किन्तु, परन्तु, मगर, बट, लेकिन
आशीष दशोत्तर
कमाल हो गया । शब्दों में इतनी शक्ति होती है उन्हें इसका एहसास पहली बार हुआ। पांच तत्वों से बनी उनकी काया निष्प्राण होने के करीब थी । जीवन महत्वहीन साबित हो रहा था। उनके भीतर का महान व्यक्तित्व अवसान के निकट था।
ऐसे नाजुक मोड़ पर उन्हें पांच शब्दों ने जीवनदान दे दिया। लगभग व्यर्थ और निष्प्रभावी करार दिए जा चुके उनके लिए यह किसी चमत्कार से कम नहीं था। उन्होंने यह नया जीवन पाने के पहले कितने कष्ट सहे, पूछिए मत। अक्सर व्यक्ति इस बात से दुःखी रहता है कि उसकी कही छोटी सी बात पर लोग क्या-क्या कह डालते हैं। बात का बतंगड़ बना देते हैं । मगर इनके साथ मामला अलग था । इनकी किसी भी बात पर कोई कुछ कहता ही नहीं था। यही इनके लिए चिंता का कारण था। इसी चिंता में इनके प्राण सुखिया रहे थे।
वे हर क्रिया पर प्रतिक्रिया देते मगर उनकी प्रतिक्रिया पर किसी की क्रिया नहीं होती।अब तक वे क्रिया- प्रतिक्रिया के नियम को नहीं समझ पाए थे । इस चक्कर में कई बार न्यूटन को कोसते , जिसने हर क्रिया के विपरीत और बराबर प्रतिक्रिया की बात तो कही मगर ‘प्रतिक्रिया पर क्रिया’ का खुलासा नहीं किया।
यह तो भला हो इस ज्ञान का जो अस्वीकृति की अट्टालिकाओं से टकरा-टकरा कर उन्हें मिल गया। जब से उनके जीवन में किंतु, परंतु, मगर, बट, लेकिन ‘पंच तत्वों’ का समावेश हुआ है उनका जीवन फिर से पटरी पर आ गया है। उनकी प्रतिक्रिया को बराबर सम्मान मिलने लगा । उन्हें अब समझ आया कि गरिष्ठ जिस प्रकार पचता नहीं उसी प्रकार वरिष्ठ किसी को पचाता नहीं । लिहाजा उन्होंने भी अपने जीवन में इन पांच शब्दों का समावेश कर स्वयं को वरिष्ठ बना लिया ।वे देखते ही देखते सम्मानित हो गए । उनकी प्रतिक्रिया पर सब लोग ध्यान देने लगे,क्योंकि उसमें कुछ न होकर भी किन्तु-परन्तु होता । जैसे वे किसी रचना को पढ़कर कहते, ‘यह लिखी तो ठीक है मगर इसमें वह बात नहीं आ पाई।’ अब यहां ‘वह बात’ कौन सी है यह वे भी नहीं जानते, मगर उनका इतना कहना सामने वाले को यह आभास तो दिला देता कि उन्होंने रचना को गंभीरता से पढ़ा है।
पहले वह किसी भी बात पर सीधी सी प्रतिक्रिया दे दिया करते थे , जो अक्सर प्रशंसा का भाव लिए होती थी । उस पर कोई गौर नहीं करता था। सबको लगता था कि यह बहुत सामान्य सी प्रतिक्रिया है। जब से ‘पंच शब्दीय पंच’ शामिल किया, उनकी गाड़ी कहीं पंचर नहीं हुई। इतना ही नहीं, अपनी पुरानी लिखी प्रतिक्रियाओं को निकाला, उनमें किंतु -परंतु जोड़ा और फिर से छपने के लिए भेज दिया। पिछली बार अस्वीकृत हुई रचनाएं इस बार तत्काल स्वीकृत हो गईं। शब्द शक्ति के चमत्कार से वे अभिभूत हैं । इन पांच शब्दों के पहले तो उन्होंने कुछ सीखा ही नहीं था इन पांच शब्दों से प्राप्त सफलता के बाद वे किसी भी नए शब्द को सीखने के मूड में नहीं है। यह भी किसी चमत्कार से कम है क्या?
आशीष दशोत्तर