नरवाई जलाना खेती के लिए आत्मघाती कदम: सिंह
हरमुद्दा
नीमच 27 मार्च। गेहूं कटने के बाद बचे हुए फसल अवशेष (नरवाई) जलाना खेती के लिए आत्मघाती कदम है । नरवाई में आग लगाने से भूमि में उपलब्ध जैव विविधता समाप्त हो जाती है। भूमि में उपस्थित सूक्ष्मजीव जलकर नष्ट हो जाते हैं, सूक्ष्म जीवों के नष्ट होने के फलस्वरूप जैविक खाद का निर्माण बंद हो जाता है।
यह जानकारी उप संचालक किसान कल्याण तथा कृषि विकास नगीन सिंह रावत ने दी। श्री सिंह ने बताया कि भूमि की ऊपरी परत में ही पौधों के लिए आवश्यक पौषक तत्व होते हैं, आग लगाने के कारण पौषक तत्व जलकर नष्ट हो जाते हैं। नरवाई जलाने से भूमि कठोर हो जाती है, जिसके कारण भूमि की जल धारण क्षमता कम हो जाती है और फसलें सूख जाती है। खेत की सीमा पर लगे पेड़ पौधे (फल, वृक्ष) आदि जलकर नष्ट हो जाते हैं। पर्यावरण प्रदूषित होता है, वातावरण के तापमान में वृद्धि होती है इससे धरती गर्म हो जाती है। कार्बन से नाइट्रोजन तथा फास्फोरस का अनुपात कम हो जाता है। केंचुए नष्ट हो जाते हैं, जिस कारण भूमि की उर्वरक क्षमता खत्म हो जाती है। नरवाई जलाने से जन धन की हानि होती है, इसलिए उपरोक्त नुकसान से बचने के लिए किसान भाई नरवाई ना जलाएं, बल्कि इस नरवाई से भूसा और जैविक खाद बनाए ताकि भूमि के स्वास्थ्य में सुधार हो।
इस तरह करें नरवाई का उपयोग
श्री सिंह ने बताया कि नरवाई जलाने की अपेक्षा अवशेषों और डंठलों को एकत्रित कर जैविक खाद जैसे – भू –नाडेप, वर्मी कंपोस्ट आदि बनाने में उपयोग किया जाए तो वे बहुत जल्दी सड़कर पौषक तत्वों से भरपूर जैविक खाद बन सकते हैं। खेत में कल्टीवेटर, रोटावेटर या डिस्क हैरो आदि की सहायता से फसल अवशेषों को भूमि में मिलाने से आने वाली फसलों में जैवांश खाद की बचत की जा सकती है। सामान्य हार्वेस्टर से गेहूं कटवाने के स्थान पर स्ट्रॉ रीपर एवं हार्वेस्टर का प्रयोग करें तो पशुओं के लिए भूसा और खेत के लिए बहुमूल्य पौषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ने के साथ मिट्टी की संरचना को बिगड़ने से बचाया जा सकता है।
144 के तहत जलाना प्रतिबंधित
खेतों में नरवाई जलाने का कृत्य जिला कलेक्टर द्वारा धारा 144 के तहत प्रतिबंधित है। नरवाई में आग लगाने पर पुलिस द्वारा प्रकरण भी कायम किया जा सकता है, जिसके तहत आर्थिक दंड एवं सजा का प्रावधान है ।