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कोविड से जुड़े पूरे सिस्टम पर बड़ा सवाल : अब तक कितने पांडेयजी बनाए गए कोरोना पॉजीटिव

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🔲 अनिल पांचाल
रतलाम, 21 फरवरी। लोग कहते नहीं थक रहे है कि अगर रतलाम में मेडिकल कालेज नहीं होता तो कोरोना का उपचार कैसे होता? मगर असलियत ये भी है कि अगर मेडिकल कालेज नहीं होता तो जावरा के स्वस्थ्य विधायक डॉ. राजेंद्र पांडेय कोरोना रिपोर्ट पॉजीटिव नहीं आती।

मुद्दे की बात तो यह है कि शहर सहित जिले का कोई भी नागरिक डॉ. पांडेय नहीं हो सकता है जो खुद को संक्रमित बताए जाने के बाद जांच रिपोर्ट पर सवाल उठाए और दोबारा जांच के बाद रिपोर्ट नेगेटिव आ जाए। इस घटना ने कोविड से जुड़े पूरे सिस्टम पर बड़ा सवाल खड़ा किया है जो प्रदेशभर के साथ ही देश में भी सुर्खिया बनेगा यह तय है।

भूमिका रही है संदेहास्पद

यू तो पूरे कोरोना काल में मेडिकल कालेज की भूमिका संदेहास्पद ही रही है। कुछ डॉक्टरों का निजी अस्पतालों में सेवा देना, सैंपलिंग में कमी, सैंपलों का फैल होन या उन्हे फैल कर दिया जाना जैसी तमाम खबरे समय-समय पर बाहर आती रही है। लेकिन डॉ. पांडेय वाला प्रकरण इसलिए ज्यादा विचारणीय होकर सिस्टम पर पहाड़ जैसा सवाल कर रहा है क्योंकि वर्तमान में कालेज की डीन खुद माईक्रोबायलॉजी विभाग की प्रमुख रही है।

पहली रिपोर्ट 4 तो दूसरी 20 घंटे में

डॉ. पांडेय का पहले सैंपल की रिपोर्ट चार-पांच घंटे में आ गई और दूसरी को आते-आते 20 घंटे बीत गए। शायद नामली के सोनगरा ढाबे पर चाय पीने रुक गई होगी? शनिवार को कोरोना जांच रिपोर्ट दोपहर लगभग चार बजे आ चुकी थी, जिसमें डॉ. पांडेय का नाम नहीं था। इसके बाद आई रिपोर्ट पर हुए मंथन के चलते जांच रिपोर्टों को सार्वजनिक करने का सिस्टम ताबड़तोड़ बदला गया। शनिवार को डॉ. पांडेय की रिपोर्ट आती तो अखबार और प्रिंट मीडिया वाले पूरे सिस्टम की बैंड बजा डालते ऐसा आभास जिम्मेदारों को हो चुका था। ऐसे में रविवार सुबह रिपोर्ट सीधे मैसेज के माध्यम से डॉ. पांडेय तक पहुंच दी गई।

और सैंपल की रिपोर्ट नेगेटिव आई

जानकारों की माने तो डॉ. पांडेय ने पहले सैंपल के दौरान ही सैंपल लेने वालो को सलाह दी थी कि वो इनका ओरल और नोजल दोनों तरह का टेस्ट लें मगर नहीं लिया गया और रिपोर्ट पॉजीटिव बता दी गई। जब डॉ. पांडेय ने इस रिपोर्ट पर नाराजगी जताई तो दूसरा सैंपल दोनों तरह से लिया गया और दोनो की सैंपलों की रिपोर्ट नेगेटिव आई है।

तब लिया था आड़े हाथों

गौर इस बात पर किया जा सकता है कि पूरे कोरोना काल में डॉ. पांडेय ने मेडिकल कालेज सहित अन्य स्वास्थ्य केन्द्रों की खामियों को क्राईस मैनेजमेंट की बैठकों में अनेकों मर्तबा उजागर किया था। नीमच और मंदसौर के परिवार के साथ हुई त्रासदी को भी लेकर डॉ. पांडेय ने मेडिकल कालेज के जिम्मेदारों को आड़े हाथो लिया था, जिसके सुनियोजित विरोध में कालेज के कुछ कर्मचारियों ने औद्योगिक थाने में धरना देकर पीड़ित और विधायक डॉ. पांडेय पर मुकदमा दर्ज करने की मांग की थी। ये सब किसके इशारे पर हुआ था, ये भी सभी जानते है और कही न कही सैंपल को पॉजीटिव करने की इस घटना को उस समय के प्रकरण से भी जोड़ा जा रहा है।

जिम्मेदारों की इस महामूर्खता

जिले की स्वास्थ्य सेवाओं में जुड़ी कई खामियों के विधानसभा में उजागर न हो इस डर से भी रिपोर्ट पॉजीटिव हो सकती है? मगर जिम्मेदारों की इस महामूर्खता के कारण जावरा क्षेत्र के विकास से जुड़े कार्यो को अब लेटलतीफी का शिकार होना पड़ेगा।

नादान की दोस्ती और जी का जंजाल वाला खेल जारी

जिले में कोविड सैंपलिंग में गड़बड़ी करने वाले इस मामले के उजागर होने के बाद कोई किसी को दोषी नहीं मान रहा है। सब अपने-अपने हिसाब से सफाई देने में व्यस्त है। जिले और संभाग के अधिकारी इस गंभीर मामले को कब संज्ञान में लेगे ये तो राम जाने, मगर कालेज में नादान की दोस्ती और जी का जंजाल वाला खेल जारी है।

जब साहेब मेहरबान, तो सब पहलवान

अनुभवियों और वरिष्ठों की वरिष्ठता का ताक में रख कर कब कोई यहां का प्रमुख बन जाए कहां नही जा सकता है। जिले के अधिकारियों को कालेज से कोई ज्यादा मतलब रहता नहीं हैं क्योंकि वहां संभाग वाले साहब ज्यादा मेहरबान रहते है, और जब साहेब मेहरबान हो जाते है तो सब पहलवान हो ही जाते है।
बहरहाल डॉ. पांडेय स्वस्थ्य है और स्वस्थ्य रहे ये खुशी की बात है। मगर सभी को सिरे से विचार करना चाहिए कि वो तो पांडेयजी थे, जिनका दोबारा सैंपल हो गया और वो नेगेटिव बताए गए। मगर अब कितने नेगेटिव जिले वासियों को कोरोना की आड़ में पॉजीटिव बताया गया होगा?

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