मैं तुम्हें नहीं दे पाया वो तमाम खुशियां जिनके सपने कभी संजोये थे तुमने
संजय परसाई ‘सरल’ की कविता ‘समर्पण’
मैं तुम्हें नहीं दे पाया
वो तमाम खुशियां
जिनके सपने
कभी संजोये थे तुमने
दिनभर पीसती रही तुम
चक्की के पाटों की तरह
ता उम्र
अपने घर-परिवार की
तमाम खुशियों के लिये
तुमने नहीं सोचा
कभी अपने बारे में
नहीं कि कोई शिकायत
पथरा सी गई
तुम्हारी आँखे व हथेलियां
फ़टी हुई बिवाइयां
कर रही बयां
तुम्हारा समर्पण
और/इस समर्पण ने ही
बांधे रखा है
घर-परिवार को एकसूत्र में
निःस्वार्थ/तुम्हारा ये समर्पण
हम सबका
बना है संबल
आज हमें ही नहीं
सबको गर्व है
तुम्हारे प्रेम/समर्पण
और त्याग पर
तुम वाकई महान हो
तुम वाकई महान हो
तुम वाकई महान हो।
संजय परसाई ‘सरल’
118, शक्ति नगर,गली न.2 (महाकाल मंदिर के सामने)
रतलाम (मप्र)
मोबा. 98270 47920