साहित्य की होली : पी कर गम-खुशी की भांग कथा – कहानी शराबी ह्वै गई
डॉ. नीलम कौर
गीत, गजल गुलाबी ह्वै गई
कविता भी थोड़ी सयानी ह्वै गई,
पी कर गम-खुशी की भांग
कथा -कहानी शराबी ह्वै गई
भर पिचकारी अक्षरन की
हाइकु ने मारी
तांका सभी पिरामिड चढ़ गए
छिड़े जो तराने होली के
नग्में सभी नवाबी ह्वै गए
छंदों ने जो पहनी पायल
दुहा, कुण्डलियां,चौपाई
चौपई,सवैये, छप्पय,
सब उलटबासी ह्वै रहे
शब्द -अर्थ अलंकृत होकर
निकल पड़े कागज की गलियन
रुबाई की जम गई महफिल
लगी बूझने पहेलियां रसभरी
भंग घुली अफसानों में तो
किस्से,कहानी लगे बहकने
किरदार उपन्यासों से निकल
घूम रहे मदमस्त होकर
अबकी होली में साहित्य भी
रंगों में सराबोर हो रहा
हर गांव, गुवाड़ी, शहर ब्रज-बरसाने की गलियां
बन गए, धूम मचाए, रंग उड़ाएं
हर युवा कान्हा बना, बनी युवती राधा
बालवृंद, बुजुर्ग सभी बन गए
गोप ग्वाल, खेल रहे हैं सभी होली उड़ा गुलाल, अबीर।