जीवन की अठखेलियां और मौत का सच

 संजय भट्ट

बचपन भी गजब होता है और मौत के बाद हर आदमी महान होता है। बचपन में कोई भी शरारत कर लो बच्चा होने की आड़ में ढंक जाएगी तथा बड़े को शिकायत करने पर उल्टा ही सुनने को मिलेगा अरे उसने जो किया आप तो बड़े थे। मतलब यही कि बच्चा कोई भी शरारत कर ले उसकी सौ गलतियां माफ हो जाती है। एक सज्जन प्रतिदिन मंदिर में दीप जलाने के लिए तेल व दीया लेकर उन शरारती बच्चों की गली से निकलते थे। जब वे निकलते थे तो बच्चों को मजबूरी में अपना खेल कुछ समय के लिए रोक देना पड़ता था।

एक दिन बच्चों को शरारत सूझी उन्होंने मिल कर निर्णय लिया कि अब जैसे ही उन साहब का वहां से निकलना होगा, एक बच्चा जिसके हाथ में गिल्ली डंडा खेलने का डंडा होगा वह उनकी साईकिल के पहिए में डंडा डाल कर गिरा देगा। हांलाकि खेल उस दिन के लिए रूक जाएगा लेकिन हमेशा के लिए संकट से मुक्ति मिल जाएगी। बच्चों की योजना सफल रही, वे जैसे ही साईकिल लेकर उस गली से निकले बच्चे ने साईकिल के पहिए में डंडा फंसा कर उन्हें गिरा दिया। वे समझ ही नहीं पाए कि किस बच्चे की शरारत होगी। सारा तेल गिर गया तथा मिट्टी का दीया टूट गया। अब काटो तो खून नहीं ऐसा गुस्सा आ रहा था, लेकिन मौके से सारे बच्चे नदारद किसको दोष दिया जाए। उन्होंने अपने एक परिचित को ही लक्ष्य बनाया तथा शिकायत करने पहॅुच गए। परिचित ने चिर परिचित अंदाज में कहा अरे साहब आप भी कहां बच्चों के चक्कर में फंस गए, बच्चे तो बच्चे है। कर दी होगी किसी ने शरारत फिर भी देख लेंगे।
बच्चों की  ऐसी ही घटना एक स्कूल के सामने घटित हुई। गांव का स्कूल तथा पड़ौस में इमली का पेड़। शाला में दोपहर का भोजनावकाश का समय ठंड का समय। बच्चों का शरारती मन जाग गया। उन्होने इमली के पेड़ पर पत्थर मारना शुरू कर दिए। उधर से जाते हुए एक व्यक्ति के पास पत्थर गिरा तो उसने शिक्षकों से शिकायत का मन बनाया। शिक्षक भी नए थे उन्हें भी बच्चों की शरारत में आनंद मिलता था। उन्होने शिकायत करने वाले से कहा चलो हम भी पत्थर फैंक कर इमली गिराते हैं। शिकायत करने वाले का पारा सातवें आसमान पर पहॅुच गया। उसने कहा हमारी उमर है, हम पत्थर फैंक कर इमली गिराएंगे। शिक्षक ने भी विनम्रतापूर्वक कहा श्रीमान मैं भी तो यही कह रहा हॅू, यही उम्र है शरारत की । इस तरह बचपन की सभी शरारतें माफ हो जाती है। बशर्तें वह सिर्फ शरारत हो। सभी के मुॅंह से एक ही वाक्य निकलता है, जाने दो जी बच्चा है।

अब बात करें मरने वाले की। हर मरने वाला आदमी भी उस बच्चे की तरह सारे गुनाहों की माफी पा जाता है, जो उसने उम्रभर किए हों। लोगों के मुॅंह से एक ही वाक्य सुनने को मिलता है, कैसा भी था लेकिन अच्छा था। उम्र के किसी पड़ाव पर मौत हो वह व्यक्ति के पिछले सभी बुरे कामों को भूला कर सिर्फ अच्छे कामों को याद करवा देता है। चाहे कितना भी खूंखार व्यक्ति रहा हो, उसने अपने जीवन काल में कोई ऐसा काम नहीं किया हो जिसके बूते उसे याद रखा जा सके, लेकिन जब उसकी मौत होती है, सभी यही कहते हैं, कैसा भी था लेकिन अच्छा था। इसलिए मानकर चलिए जीवन में आपके सौ दुश्मन हो लेकिन कुछ समर्थक भी होते हैं। यही समर्थक आपके अंतिम समय में आपके मृत शरीर को अपने कंधो पर ढो कर श्मशान तक ले जाते हैं। वहां कभी कोई विरोधी नहीं होता और कोई विरोधी होता भी है तो वह समझ जाता है कि अब जिस व्यक्ति का विरोध था वही नहीं रहा तो विरोध किस बात का, इसीलिए वह भी कहता है- कैसा भी था, उसकी मेरी कभी नहीं बनी पर व्यक्ति दिल का अच्छा था।

ये जिन्दगी भी अजीब है साहब कभी बचपन की शरारतों को माफ करवा देती है तथा मरने के बाद जीवन की गलतियों को, लेकिन फिर भी मन में विद्वेष पाल कर हम कहां जाने का विचार कर रहे हैं। बचपन की शरारतों को जिन्दगी भर याद नहीं रखा जा सकता तथा बचपन बीत जाने के बाद उन शरारतों को कभी किया भी नहीं जा सकता। मरने के बाद एक व्यक्ति का नहीं उसकी विचारधारा, उसके कार्यों, उसकी प्रेरणाओं तथा उसके सभी अच्छे-बूरे काम उसके साथ ही खतम हो जाते हैं। इसलिए तो कहा गया है- जीवन को जीवनभर उल्लास के साथ जियो और अपने व्यवहार से औरों को भी जीवन जीने का पुरा अवसर दो। भगवान महावीर भी कह गए जियो और जीने दो।

 संजय भट्ट

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *