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मन की बात : ढूंढो, कहां है खुशियां धोलावाड़ पर्यटन महोत्सव में

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🔲 हेमंत भट्ट

मैं धोलावाड़ जलाशय (सरोज सरोवर) हूं। प्राकृतिक धन संपदा से लबरेज हूं, आकाश से बातें करने को लालायित छोटी-छोटी पर्वत श्रंखला। अथाह जल राशि पांव पखारने को उत्साहित। लेकिन जिम्मेदारों की इच्छा शक्ति के बगैर गरीब हूं। बेबस हूं। मैं इंसानों को खुशियां लुटाने को बेताब रहता हूं। मगर मेरे दामन में आंसुओं के सैलाब के अलावा कुछ भी नहीं है। और मेरे अपनों को पता भी नहीं चलता कि सरोज सरोवर में मेरी खुशियां आंसू बनकर कितनी बह गई है।

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हां, यह बात जरूर है कि जब मेघराज मेहरबान होते हैं और जल भराव मेरी संग्रहण क्षमता से बढ़ने लगता है तो द्वार खोलकर मेरे वंश का अंश को बहा दिया जाता है। तब कुछ प्रकृति प्रेमी मेरे दरवाजों को खुला देख, मेरे अपनों से जुदा हुआ देख, कुछ खुशियां मना लेते हैं, तो भी मुझे अच्छा लगता है कि चलो, जुदाई से ही मेरे अपनों को खुशियां मिल रही है, तो क्या कम है। यहां से अलग होकर मेरा अंश अन्नदाता के काम आएगा। उनके जीवन में खुशियां भरेगा।

तब मैं फूला नहीं समाया

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कुछ साल पहले भी कुछ जिम्मेदारों ने मेरी सुध ली थी। पर्यटन के परिवार में मुझे भी शामिल कर लिया गया था। अच्छा लगा कि चलो मेरी पूछ पर बढ़ेगी। मैं भी किसी के काम आऊंगा। किसी को नैसर्गिक सुख दूंगा। खुशियां दूंगा। प्राकृतिक वैभव लुटाऊंगा। मगर खुशियों से लबरेज वह सपने भी मुट्ठी से रेत की तरह फिसल गए। फिर कई साल तक मेरी तरफ देखा तक नहीं।

कई बार सपनों को टूटते हुए देखा मैंने

अधिकारियों का क्या कहूं? वह तो बस नौकरी करने आते है और चले जाते हैं मगर मेरे प्रति जिम्मेदार जनप्रतिनिधि की इच्छा शक्ति नहीं होने के कारण सब चकनाचूर होता देख रहा हूं। मैंने कई बार सपनों को टूटते हुए देखा है। अभी भी यही हो रहा है मेरे साथ।

पर्यटकों के बीच खिल्ली उड़वाएंगे मेरे अपने

एक बार फिर आस बंधी। जैसे ही घोषणा हुई कि धोलावाड़ पर्यटन स्थल पर खुशियों का मेला लगेगा। रोमांचकारी, साहसिक गतिविधियों में बच्चे, बूढ़े और जवान शामिल होकर अपनी जिंदादिली का सबूत देंगे। मगर मुझे पता नहीं था कि मेरे अपने जिम्मेदार ही एक बार फिर मेरी पर्यटकों के बीच खिल्ली उड़वाएंगे।

तो क्यों कर लुभाया पर्यटकों को?

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जब खुशियां देने वाले संसाधन ही नहीं थे तो फिर लोगों को यहां पर दुख देने के लिए क्योंकर आमंत्रित किया। खुशियां देने की क्षमता पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया। जलाशय का बहुत बड़ा विस्तारित जल क्षेत्र होने के बावजूद एक वोट के सहारे पर्यटकों को लुभाने की नाकाम कोशिश करने का जतन किया जा रहा है।

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एक वाटर स्कूटर कबाड़ में से लाकर मेरी छाती पर पटक दिया। 2 बोट छोड़ी गई मगर एक मेरा साथ छोड़ गई। किनारे पर भी इस आस में पड़ी हुई थी कि मुझे सुधार दिया जाएगा। महोत्सव के दूसरे दिन भी मुझे बहुत दुख हुआ कि मैं वोटिंग का मजा तक नहीं दे पाया। जबकि जिम्मेदार चाहते तो 20 से 25 वाटर स्कूटर उतारते। 10 से 15 वोट होती। अन्य बहुत सी गतिविधियां होती। नवाचार होता। चारों ओर खुशियों की किलकारियां गूंजती तो कुछ अच्छा लगता। मगर वोटिंग करने की छोटी सी इच्छा की पूर्ति करने में भी नाकारा साबित हो रहा हूं।

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इंतजार करते हुए पर्यटकों के पैर दर्द करने लग गए हैं। छोटे-छोटे बच्चे मायूस गए। घंटों इंतजार के बाद पल दो पल खुशियां मिली रही।

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खुशी के लिए आए बच्चे इतने मायूस हो रहे थे। बच्चे को उनके अपने कंधों पर बिठाकर खुशियां लुटाने का जतन करते नजर आ रहे हैं, मगर मैं मन मसोस कर रह गया हूं। मैं कर भी क्या सकता हूं?

मेरी दुर्दशा पर मुझे ही आंसू बहाना होगा

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डींगे तो बड़ी-बड़ी हांकी गई थी। उत्सव शुरू होने के 2 दिन बाद भी व्यवस्था मुकम्मल नहीं हो पा रही है। आईलैंड पर पर्यटकों को चढ़ाने के लिए सीढ़ियों का बनाने का काम सुस्त गति से चल रहा है। ऐसा लग रहा है कुछ दिन बीत जाएंगे और महोत्सव पूरा हो जाएगा बिना उत्साह के। बिल बन जाएंगे और बजट खत्म। मेरी दुर्दशा पर मुझे ही आंसू बहाना होंगे।

जोश, जुनून, उत्साह, उमंग बेवजह की थकावट के आगे फुर्र

तीरंदाजी करने वाले भी इंतजार करते हैं कि कर्मचारी कब तीर ढूंढ कर लाएंगे और फिर से प्रत्यंचा पर चढ़ाया जाएगा। इतने में काफी वक्त गुजर रहा है और राइडिंग का जोश, जुनून, उत्साह, उमंग बेवजह की थकावट के आगे फुर्र हो रहा है। रोमांचक साहसिक गतिविधियों में शामिल होने का जज्बा लेकर आने वाले चाय की चुस्की या फिर दाल पानिए का स्वाद लेकर मन मसोस कर चले जाते हैं। फिर अपने घरों की ओर। और मैं ढंग से उन्हें बाय-बाय भी नहीं कर सकता। पुनः आने का बोल भी नहीं सकता।

सब्जबाग आखिर कब तक

आखिर कब तक सब्जबाग दिखाए जाएंगे कि मेरा उद्धार होगा। मेरी सुध ली जाएगी। पर्यटन के नक्शे पर भी मेरा नाम होगा। दूर दूर से लोग आएंगे। मेरा गुणगान करेंगे।लोग मुझे जानेंगे, पहचानेंगे, मेरी तारीफ करेंगे। योजनाएं तो बहुत सी बन जाती है लेकिन फाइलों में दफन हो जाती है। जिम्मेदार जनप्रतिनिधि पदों के मोह में भूल जाते हैं कि हमारे भी कुछ अच्छे दायित्व हैं। जब उन्हें ही याद नहीं रहेगा क्षेत्र का विकास, पर्यटन का विकास, तो फिर वे किससे बात करेंगे, कैसे चर्चा करेंगे यह समझ से परे हैं?

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