रखना चाहिए। उनका विकास मोबाइल से नहीं। खेलने कूदने से होगा। मोबाइल से निकलने वाली तरंगे बच्चे के दिमाग पर असर करती है। दिमाग की वजह से ही सामान्य जीवन जीने का संचालन होता है लेकिन जब दिमाग तरंगों से प्रभावित होता है तो वह कार्य करना बंद कर देता है और असमय ही मासूम मुरझा जाते हैं। मॉडर्न माताओं को चाहिए कि वे अपने बच्चों को मोबाइल से दूर रखें ताकि वह स्वस्थ और सुखी जीवन जी सकें।

🔲 डॉ. अभय ओहरी

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