🔲 मंजुला पांडेय “मंजुल”

भाग रहे हैं न जाने क्यूं?

एक अंजानी सी राह में!
नहीं पता ये भूख है कैसी
प्रतियोगी से शामिल हैं सब
नश्वर भौतिकता की चाह में !

नशे में होकर इसके चूर
मानवता को त्याग रहे!
कुछ बचकानी सी लिप्सा है
जो सर चढ़ कर है बोल रही
इस लिप्सा को पाने खातिर
सब अपनो को ही छोड़ रहे!

सत्य ये है पता सभी को
ये दुनिया है ! नश्वर कितनी?
फिर भी छंण भंगुर चीजों के पीछे
मादकता में होकर चूर,
यहां-वहां हैं सब डोल रहे!
क्या लाए थे ?क्या ले जाएंगे?
सत्य ये ! है पता सभी को!
फिर भी सत् कर्मों का मोल
आज सभी यहां हैं भूल रहे!

दिखावा,आडंबर,प्रतिस्पर्धा
प्रभावी से,आज यहां हैं हो रहे!
आंख मूद कर हम बैठे हम सब
सच्-झूठ के मूल को हैं खो रहे!

IMG_20201220_191309
मंजुला पांडेय “मंजुल”
पिथौरागढ़

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *