मुख्यमंत्री का रतलाम आगमन : मुद्दों के जवाब देने से बचते मुख्यमंत्री और मीडिया से दूरी, सच से सामना करने का नहीं माद्दा
हेमंत भट्ट
संभवतया बुधवार को प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का दोपहर में रतलाम आगमन होगा लेकिन कोरोना वायरस उपचार में की गई लापरवाही के मुद्दों सहित प्रशासन की गैर जिम्मेदाराना हरकतों के सवालों से बचते हुए मीडिया से दूरी बनाए रखेंगे। लगता है सच से सामना करने का माद्दा इस बार मुख्यमंत्री में नहीं है। क्योंकि रतलाम का मीडिया ताउते तूफान से भी ज्यादा खतरनाक भाले चुभाने वाला है।
कोरोनावायरस के बढ़ते हुए संक्रमण काल में रतलाम जिले रहवासी खासे परेशान हुए। ना तो उपचार मिला। ना ऑक्सीजन मिली। ना बेड मिले। ऐसे कई ज्वलंत मुद्दों पर आमजन सहित खास जन काफी परेशान हुए। लेकिन जिला प्रशासन कुछ भी नहीं कर पाया, कुछ भी नहीं। सैकड़ों परिवारों ने अपनों को खोया है। उसका दंश जीवन भर रहेगा। जिला प्रशासन के खास जिम्मेदार की लापरवाही और गैर जिम्मेदाराना हरकत को जब मीडिया ने उछाला तो। मुख्यमंत्री ने कलेक्टर को बदल दिया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। हजारों लोग कोरोना वायरस की चपेट में आ चुके। वायरस का फैलाव गांव-गांव व डगर डगर पर हो गया। कई बच्चों के सिर से माता पिता का साया उठ गया तो कई माता-पिता के लाल छीन लिए। किसी की मांग उजड़ी, तो किसी की कोख।
आखिर ऐसे कैसे प्रदेश के मुखिया हैं, जो रतलाम के जिम्मेदार अधिकारी, स्वास्थ्य अधिकारी जो कि अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करने में हर दिन नाकारा सिद्ध हो रहे थे और प्रदेश के मुखिया ने एक्शन लेने में काफी देर कर दी। उसका खामियाजा लाखों लोगों को भुगतना पड़ रहा है। इसका अंदाजा भी नहीं है।
जिम्मेदारों को यह नागवार गुजरा
मामला चाहे उपचार के अभाव में सड़क पर दम तोड़ते अभिभाषक डागर का हो या फिर मेडिकल कॉलेज के गेट के बाहर दम तोड़ते व्यक्ति का। आमजन के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं की दरकार करने वाले पत्रकार के के शर्मा पर झूठे प्रकरण का हो। या फिर उपचार में पारदर्शिता के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाने का हो। करोड़ों से बने मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन प्लांट नहीं होने का हो। यह सभी टालते जा रहे हैं।
मीडिया ने पहले भी कहा है कि उनके परिजनों के पास उन्हें रहने दिया जाए ताकि वह ठीक से देखभाल कर सके लेकिन? मेडिकल कॉलेज के जिम्मेदारों को यह नागवार गुजरा और एक के बाद एक मौत का सिलसिला चलता रहा। जबकि प्रशासन ने ही कहा कि होम आइसोलेट होने वाले मरीजों को अधिक संख्या में डिस्चार्ज किया गया। आंकड़े चीख चीख कर बोल रहे थे कि मेडिकल कालेज से स्वस्थ होने वाले कम निकल रहे हैं, जबकि घरों में ही उपचार कर ठीक होने वाले की संख्या काफी अधिक है। जब यह बातें मीडिया ने प्रसारित और प्रकाशित की तो? जिम्मेदारों ने आंकड़े देना भी बंद कर दिया और केवल एक आंकड़ा दे दिया। आज इतने डिस्चार्ज हो गए। अब मेडिकल कॉलेज से कितने हुए और होम आइसोलेशन से कितने डिस्चार्ज हुए यह बात फिर छुपाने लगे। इतना ही नहीं, हर दिन की रिपोर्ट जो कि शाम 6:00 से 7:00 बजे तक आनी चाहिए। वह रात 12 व 1 बजे तक दे रहे। इस पर भी कोई नियंत्रण जिम्मेदारों का नहीं रहा और मंगलवार की बीती रात को यह जानकारी भी नहीं दी गई कि कितने संक्रमित हुए और कितनों को डिस्चार्ज किया गया।
व्यापारियों के माथे पर है शिकन
व्यापार व्यवसाय ठप पड़ा है। गर्मी की सीजन वाले सभी व्यापारी पिछले साल और इस साल याने कि 2 साल से परेशान हैं। गोदाम माल से भरे पड़े है, लेकिन बिकेगा कैसे? यह चिंता उन्हें सता रही है। साथ ही उधारी में लिया गया माल कब बिकेगा, इसके कारण माथे पर शिकन है। कर्जा कैसे चुकाएंगे? मुद्दा आमजन की रोजी रोटी का हो? या कोई और? काफी मुद्दे हैं जो इन दिनों से सुलग रहे हैं लेकिन उन घर में चूल्हा नहीं जल रहा है, जो रोज मजदूरी करते हैं और शाम को आटा दाल नून तेल लेकर घर जाते हैं। तब जाकर 2 जून की रोटी नसीब होती है। सैकड़ों परिवार रोटी के लिए मारे मारे फिर रहे हैं।
जनप्रतिनिधि की मौन चुप्पी न जाने क्या क्या बयां कर रही है?
रतलाम शहर में इतना लंबा लॉक डाउन खींचना केवल और केवल जिला प्रशासन की नाकामी और गैर जिम्मेदाराना हरकत का ही परिणाम है। इसके बाद भी जिम्मेदारों ने शहर सैनिटाइज करने की बात हो या फिर साफ सफाई की हो, सभी मुद्दों को क्यों नजरअंदाज किया है। आज भी शहर में 3 से 4 दिन में सफाई हो रही है। नालियां गंदगी से पटी पड़ी हुई है। 3 दिन पहले हुई बारिश ने नगर निगम की नाकारा हरकतों की पोल खोलकर रख दी। सड़कों पर नाली की गंदगी फैल गई। संक्रमण और बीमारी के दौर में भी साफ सफाई नहीं होगी तो फिर कब होगी? गली मोहल्लों में सेनीटाइजर नहीं हुआ है और नगर निगम डींगे हाँक रही है कि हम सेनीटाइज कर रहे हैं। इन मुद्दों पर जनप्रतिनिधि की मौन चुप्पी न जाने क्या क्या बयां कर रही है?
रतलाम की फिजा बिगाड़ने वाले को सजा कब मिलेगी?
आम जनता के मुद्दों को उठाने वाले उनकी समस्याओं को बताने वाले पत्रकारों से ही कन्नी काट रहे मुख्यमंत्री आखिर कब तक? सवालों के जवाब देने से बचते रहेंगे। और जिन्होंने गलती कि उन्हें कब सजा देंगे? आमजन में यही चर्चा है कि ऐसे नाकारा अधिकारियों को शासन रखती ही क्यों हैं? इन्हें भी समय से पूर्व रिटायर्ड क्यों नहीं कर दिया जाता? एक जिम्मेदार तो गैर जिम्मेदाराना हरकत करके हवा हो गए, उन्हें कोई सजा नहीं मिली। लेकिन जो बेकसूर थे वे आज भी सजायाफ्ता की तरह घरों में कैद हैं। रतलाम जिले की जनता को कोरोना की कैद से कब मुक्ति मिलेगी?