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मर चुका है जमीर जिम्मेदारों का : कमी संसाधनों की नहीं अपितु सहानुभूति, सेवा, इंसानियत की, सद्भावना खो गई खुदगरजों की

 हेमंत भट्ट

यह किसी एक शहर, एक हॉस्पिटल या एक प्रदेश की नहीं अपितु पूरे देश में इन दिनों एक ही समस्या है कोरोना वायरस से प्रभावित लोगों का उपचार नहीं हो रहा है। जिम्मेदारों का जमीर मर चुका है। साधन तो है लेकिन कमी है प्रबंधन की जिसमें पूरे देश का सिस्टम नाकारा साबित हो चुका है। कमी है तो केवल सेवा की, सद्भावना की, इंसानियत की, जो कि उन लोगों में नहीं बची है। जिम्मेदारी निभाने वालों ने राक्षसी चोला पहन लिया है। आम जन स्वास्थ्य और अन्य सुविधाओं की भीख मांगते मांगते थक रहे हैं लेकिन जिम्मेदार है कि उनकी सेहत पर कोई असर नहीं हो रहा।

मुख्यमंत्री हो या मंत्री हो। प्रदेश शासन के उच्च स्तर के आला अफसर हो या फिर निचले स्तर का पैरामेडिकल स्टाफ हो। सब के सब स्वार्थी हो गए हैं। सेवा के नाम पर बस जिंदा लाशें घूम रही है। जिम्मेदारी का चोला ओढ़े इन सभी जिम्मेदारों द्वारा केवल हव्वा खड़ा किया जा रहा है। चाहे बात रेमडेसिविर इंजेक्शन की हो या फिर ऑक्सीजन की। सरकार भी इस मामले में नौटंकी करने के सिवाय कुछ भी नहीं कर रही है।

उपचार में पारदर्शिता नितांत जरूरी

रेमडेसिविर इंजेक्शन इतना भी जरूरी नहीं है, जितना बताया जा रहा है। कमी ऑक्सीजन की नहीं आत्मीयता की है, विश्वास की है। सनातन सत्य है कि व्यक्ति दवाई से कम और सहानुभूति से जल्दी ठीक होता है। उपचार के अभाव में जिम्मेदारों के पास ना तो इंसानियत है। नहीं सद्भावना है। नहीं आत्मीयता है। जिम्मेदार बेवजह अकाल मौत मार रहे हैं। उपचार में पारदर्शिता का नितांत अभाव है। क्या कारण है कि रतलाम मेडिकल कॉलेज के आइसोलेशन वार्ड में अब तक सीसीटीवी कैमरे लगाने के बारे में चर्चा आगे तक बढ़ाई ही नहीं गई। यह लगने से भी आमजन में विश्वास होता कि उनके परिजन का अच्छे से उपचार हो रहा है। उनको दिख जाता, लेकिन काले धंधे करने वाले इसमें राजी नहीं थे, नहीं जनप्रतिनिधि। लगता है। काले कारनामे उजागर हो जाते हैं। इसीलिए इस मुद्दे पर अब तक कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकला। आज भी परिजन अंधेरे में ही है कि उनके व्यक्ति का उपचार हो रहा है लेकिन वह तो अंतिम सांसे गिन रहा होता है।

कंसेट्रेटर देने के बावजूद नहीं मिला उपचार

जनप्रतिनिधि ऑक्सीजन कंसेट्रेटर देने की औपचारिकता का समारोह करते रहे और उधर शहर के अभिभाषक ने इंतजार किया उपचार के लिए मगर सड़क पर ही उसने दम तोड़ दिया। ऐसे हैं हमारे जनप्रतिनिधि। कोई जान से जाता है जाए, उनकी बला से लेकिन दिखावे का आयोजन तो जरूर किया जाएगा। उसी दौरान सोशल मीडिया पर जनप्रतिनिधि का गुणगान किया जा रहा है कि बहुत बड़ा काम कर दिया, लेकिन एक परिवार का मुखिया इस दुनिया से विदा ले गया। उसका जरा भी दुख नहीं जताया। भला हो जावरा विधायक डॉक्टर पांडे का जिन्होंने अवस्था के शिकार हुए अभिभाषक की चर्चा मुख्यमंत्री से की।

जिम्मेदार आए कटघरे में

रतलाम भी अब तक गैर जिम्मेदारों से अछूता नहीं रहा है। 1 महीने के लॉक डाउन के बावजूद भी संक्रमण की रफ्तार कम होने के बजाय लगातार बढ़ती रही। आखिर क्या वजह रही थी है संक्रमण बड़ा? जिम्मेदार अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहे थे। अब तक तो मौत के मामले में स्वास्थ्य विभाग अमला ही कटघरे में आया है।

जरूरत है आम जनता के साथ सहानुभूति की

भले ही एक माह का लॉक डाउन  लगाकर कोरोना संक्रमण को नियंत्रित करने की नौटंकी की गई, लेकिन उसमें जिला प्रशासन बिल्कुल भी सफल नहीं हो पाया। आम जनता को परेशानी अधिक हुई। आज भी हो रही है। पिछले एक सप्ताह से घरों में आलू है ना कांदा है। घर में लोग मांदा है, फल नहीं मिल रहे हैं। सब्जी नहीं मिल रही है। यह कैसा प्रशासन है? जबकि हॉस्पिटल से ज्यादा कोरोना संक्रमित लोग होम आइसोलेट होकर स्वस्थ हो रहे हैं। यह आंकड़े रोज जिला प्रशासन जता रहा है। ऐसे घर में रहने वालों को सब्जी युक्त भोजन नहीं मिल रहा है। फल नहीं मिल रहे हैं। ऐसे में घर पर भी आ लोग कैसे स्वस्थ रह सकते हैं? यह सोचने की बात है। अस्पताल के बाहर फल की दुकान जरूर लगाई है, मगर वहां भी फल लेकर कहां अंदर जाने दे रहे हैं।

सब कुछ मिला और लोग रहे स्वस्थ

जबकि गत वर्ष दुकानें भी खुली थी। किराना सामान भी मिला। सब्जियां भी मिली। फल भी मिले और संक्रमण भी नहीं बढ़ा, घरों में मौत का मातम छाया हुआ नहीं था।

सुविधाएं सभी है, जरूरत है व्यवस्था

सुविधाएं तो सभी है बस जरूरत है समुचित व्यवस्था की जो कि अब तक जिम्मेदार नहीं कर पाए हैं लेकिन अब नवागत कलेक्टर से शहर और जिले के रहवासी अभिलाषा रखते हैं कि वे आम जनता की फिक्र करेंगे और कोरोना के बढ़ते संक्रमण को रोकने के साथ ही आमजन की जरूरत की वस्तुओं की पूर्ति करवाने में अहम योगदान देंगे।

अपेक्षा और विश्वास

इस बार वह सब कुछ हुआ जो नहीं होना चाहिए था। जिम्मेदारों को इसकी गलती का जरा भी एहसास नहीं है। इसीलिए उनके प्रति आम जनता में विश्वास और एहसान भी नहीं। लोगों को खुशी हुई है कि गैर जिम्मेदार को यहां से हटाया, शासन ने आम जनता की सुध ली और जिम्मेदार अधिकारी को भेजा है। वे जन भावनाओं के साथ खिलवाड़ नहीं करेंगे। यही अपेक्षा आमजन कर रहे हैं और वे इस पर खरे उतरेंगे ऐसा विश्वास भी है।

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