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… और जब मुख्यमंत्री “शिव” ने पल्ला झाड़ा “शंकर” से

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 जनसंपर्क पर अपनी नजरें गड़ाए गिद्धों की इन दिनों नई व्यवस्था के चलते नहीं गल रही दाल

रितेश मेहता

भोपाल, 14 मार्च। एक वर्ष पूर्व मध्य प्रदेश में नाटकीय अंदाज में हुआ तख्ता पलट के बाद तमाम प्रतिस्पर्धियों को करीने से दरकिनार कर चौथी बार सत्ता सिंहासन पर काबिज हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पुरानी चूँकों से पूरी तरह से तौबा कर ली। खास तौर पर 15 माह सत्ता से दूर रहने के दरमियान शिवराज ने सत्ता के परजीवियों की शिनाख्त की। इस विवेचना के दौरान 15 महीने में उन्होंने पाया कि 13 साल की सत्ता के दौरान जो लोग चौखट पर खड़े रहते थे। वह सभी इस बार नदारत थे।

खास तौर पर चौथी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद शिवराज की आंख की किरकिरी बने गिरगिट की तरह रंग बदल ने वाले गिरजा शंकर। जैसे ही शिवराज 2005 में मुख्यमंत्री के तौर पर सेटल होने के भोपाल पहुंचे तत्कालीन पार्टी के अंदरूनी राजनीतिक गहमा गहमी के दृष्टिगत सब से सहज व मिलनसार हो रहे थे या यूं कहें कि अपना इस्टैब्लिशमेंट की जमावट में लगे थे। इस दौरान शिवराज के करीबियों के जरिए तथाकथित फ्रीलांस पत्रकार गिरजा शंकर ने इंट्री मारी, जो खुद को डीपी मिश्रा, श्यामा चरण शुक्ल (शामा भैया), मोतीलाल वोरा, प्रकाश चंद्र सेठी, गोविंद नारायण सिंह, सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों के सलाहकार रहे। वह भी अघोषित जो सभी स्वर्गीय और गिरजा भैया की सलाह पर अभी तक मध्यप्रदेश संचालित हो रहा था। यही किस्सा कहानियां नए-नए मुख्यमंत्री शिवराज के कोटरी और कानों तक पहुंची। इनका शिवराज के मुंह लगना भी लाजमी था।

गिरजा भैया की आवाजाही शुरू हुई। मुख्यमंत्री कार्यालय से लेकर बंगले तक और जनसंपर्क संचानालय में डेरा। इस स्व घोषित सलाहकार ने मुख्यमंत्री के करीबी होने नाम पर जनसंपर्क से विज्ञापन की बाढ़। भैया के इशारों पर विज्ञापन जारी। चौथी बार मुख्यमंत्री बने मामा ने जनसंपर्क का पूरा महकमा अपने पास ही रखा।

यहां से तमाम पुराने धागों का सफाया हो गया। नए सेटअप में मुख्यमंत्री के दामाद को विभाग की बागडोर दी गई। मुख्यमंत्री के करीबी लोगों का कहना है कि प्रदेश भाजपा महामंत्री व संघ के क्षेत्रीय प्रचारक की ओर से मुख्यमंत्री को साफतौर पर आगाह किया था कि वह इनसे दूरी बनाकर चलें, जिसके तहत मुख्यमंत्री ने जनसंपर्क विभाग में अपने विश्वतों की तैनाती के साथ साफ संकेत दिए कि नई पारी में ब्लैकमेलर और दलालों की दाल नहीं गलने वाली। मुख्यमंत्री के करीबियों के दावे की माने तो भैया ने जनसंपर्क से मुख्यमंत्री के करीबियों के सफाए की नाकाम कोशिश भी की। अब जनसंपर्क पर अपनी नजरें गड़ाए गिद्धों की इन दिनों नई व्यवस्था के चलते दाल नहीं गल रही है।

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