मदर्स डे पर विशेष : मां के हाथों में
आशीष दशोत्तर
यहां से वहां
और जाने कहां तक बिखरी
कई चीजें आना चाहती है
मां के पास।
बेतरतीब चीजों को सही रूप देने का
अजब हुनर है मां के हाथों में ।
मोहल्ले की औरतें तो
कायल है इन हाथों के जादू की,
अक्सर पूछ लेती है
रिश्तों की मजबूती के सूृत्र
या जानना चाहती है
सम्बन्धों को कायम रखने के लिए ज़रूरी
सलीके के बारे में,
और मां हर बार बता दिया करती है
अंदाजे़ से तेल,नमक,पानी की तरह भरोसे की बातें,
मग़र मां के हाथों का जादू
इसमें नहीं आ पाता।
मां कभी किसी चीज़ को तौलती नहीं
सिर्फ छूती है प्यार से
और फिर बेतरतीब झोंकती चली जाती है
सब कुछ जीवन की कडाही में
इस तरह कि देखने वाला समझे कि खाने वाले तो
समझो आए मुसीबत में,
मग़र हर बार स्वाद जीभ से होकर
दिलों तक पहुंचता।
मां हर काम
करती है दिल से
और काम है कि निखरता चला जाता
खुद-ब-खुद।
जैसे,
मां का स्पर्श से हम सुधर गए,
रिश्तों को मां ने छुआ और वे हो गए व्यवस्थित
वक़्त-वेवक़्त सम्बन्धों में आई दरारों को
लीप दिया स्नेह की मिट्टी से,
इस परिवार की मज़बूत इमारत की
नींव में दबे हैं मां के अनगिनत आंसू
जिनकी तुलना बेशकीमती मोतियों से भी
नहीं की जा सकती ।
मां का कठोर श्रम बिखरा है यहां हर कण में,
कै़द हैं वे मुस्कानें ज़िम्मेदारियों की आड़ में
खिलखिलाने से पहले ही जब्त हो गई भीतर
किसी कोने में।
दिखाने की गरज से अगर मां सब कुछ करती
तो दुनिया को यकीन नहीं होता कि
इतना सबकुछ सहकर कैसे खुश रही यह औरत,
सदा प्यार लुटाती रही।
इस वक़्त बेतरतीब होती यह दुनिया
आना चाहती है मां के हाथों में
दुनिया इस वक़्त बनना चाहती है,
उस रोटी की तरह
जो मां के हाथों का स्पर्श पाते ही
जान लेती है अपने
रूप,स्वाद और गंध को।