उपयोगी पहल : दोनों चिकित्सा पद्धति समन्वित रूप से साथ साथ एक दूसरे को सहयोग करें तो हम ऑक्सीजन की खपत को भी कम कर सकते हैं और कईयों का बचा सकते जीवन भी
कोरोना विपदा काल में प्रत्येक व्यक्ति भयभीत भी है और अनभिज्ञ भी
डॉ. रत्नदीप निगम
मित्रों,
कोरोना के इस विपदा काल में प्रत्येक व्यक्ति भयभीत भी है और अनभिज्ञ भी। भय है परिवार का , भय है अव्यवस्थाओं का शिकार होने का, भय है मृत्यु का। यह भय सत्य के अत्यधिक करीब है। अनभिज्ञ इस दृष्टि से है कि कैसे इस विपदा के शारीरिक और मानसिक त्रास का सामना करें क्योंकि यह सभी के जीवन मे पहली बार हो रहा है।
चिकित्सा की दृष्टि से भी नए नए प्रयोग विश्व भर में हो रहे हैं और आगे भी होते रहेंगे। जो इस रोग के मानसिक व शारीरिक पीढ़ा से गुजरा है, उसके पास अपने अपने अलग अलग अनुभव है। जिन चिकित्सकों ने इस रोग की चिकित्सा की, उनके भी अपने अपने अलग अलग अनुभव है।
दोनों पैथी के चिकित्सक हो रहे सकारात्मक परिवर्तनों पर एकमत
मैं भी अपना अनुभव इस लेख में व्यक्त करना चाहता हूँ।
मैं जब कांटेक्ट ट्रेसिंग में इस रोग से ग्रस्त हुआ तो सभी मित्रों ने मुझे एलोपैथी के 3 डॉक्टरों को दिखाकर ट्रीटमेंट प्रारम्भ करने का शुभेच्छा युक्त दबाव बनाया और शाम 8 बजे तक डॉक्टरों द्वारा लिखी दुर्लभ दवाइयाँ सम्पूर्ण प्रयास करके उपलब्ध करा दी । सुबह साढ़े ग्यारह बजे अर्थात सभी जाँच करवाकर घर पहुँचकर अपने को एकांतवास में कर लेने के पश्चात एक आयुर्वेदिक चिकित्सक होने के तहत आयुर्वेद के वरिष्ठ चिकित्सकों से सलाह लेकर आयुर्वेद के औषधि योग प्रारंभ कर दिए। सुबह साढ़े ग्यारह के पहले डोज से रात्रि 8 बजे के एलोपैथी के पहले डोज तक मैं आयुर्वेद के 5 डोज ले चुका था । रात्रि 8 बजे के पूर्व मेरे शरीर मे जो जो परिवर्तन आ रहे थे, उनसे मैं अपने आयुर्वेदिक और ऐलोपैथिक चिकित्सकों को हर एक घंटे में अवगत करा रहा था । दोनो ही ओर मेरे चिकित्सक मित्रों में इस परिवर्तन को लेकर उत्साह व्यक्त किया जा रहा था क्योंकि दोनों पैथी के चिकित्सक हो रहे सकारात्मक परिवर्तनों पर एकमत थे जो कि बहुधा होता नहीं है। परिवर्तन यह थे कि बगैर सर्दी खाँसी के मेरे फेफड़े अपने आप अर्थात औषधि सेवन के असर से कफ के थक्के हल्के ठसके से बाहर फेंकने लगे।
दोनों औषधि के संयुक्त सेवन से मात्र 12 घण्टे में मैं पूर्ण स्वस्थ
दूसरा परिवर्तन यह था कि रात्रि 8 बजे तक एलोपैथी का पहला डोज लेने के पहले मैं 15 से 16 बार मूत्र त्याग करने गया । और रात्रि 11 बजे तक मैं पूर्ण स्वस्थ हो गया। अर्थात दोनो ओर के चिकित्सकीय परामर्श और दोनों औषधि के संयुक्त सेवन से मात्र 12 घण्टे में मैं पूर्ण स्वस्थ था।
उपचार में कब निकालना जरूरी
हाँ ये अवश्य बता दूँ कि मुझे वैक्सीन लगे 15 दिन हो चुके थे। अब दोनो अर्थात आयुर्वेदिक और ऐलोपैथिक औषधि का पूर्ण डोज लेने तक एकांतवास का चिन्तन एवम चर्चा प्रारंभ हुई। जब मैंने एलोपैथी के चिकित्सक मित्रों से पूछा कि कफ का इतनी आसानी से निकलना क्या कोरोना में लाभदायक है तो उन सभी ने कहा कि कफ का निकलना बहुत जरूरी है इससे एलवीओलाई में ऑक्सीजन को ग्रहण करने की क्षमता बढ़ जाती है। दूसरा मैंने पूछा कि इतना यूरिन आना क्या संकेत है, इस पर उन्होंने कहा कि इससे आपके वायरस का वायरल लोड बहुत कम हो गया।
दोनों ही परिवर्तन आयुर्वेद के मूल सिद्धांतों को प्रदान करते हैं प्रामाणिकता
अब इस दोनो मतो का आयुर्वेदिक विवेचन करें तो दोनों ही परिवर्तन आयुर्वेद के मूल सिद्धांतों को प्रामाणिकता प्रदान करते हैं। आयुर्वेद के अनुसार फेफड़ों की प्रत्येक रोग में कफ को बाहर करने की ही चिकित्सा की जाती है, जो कोरोना के लिए भी उपयुक्त है। दूसरा मूत्रवृद्धि होने का कारण बाह्य विष अर्थात वायरस के शरीर में प्रवेश करने पर उस विष को पचाने अर्थात मेटाबोलिक गतिविधियों द्वारा उसके प्रोटीन को जलाने का प्रयास आयुर्वेदिक योगों द्वारा किया जाता है जिससे मूत्रवृद्धि होकर मूत्र मार्ग से वह विष निकल जाता है। इन दोनों परिणामों पर दोनों चिकित्सा पद्धति एकमत है। अतः विचार किया गया कि वर्तमान समय में दोनों चिकित्सा पद्धति समन्वित रूप से साथ साथ एक दूसरे को सहयोग करें तो हम ऑक्सीजन की खपत को भी कम कर सकते हैं और कईयों का जीवन भी बचा सकते हैं।
अपनी पैथी का छोड़ें अहंकार
ऐसे कुछ प्रयोग मेरे शुभचिंतकों के परिचित रोगियों पर किए गए जिससे उनको तेजी से कफ निकलने लगा और ऑक्सीजन लेवल तेजी से बढ़ा। अतः मेरा यह निष्कर्ष है कि सभी चिकित्सक अपनी अपनी पैथी के अहंकार को छोड़कर इस विपदा काल में सिम्पैथी का उपयोग करें तो समाज का कल्याण होगा ।
अब मैं वो अनुभूत प्रयोग बता रहा हूँ जो कफ को निकालने में सहायक है।
काला नमक चूसना अथवा फलों पर ऊपर से डालकर सेवन करना ।
वासा, अडूसा का सिरप 2 2 चम्मच दिन में 5 बार पीना।
सज्जी खार को पानी में घोलकर पीना
फिर भी यदि कफ न निकले तो 10 गोली का योग आता है वो एक एक गोली पान के कोरे पत्ते में रखकर चूसना।
ये सभी प्रयोग अलग अलग मरीजों पर एकांतवास में बैठे बैठे किये गए और सभी मे सफलता प्राप्त हुई।
इस बारे में कोई भी मार्गदर्शन आप किसी भी आयुर्वेदिक चिकित्सक से ले सकते हैं और मुझे भी वाट्सएप पर msg कर सकते हैं। कृपया फोन करने की अपेक्षा वाट्सएप चैट करेंगे तो बेहतर होगा। ध्यान रहे हम होम क़वारन्टीन हो या हॉस्पिटल में , एलोपैथिक दवाई जो भी चलती रहे , ऑक्सीजन लगती रहे , हमें सिर्फ दूषित कफ निकालना है।
लेखक
डॉ. रत्नदीप निगम
आयुर्वेदिक चिकित्सक
मो 9827258826