वे आपदा में अपना अवसर ऐसे तलाश करते थे कि लोगों को लगता यही है उनके सच्चे हितचिंतक
🔲 संजय भट्ट
भाई साहब को आपदा में अवसर ढॅूढने में महारत हांसिल थी। वे किसी भी आपदा में अवसर को तलाश कर ही लेते थे। यदि किसी की आपदा नहीं हो तो अपने अवसर के लिए वे आपदा को पैदा करने में भी पीछे नहीं रहते थे। मतलब येन केन प्रकारेण अपना अवसर किसी भी आपदा में तलाश कर ही लेते थे। कोई पुलिस से परेशान हो, राजस्व संबंधी मामला हो या किसी की पैदाईश हो या मरने से पैदा हुई आपदा। वे अपना अवसर ऐसे तलाश करते थे कि लोगों को लगता यही उनके सच्चे हितचिंतक है।
लालाजी के रहते गांव में एक ही दुकान थी, मनचाहे दामों पर सामान मिलता था, लेकिन जैसे ही लालाजी चल बसे उन्होंने न सिर्फ अपने लिए बल्कि पूरे गांव के लिए एक प्रतिस्पर्धी माहौल पैदा कर दिया। लालाजी के दोनों बेटों को एक महीने में ही दो दुकानें करवा दी। रम्मु के यहां बेटी पैदा हुआ तो भाई साहब इतने दुखी हुए कि उन्होंने रम्मु की पत्नी का तलाक ही करवा दिया। अब हर किसी की आपदा में उनका कोई न कोई योगदान तो होता ही था। मामला कोई भी हो वे अवसर की तलाश करने से कभी पीछे नहीं रहते थे।
हर समस्या का समाधान था उनके पास, बस थोड़ी सी फीस लगती थी, लेकिन काम सोलह आने होने की गारंटी रहती थी। भाई साहब ईमानदार भी इतने थे कि हमेशा पहले आओ पहले पाओ के सिद्धान्त पर काम करते थे। जो उनके पास पहले आया, वह भले ही गलत हो या सही एक बार उन्होंने उसके साथ देने की बात कह दी तो किसी भी माई के लाल में ताकत नहीं थी कि उनके फैसला बदल दें। वे एक बार कोई काम हाथ में ले लेते तो फिर दिन-रात, सुबह-शाम कुछ भी नहीं देखते जब तक मंजिल नहीं मिले, वे उसी काम को अंजाम तक पहुंचाने में लगे रहते थे। हाथ में लिए काम के लिए दिन की छोड़िए रात को सपना भी उसी के पक्ष का देखते थे।
गांव में कई बार लोगों ने उन्हें सरपंच बनने का न्यौता दिया, लेकिन भाई साहब जानते थे। कभी राजनीति में आए ही नहीं। ऐसा नहीं कि उनका राजनीति से कोई वास्ता नहीं था, लेकिन बस किसी पद पर नहीं रहते थे। कोई उनकी इच्छा के बगैर किसी पद पर रह भी नहीं सकता था। क्योंकि उनकी फितरत ही ऐसी थी कि वे आपदा में अवसर को तलाश कर लेते थे और आपदा नहीं हो तो पैदा कर देते थे। इसीलिए सभी उनसे डरते भी थे, लेकिन वे किसी के बाप से भी नहीं डरते थे। यही एक दबदबा था उनका।
उनकी एक खासियत और थी, जिससे सब डरते हैं वह भूत। कभी पाला ही नहीं पड़ा। मतलब उनका ब्याह नहीं हुआ था। बस इसी खासियत के चलते उनका कोई खर्चा भी नहीं था। सुबह की चाय से लेकर रात की शराब तक का इंतजाम करने वालों की फौज भाई साहब के पास थी। वे भी अपनी ईमानदारी के चलते, उनकी सेवा का मेवा अवश्य प्रदान करते थे।
यूँ तो वे अच्छे वाले समाज सेवक भी हो सकते थे, लेकिन उसके लिए अपनी जेब का खर्चा होता है और मज़ा कुछ नहीं आता है। वे कथित समाज-सेवक थे, जो समाज सेवा की आड़ में किसी भी आपदा में अवसर को तलाश कर लेते और आपदा न हो अवसर के लिए आपदा पैदा कर देते। उनकी बातों का गांव भर में बड़ा सम्मान था। कोई भी बात इतने अच्छे तरीके से कहते थे कि सुनने वाले के अंतर्मन तक उतर ही जाती थी। चाहे कोई कितना भी शातिर हो लेकिन उनका वार इतना अचूक होता था कि बचना मुश्किल था।
कहा जाता है कि कोई भी हवाई जहाज ज्यादा देर तक हवा में नहीं रह सकता, उसे जमीन पर आना ही पड़ता है। बस अब ठीक यही हालत भाई साहब की थी, उनका हवा में उड़ता जहाज जमीन पर आने वाला था। उम्र भी लगभग हो ही गई थी, लेकिन जोश बरकरार था। उनकी पैदा की गई आपदाओं का गांव में इतना रैला हो गया था कि अब वे खुद ही फिसलने लगे थे। बस ऐसे ही एक मामले में वे फिसल गए और इतना फिसले कि उनके सारे अंग चोट ग्रस्त हो गए थे। उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि जिस रम्मु की बेटी के पैदा होने के दुख में तलाक करवाया था, वहीं बेटी बड़ी होकर उनके लिए आपदा बन कर टूटेगी। अब पढ़े लिखे बच्चे उनके झांसे में नहीं आते थे। सभी को धीरे-धीरे पता चलने लगा कि जो-जो आपदाएं गांव में आई उनके लिए कोई और नहीं बल्कि भाई साहब ही जिम्मेदार है। इससे आहत भाई साहब खुद ही आपदाओं के शिकार होने लगे। आए दिन कोई-न-कोई आरोप उन पर लगता रहता था। इसलिए भाई साहब ने भलाई समझी और गांव छोड़ कर दूसरे गांव के लोगों की आपदा में अवसर तलाश करने को निकल गए, क्योंकि वे जानते थे कि आपदाओं और अवसर की कोई कमी नहीं है।