कोरोना दूसरी लहर : थके-मांदे जिम्मेदार व्यवस्था को धकेल रहे, दौड़ाने की बजाय

 कोविड से निपटने के लिए आत्म निर्भरता साबित हुई कोरी कल्पना

 अनिल पांचाल

विश्व स्वास्थ्य संगठन सहित जन स्वास्थ्य से जुड़ी तमाम ऐजेंसियां यह पहले ही साफ कर चुकी है कि लोगों को कुछ सालों तक कोविड-19 महामारी के साथ ही रहना है, इसलिए तमाम सरकारे अपने-अपने देशों,राज्यों, जिलों और शहरों में उपचार सुविधा के वो तमाम साधन कोरोना की दूसरी लहर के शुरू होने के पहले ही जुटा ले, ताकि 100 साल पहले की तरह ना तो लाशों के ढेर लगे और ना ही कोई उपचार के अभाव में अपना दम तोड़े। यह चेतावनी उस समय दी गई थी जब सडक़ पर उतरु नेताओं के सहयोग से बनी सरकार मदमस्त होकर झूम रही थी और अफसरशाही अपनी वेलेडिटी का रिचार्ज कर नए भगवानों के चरण चूम रही थी।

इसी धीगामस्ती के बीच स्वास्थ्य आयुक्त फैज अहमद किदवई ने मई 2020 में कोविड की दूसरी लहर को प्रदेश स्तरीय स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार को लेकर एक प्लान तैयार किया जिसमें रतलाम सहित प्रदेश के कई जिलों को अवगत कराया कि अगर आपके यहां 1000 हजार से ज्यादा लोग एक ही दिन में संक्रमित हो गए तो उनके उपचार की व्यवस्था आप कैसे करेगे? इस व्यवस्था का खाका खिचा गया और निर्णय हुआ कि पूरे प्रदेश में कोरोना की दूसरी या तीसरी लहर से निपटने के लिए 12 लाख करोड़ रुपए खर्च किए जाएगे।

प्लान भेजा मगर क्या हुआ किसी को नहीं पता?

इस संबध में निर्देश जारी हुए और रतलाम में 1300 संक्रमित एक ही दिन में निकलने और इन्हे उपचार लाभ देने की व्यवस्थाओं का खर्च मांगा गया।
पूर्व कलेक्टर ने चिकित्सा अधिकारियों की एक टीम से किदवई साहब के पत्र के बाद पूरा प्लान बनवाया। उस समय रतलाम में लोगों को कोविड से बचाने के लिए पूरी जमावट 15 करोड़ रुपए खर्च होना बताया गया था। इसी प्लान पर एडिशनल चीफ सेकेट्री मो.सुलेमान साहब ने वीसी के माध्यम से जिले वार चर्चा की। इस चर्चा के बाद 1300 संक्रमितों के मान से बिस्तर, आँक्सीजन, दवाईयां,भोजन, कोविड केयर सेंटर सहित तमाम व्यवस्था का प्लान बना और भोपाल भेजा गया। यह प्लान जब बना कर भेजा गया था, तब जिले में हर दिन चार या पांच ही संक्रमित आया करते थे।

इस पर प्लान पर बड़े बड़े अखबारों सहित अन्य अखबारों में बड़ी-बड़ी खबरे भी छपी थी, और उम्मीद की जा रही थी कि आने वाली लहर के पहले रतलाम कोविड से निपटने के लिए आत्म निर्भर हो जाएगा। मगर ये प्लान कोरी कल्पना ही रह गया।

लोगों की जान बचाने का लगा खर्चा भारी

सरकार को कोरोना का इलाज और लोगों की जान बचाने पर होने वाला खर्च भारी लगा तो किदवई साहब की जगह रतलाम में कलेक्टर रहे एक डॉक्टर को स्वास्थ्य आयुक्त बना दिया गया। नए डॉक्टर ने इस प्लान को किसी भी जिले में पहुंचने ही नहीं दिया, जिसका खामियाजा आज रतलाम सहित पूरा प्रदेश भुगत रहा है। इसी प्लान में इन्दौर को एक दिन में 21 हजार लोगों के संक्रमित होने के बाद तैयारी रखने के निर्देश दिए गए थे। पिछले मई माह 2020 को गुजरे कच्चा-पक्का एक साल हो गया है, अगर उस समय से अब तक इसी प्लान को साकार रुप दिया जाता तो आज दम तोड़ते संक्रमितों की लाशे शमशान और कब्रस्तानों में कतार लगाने को मजबूर नही होते।

लाशों के आंकड़े छुपाने का खेल

आज जान बचाने की बजाय लाशों के आंकड़े छिपाने का खेल चल रहा है, हर तरफ सिस्टम फेल होते नजर आ रहा है, थके-मांदे जिम्मेदार व्यवस्था को दौड़ाने की बजाय धकेल रहे है। स्थानीय जनप्रतिनिधि इस विकट संकट के दौर में रोते हुए परिजनों के आंसू पोछने, उन्हे मदद करने की बजाय घरों में बैठे होकर स्वस्थ्य लोगों को वैक्सीन सेंटर तक पहुचाते हुए फोटो खिचाने में व्यवस्त है। मेडिकल कालेज से उठी चित्कारे, कराह, दर्द की आवाज पूरे सैलाना रोड तक सुनाई दे रही है। दलाल कभी उपचार कराने के नाम, इन्जेक्शन दिलाने, दवा दिलाने, डाँक्टरों से सशुल्क उपचार कराने पर तो कभी 150 नर्सेस और वार्ड बाँयों को नौकरी पर रखवाने में व्यस्त है। इन खेल करने वालों ने तो अपना खेल कर लिया, अब भगवान सबका भला करे यही कामना है।

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