भूसे के ढेर में सूई की तलाश
संजय भट्ट
मेरा मन हुआ कहीं घूम आए। घर में रहकर परेशान हो चुका था। सैर करने निकला तो चलता गया, इस चाल चलन में हरियाली निहारता खेत खलिहान तक पहुॅंच गया था। मैने वहाॅं कुछ लोगों को भूसे के बड़े से ढेर में कुछ तलाश करते हुए देखा। मैं चलते चलते ठिठक गया, सोचा रूक कर पूछा जाए, लेकिन न जाने क्या धून सवार थी घुमने ही चलता गया। चलते हुए मन में वही सवाल चल रहा था आखिर ये लोग इतने बड़े भूसे के ढेर में क्या तलाश कर रहे हैं? कुछ दूर चलने के बाद मुझसे रहा नहीं गया। मैं पलट आया उन लोगों तक जो भूसे के ढेर के कुछ तलाश कर रहे थे। उनके पास जाकर पूछा ’भाई क्या कर रहे हो?’ कोई जवाब नहीं मिला। उन पर भी मेरी ही तरह तलाश करने की धून सवार थी। आखिरकार उन्होंने भूसे के ढेर को बिखेर कर रख दिया और हताश होकर बैठ गए।
मैने एक आदमी जो उनमें काफी बूढ़ा सा दिख रहा था, उससे अपना सवाल दोहराया ’आप लोग क्या तलाश कर रहे थे, इस ढेर में?’ व्यक्ति थोड़ा सकुचाते हुए बोला- ’सूई‘। मुझे यह सुनते ही जोरदार ठहाका लगाने का मन हुआ, लेकिन अपने जिज्ञासु मन पर काबू करते हुए मैने उनका मनोबल बढ़ाने के उद्देश्य से कहा- अच्छा वह गुम कैसे हो गई? आदमी ने कहा भाई साहब आप शहरी आदमी हो आप के समझ का मामला नहीं है। फिर भी बता देता हूॅं यह आजकल के बच्चे हैं, सूई क्या होती है इसका महत्व ही नहीं समझ पाते खेलते हुए फैंक दी कहीं। अब जब जरूरत पड़ी तो कह रहे हैं, इसी ढेर में फैंकी थी, सो वही तलाश कर रहे हैं।
वैसे उस बूढ़े ने ठीक ही कहा था, मैं भी सूई का महत्व नहीं समझ पा रहा था। मेरी जिज्ञासा और बढ़ गई थी। मैनें पूछा आखिर सूई इतनी महत्वपूर्ण कैसे?
उस बूढ़े ने एक सवाल के साथ तफ्सील से समझाना शुरू किया। आप कभी जंगल की ओर गए हैं? मैंने हाॅ में सिर हिला दिया। उसने कहा- फिर ठीक है आप समझ सकते हैं। जंगल में कई तरह के पेड़ होते हैं, उनमें कई तरह के कांटे होते हैं। दरअसल आप जैसे पढ़े लिखे लोगों को यही समझाया जाता है कि यह कांटे उन पेड़-पौधों की सुरक्षा के लिए होते हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि पेड़-पौधों के कांटे सुरक्षा के साथ ही साथ उनको और जमीन की मिट्टी को बांधे रखने में भी मदद करते हंैं। यही काम हमारे लिए सूई करने लगी है। सूई धागे के साथ मिल कर किसी भी कटे हुए कपड़े को सिल सकती है। निश्चित समय तक अपनी उपस्थिति के बाद वह धागे को छोड़ कर उस कटे हुए कपड़े को नया आकार दे सकती है। दरअसल यही सत्य है कि सूई जोड़ने का काम करती है।
मुझे कुछ एहसास होने लगा। यह छोटी सी सूई जोड़ने का काम करती है। वास्तव में मैंने कभी ऐसा सोंचा ही नहीं था। मुझे लगने लगा कि आज का समाज इसी भूसे के ढेर की तरह हो गया है, जिसमें कहीं सूई गुम हो गई है। तब मैं सूई के आकार प्रकार व्यवहार विचार सभी के बारे में लगातार सोंचता हुआ घर आ गया।
घर पर भी मेरा मन नहीं लग रहा था। रह-रह कर भूसे के ढेर तथा उसमें गुमी सूई का सवाल मुझे परेशान कर रहा था। विचार कर रहा था कि लोगों ने अपने मतलब के लिए फसल बोई, उगाई दाना आने पर खाने योग्य दाना बटोर लिया और भूसे को छोड़ दिया खुले में। इस भूसे के हर एक तिनके का आकार प्रकार तो सूई की तरह है, लेकिन चुभोने के लिए किसी कटे हुए जोड़ने के लिए नहीं। ठीक उसी तरह हमारा समाज भी उन चुनिन्दा लोगों को अनाज के दानों की तरह तवज्जो देता है और कई लोग भूसे ढेर की तरह बिखरे पड़े रहते हैं, इनमें बिना धागे की सूई को तलाश कर पाना संभव नहीं है।
उस दिन के बाद लगातार समाज के भूसे में गुम हुई सूई को लगातार तलाश कर रहा हूॅं, लेकिन अभी तक तलाश जारी है। मुझे यकीन है उन लोगों की तरह मैं भी एक दिन भूसे में खोई हुई सूई को तलाश कर लूंगा और मेरा बिखरा बिखरा सा समाज फिर एक साथ जुड़ जाएगा। वही सूई जो किसी धागे के साथ मिल कर कपड़े को नया आकर दे सकती है तथा समाज को नई दिशा भी।