विकास और औद्योगिकीकरण के चलते वन विनाश के कगार पर खड़ी दुनिया
डॉ. खुशालसिंह पुरोहित
पर्यावरणविद
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पेड़ों से हमारे पारिवारिक रिश्ते
भारत में विश्व वानिकी दिवस का विशेष महत्व है। खेजड़ली के शहीदों से लेकर चिपको आंदोलन तक और प्रकृति की रक्षा की महान विरासत हमारी राष्ट्रीय धरोहर है। हमने संसार को संदेश दिया है कि पेड़ों से हमारे पारिवारिक रिश्ते हैं। हम उसे अपना भाई मानते हैं। उसकी रक्षा में प्राणों की बलि देने में भी हम संकोच नहीं करते हैं क्योंकि हम जानते हैं कि पर्यावरण की रक्षा अपने होने की रक्षा है। आज विश्व में इस संदेश की आवश्यकता है।
21 मार्च को विश्व वानिकी दिवस मनाया जाता है। यह परंपरा सन 1872 में नेबरास्का अमेरिका से शुरू हुई। इसका श्रेय जे स्टर्लिंग मार्टिन को दिया जाता है, जिन्होंने देश की खूबसूरती से वंचित नेबरास्का में अपने घर के आसपास बड़ी संख्या में पौधे लगाए थे।
एक समाचार पत्र के संपादक बनने के बाद उन्होंने अन्य नगर वासियों को भूमि संरक्षण, ईंधन, इमारती लकड़ी फल फूल छाया और खूबसूरती के लिए पौधे लगाने की सलाह दी। उन्होंने राष्ट्रीय कृषि बोर्ड को भी पौधे लगाने के लिए एक अलग दिन रखने को मना लिया। इस प्रकार विश्व वानिकी दिवस की शुरुआत हुई। प्रथम वानिकी दिवस पर एक लाख से ज्यादा पौधे लगाए गए। धीरे धीरे पूरी दुनिया में यह दिवस 21 मार्च को विश्व वानिकी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
तीन बुनियादी आधार
मानव जीवन के तीन बुनियादी आधार शुद्ध हवा, ताजा पानी और उपजाऊ मिट्टी मुख्य रूप से वनोंपर ही आधारित है। इसके साथ ही वनों से कई प्रत्यक्ष लाभ भी हैं, जिसमें खाद्य पदार्थ, औषधियां, फल फूल, ईंधन, पशु आहार, इमारती लकड़ी, वर्षा संतुलन, जल संरक्षण और मिट्टी की उर्वरकताव, आदि प्रमुख है। प्रसिद्ध वन विशेषज्ञ प्रोफेसर तारक मोहनदास ने अपने शोध अध्ययन में बताया है कि एक 50 साल के जीवन में पैदा किए गए 50 टन वजनी मध्यम आकार के वृक्ष से चीजों एवं अन्य सुविधाओं की कीमत लगभग 15 लाख 70 हजार रुपए होती है।
समूचे विश्व में प्रमुख समस्या
वन विनाश आज समूचे विश्व में प्रमुख समस्या है। सभ्यता के विकास और औद्योगिकीकरण के फलस्वरूप आज दुनिया वन विनाश के कगार पर खड़ी है। वनों के विनाश का सवाल इस सदी का सर्वाधिक चिंता का विषय बन गया है। पिछले 4 दशकों से इस पर बहस छिड़ी हुई है और वनों का विनाश रोकने के प्रयास भी किए हुए हैं। देश में पर्यावरण और वनों के प्रति जागरूकता आई है, लेकिन हरित पट्टी में इसी तरह के विस्तार की बजाय कमी ही हुई हुई है, लेकिन पश्चिमी देशों की तुलना में भारत में उद्योग विकास की गति काफी कम रही है, किंतु स्वतंत्रता के बाद 300 गुना बढ़ीं जनसंख्या का दबाव वन और वन्य प्राणियों पर पड़ना स्वाभाविक ही था। यही कारण था कि हमारे समृद्ध वन क्षेत्र सिकुड़ते गए और वन्य प्राणियों की अनेक जातियां धीरे-धीरे लुप्त होती गई।
हमारे देश में यह सुखद बात है कि प्रकृति के प्रति प्रेम का संदेश हमारे धर्म ग्रंथों और नीति शतको में प्राचीन काल से ही रहा है। तभी पूजा पाठ में तुलसी पत्र, वृक्ष पूजा के विभिन्न पर्वों की हमारी समृद्ध परंपरा रही है। यह लोक मान्यता है कि सांझ हो जाने पर पेड़ पौधों से छेड़छाड़ नहीं करना चाहिए, क्योंकि पौधों में प्राण हैं और वे संवेदनशील होते हैं।
…और उजाड़ा जाता
हमारे देश में एक तरफ तो वनों के प्रति श्रद्धा और आस्था का दौर चलता रहा और दूसरी और बड़ी बेरहमी से वनों को उजाड़ा जाता रहा है। यह सिलसिला अभी भी थमा नहीं है। अनुमान है कि प्रति वर्ष 15 लाख हेक्टेयर वन कटते हैं। हमारी राष्ट्रीय वन नीति में कहा गया था कि देश के एक तिहाई हिस्से को हरा भरा रखेंगे, लेकिन पिछले वर्षों में भू उपग्रह के छाया चित्रों से स्पष्ट है कि देश में 33% के बजाय 13% ही वन क्षेत्र रह गया है।
200 से ज्यादा कानून
भारत में पर्यावरण संरक्षण से संबंधित 200 से ज्यादा कानून है। मौलिक कर्तव्य से संबंधित अनुच्छेद 51 “अ” में कहा गया है कि वनों जिला नदियों और वन्य जीवन की सुरक्षा व विकास तथा सभी जीवों के प्रति सहानुभूति हर एक नागरिक का कर्तव्य होगा। इसके साथ ही वन एवं वन्य जीवन से जुड़े सवालों को राज्य सूची से समवर्ती सूची में शामिल कर दिया गया।