फादर डे पर विशेष : अगर पिता होते
आशीष दशोत्तर
पिता अगर आज होते
तो पूरे पचहत्तर बरस के होते
पिता के होने और न होने के बीच है अगर।
अगर पिता होते तो
होता पूरा परिवार
होती तमाम खुशियां,
होते वे सारे सुहाने पल जो
हो सकते हैं सिर्फ
पिता के होने पर ही।
पिता थे तो घर में था एक विश्वास,
आधी रात को पिता के
गूंजते खर्राटों से घरवाले तो क्या
पड़ोसी भी हो जातेे थे परेशान,
रोज़ कहते, मन्ना दादा कम लिया करो खर्राटे,
और पिता हर बार की तरह कहते-
मैं कहां लेता हूं खर्राटें।
सच भी है पिता को कहां
अहसास हो पाता था खर्राटे का।
ठीक वैसे ही जैसे
पिता नहीं जान पाते थे
कि उनका होना कितना
ज़रूरी है हमारी कायनात के लिए,
कि उनके होने से ही
आंगन में फुदकती है चिड़ियां,
कि उनके हाथों से ही खाती है
गाय रोटी,
कि उनकी पूजा से खुश
होते है भगवान,
कि उनके चढाए जल से ही तृप्त
होता है पीपल,
कि उनकी हाथों में बंधी घड़ी से
चलता है घर का वक्त,
कि उनकी खरखराहट से
सावधान हो जाते हैं सब,
कि उनकी साइकिल पर बैठ
हमने देखी है दुनियादारी
कि उनके मौन से सीखे हैं हम
जीवन की शब्दावली,
कि उनकी एक मुस्कान
कितनी कीमती थी हमारे लिए।
आज पिता नहीं हैं पर मौजूद हैं हवा की तरह,
खुश्बू के जरिये।
अगर पिता होते तो
ये हवा और खुश्बू कितनी हसीन होती।
आशीष दशोत्तर
12/2,कोमल नगर,बरबड़ रोड़
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