थोड़ी तो शर्म करो जिम्मेदारों : अस्पताल अस्पताल भटकता रहा, नहीं मिली पनाह और चली गई अभिभाषक की जान सड़क पर

हरमुद्दा
रतलाम, 4 मई। भाई की जान बचाने के लिए भाई और मां अस्पताल दर अस्पताल भटकते रहे, लेकिन उसे कहीं पनाह नहीं मिली और अंततोगत्वा बाइक पर ऑक्सीजन की कमी के चलते दम तोड़ दिया। ऐसे जिम्मेदारों के हवाले शहर और जिले की लाखों जनता की जिम्मेदारी सौंप दी है जो कि नकारा साबित हुए जा रहे हैं। साधन संसाधन है फिर भी मात्र दिखावे के लिए। जान बचाने के लिए कतई नहीं। सेहत के जिम्मेदारों थोड़ी तो शर्म करो। यह बात हर इंसान के जेहन में उमड़ रही है जो सहानुभूति रखता है, इंसानियत रखता है। आखिर कब तक घरों की खुशियों को गम में तब्दील करते रहोगे? आखिर कब तक? यह मुद्दा हर एक परेशान जिले के रहवासी का है। निर्लज्जता की तो हद हो गई है अब।

मंगलवार को चिकित्सा जगत को शर्मसार करने वाली घटना घटित हुई। एडवोकेट सुरेश डागर की तबीयत बिगड़ने पर भाई अनिल डागर और मां मेडिकल कॉलेज पहुंचे तो वहां पर दरवाजे बंद कर दिए गए। तत्पश्चात आयुष हॉस्पिटल बंजली पहुंचे तो वहां पर भी जगह नहीं मिली। भटकते हुए काटजू नगर अस्पताल आ रहा था कि सज्जन मिल रोड स्थित श्रीराम मंदिर के सामने बाइक पर सवार अभिभाषक सुरेश डागर ने अंतिम सांस ली।

अभिभाषक सुरेश डागर

इसके बावजूद वहां मौजूद लोग परेशान परिवार की मदद को आगे नहीं आए। सभी को डर था, कहीं कोरोना संदिग्ध तो नहीं है। एक मां का बेटा और एक का भाई दुनिया से विदा ले गया। मौके पर ड्यूटी कर रहे पुलिसकर्मियों की मदद से शव को जिला अस्पताल पहुंचाया गया।

फिर भी नाकारा जिम्मेदार बने हुए जिले में

यह है हमारे स्वास्थ्य विभाग का कारनामा और जिम्मेदारों की जिम्मेदारी का एक नमूना। शर्मसार करने वाली घटना इन मोटी चमड़ी वालों पर कोई असर नहीं कर रही है। घर के लोग असमय जान गवा रहे हैं और यह जान कर भी नाकारा जिम्मेदार अंजान बने हुए हैं। लोगों का कहना है कि जिले के ऐसे जिम्मेदारों को तो तत्काल पद से हटाना चाहिए। मुख्यमंत्री और संभागायुक्त इस मामले में भी मौन है। और जिम्मेदार अपेक्षा करते हैं कि हम सकारात्मक लिखे, नकारात्मकता को भूल जाएं लेकिन जब ऐसी घटना होगी तो कलम कैसे मौन रह सकती है? पत्रकारों का जमीर अभी नाकारा जिम्मेदारों की तरह मरा नहीं है। उनमें सहानुभूति और सद्भावना कायम है।

नौटंकी के अलावा और कुछ नहीं

हर तरफ सरकार दावा कर रही है कि व्यवस्था में सुधार हो रहा है। अस्पतालों में बेड बढ़ाए जा रहे है। कहने को तो मंगलवार को 60 बेड और 70 ऑक्सीजन कंसंट्रेटर तो मिले मगर किस काम के? जिसको इसकी जरूरत थी, उस तक सुविधा नही पहुँच पाई। मेडिकल कॉलेज के बाहर 2 घंटे इंतजार के बाद परेशान परिवार भटकता रहा। समय रहते अगर इलाज मिल जाता तो शायद एक परिवार उजड़ने से बच जाता। इससे जिम्मेदारों को क्या?

हर बीमार का उपचार जरूरी अस्पताल में

हर बीमार को अस्पताल में भर्ती करना होगा, उपचार करना होगा। यह हर नागरिक का अधिकार है। क्या कारण है कि ऑक्सीजन का प्लांट मंदसौर में लग गया है, पर रतलाम में शुरू नहीं हो पाया। उपचार के अभाव में सड़क पर अभिभाषक की मौत का यह मामला अति गंभीर है, जिसकी शिकायत राज्य अधिवक्ता संघ, जिला न्यायाधीश को की है। साथ ही अभिभाषक संघ की बैठक बुलाकर इस घटना को संज्ञान में लेना का आग्रह किया है।

सतीश पुरोहित, वरिष्ठ अभिभाषक

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *