हकीकत : उम्मीद में हर दिन टूट रही सांसों की डोर, असमय अपनों को खोने वालों की सिसिकियां थमने का नहीं ले रही हैं नाम, जिम्मेदारों को करना नहीं है काम
🔲 वादों के लालीपाप चुसाए जा रहे जिम्मेदारों द्वारा
🔲 कोरोना प्रभावितों की जान बचाने के लिए संसाधनों के साथ पर्याप्त ट्रेंड चिकित्सा स्टाफ भी जरूरी
🔲 कोरोना से जंग – नाकाफी इंतजाम से बद से बदत्तर हो रहे हालात
🔲 हेमंत भट्ट
ज्वलंत मुद्दे की बात तो यह है कि देशभर में कोरोना से जंग जीतने के लिए जितनी जरूरत संसाधनों की महसूस की जा रही है, उससे कई ज्यादा सरकारी अस्पतालों में पर्याप्त ट्रेंड चिकित्सा स्टाफ की कमी खल रही है। संसाधनों की पूर्ति के लिए कई दानवीरों के साथ समाज–संगठन अागे अाकर मुक्तहस्त से सहयोग कर रहे हैं, लेकिन पर्याप्त ट्रेंड चिकित्सा स्टाफ व सेवा भावना की कमी अभी भी हर जगह विद्यमान है। ऐसे में पर्याप्त संसाधनों का मरीजों की जान बचाने में उपयोग बेमानी साबित होगा। वर्तमान में सरकारी अस्पतालाें में स्वीकृत स्टाफ की तुलना में कहीं 30 तो कहीं अधिकतम 50–60 प्रतिशत ही कार्यरत है। ऐसे में प्रत्येक मरीज की समुचित देखभाल एवं संसाधनों के उपयोग पर सवाल खड़े होने लाजमी होगा।
रतलाम के शासकीय मेडिकल कालेज की भी कमोबेश यही स्थिति है। यहां स्वीकृत स्टाफ के मान से वर्तमान में अधिकतम 40 प्रतिशत पदों की पूर्ति हो पाई है। हालांकि कुछ समय के लिए संविदा अाधार पर नियुक्ति की जा रही है, लेकिन इसमें ट्रेंड चिकित्साकर्मी रुचि नहीं दिखा रहे हैं। नतीजतन हालात बद से बदत्तर होते जा रहे हैं। हर दिन सांसों की डोर टूट रही है, असमय अपनों को खोने वालों की सिसिकियां थमने का नाम नहीं ले रही हैं।
मरीजों की सेवा से उठता आम जन का विश्वास
लगातार हो रही मौत व अव्यवस्था के चलते शासकीय मेडिकल कालेज की सेवा पर लोगों का विश्वास कम होता जा रहा है। यही कारण है कि संपन्न परिवार निजी अस्पतालों का रुख कर रहे हैं तथा मध्यम वर्गीय परिवार यहां–वहां से रकम का बंदोबस्त कर अपने प्रिय को अन्यत्र ले जा रहे हैं। अार्थिक रूप से कमजोर परिवार केवल सरकार के भरोसे अव्यवस्था के बीच जिंदगी की जंग जीतने की कोशिश कर रहे हैं। इनमें मजबूत अात्मबल के चलते कई लोग स्वस्थ होकर घर भी लौट रहे हैं, लेकिन वर्तमान में इसका प्रतिशत कम है। गंभीर स्थिति में मेडिकल कालेज पहुंचने वाले मरीज उपचार के दौरान दम तोड़कर सीधे मुक्तिधाम पहुंच रहे हैं। रतलाम में ये स्थिति तब है, जब लंबे अरसे बाद करोड़ों की लागत के शासकीय मेडिकल कालेज की सौगात मिली है।
मरीजों के पास जाने में कतरा रहे डाक्टर
शासकीय मेडिकल कालेज में उपचार कराने पहुंचे कई गंभीर मरीज यहां की सेवाअों से असंतुष्ट होकर निजी अस्पतालों की शरण में जा रहे हैं। निजी अस्पतालों में समुचित देखरेख व उपचार से मरीज स्वस्थ होकर स्वजनों के साथ घर लौट रहे हैं। ऐसे ही कई मरीजों ने बताया कि शासकीय मेडिकल कालेज की व्यवस्थाएं दोयम दर्जे की है। वार्ड में डाक्टर अाते ही नहीं है। इससे मरीज गंभीर स्थिति में पहुंच जाते हैं। मेडिकल कालेज में केवल मरीजों को इस वार्ड से उस वार्ड में शिफ्ट करने काम चल रहा है। अब तक ऐसे कई प्रकरण सामने अा चुके हैं, लेकिन अभी तक व्यवस्था में सुधार नहीं हुअा है।
सीसीटीवी कैमरे से पोल खुलने का डर
कोविड वार्डाें में भर्ती मरीजों की स्थिति जानने के लिए लंबे समय से सीसीटीवी कैमरे लगातार कंट्रोल रूम बनाने की मांग की जा रही है, लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई सार्थक कदम नहीं उठाया गया है। इससे हर दिन मरीजों के स्वजन हंगामा कर रहे हैं।मरीजों के स्वजनों का कहना है कि मेडिकल कालेज के कोविड वार्डाें में सीसीटीवी कैमरे लगने से व्यवस्थाअों को लेकर उठाए जा रहे सवालों पर दूध का दूध अौर पानी का पानी हो जाएगा, लेकिन मोटी–मोटी पगार लेकर सेवाएं नहीं देने वालों को पोल खुलने का डर सता रहा है। यही कारण है कि मेडिकल कालेज प्रबंधन अपनी साख बचाने के लिए पारदर्शी व्यवस्था करने से बच रहा है। महज दिखावे के लिए दौड़ भाग की जा रही है। बार–बार व्यवस्थाअों के साथ प्रबंधन की जिम्मेदारी में बदलाव किया जा रहा है। इन बदलावों के बाद भी स्थिति जस की तस बनी हुई है। नतीजतन कोरोना लगातार कहर बरपा कर लोगों को असमय मौत की गहरी नींद सुला रहा है।
जनप्रतिनिधि भी साबित हो रहे नकारा
जनता का प्रतिनिधित्व करने वाले जनप्रतिनिधि भी कोरोना काल में पूरी तरह नकारा साबित हो रहे हैं। जिले में अभी भी तक किसी भी जनप्रतिनिधि ने इस गंभीर विपदा में पीड़ितों को पर्याप्त उपचार दिलाने की दिशा में कोई सार्थक पहल नहीं है। केवल वादों के लालीपाप चुसाए जा रहे हैं। वादों के लालीपाप से न तो व्यवस्थाअों में सुधार हो रहा है अौर न ही असमय काल के गाल में समाने वालों का अांकड़ों थम रहा है। मुक्तिधाम में हर दिन लाशों के ढेर पहुंच रहे हैं। लगातार चिताएं चल रही है।