पहचान का पानी
संजय भट्ट
सावन के महीने में बरसती बूॅंदों के बीच मेघों की गड़गड़ाहट से व्याकुल हुए मन के साथ चाय पीते हुए ऐसे ही रहीमदास जी याद आ गए। रहीमदास जी की याद आई तो उनका पानी वाला दोहा भी याद आ गया। जिसमें मोती, मनुष्य और चूने का पानी उतर जाने के बाद कोई महत्व नहीं होता है। अब इनमें दो निर्जीव तथा एक सजीव है। निर्जीव तो अब भी अपने पानी के चिंतित है, लेकिन सजीव की परिस्थिति बदलती रहती है। इन सजीव मानवों का कहना साफ है, परिवर्तन संसार का नियम है। फिर एक जगह बंधा हुआ पानी सड़ जाता है। पानी और समय का तो बहाव ही अच्छा लगता है।
समय कभी रूकता नहीं और पानी अपना रास्ता खुद बना लेता है। बस इसी को आदर्श मान कर मनुष्यों की जमात ने अपना काम निकालना शुरू कर दिया। समय के साथ चलते हुए पानी की तरह अपना रास्ता चुन लेते हैं। मनुष्यों के पास नजर भी होती है, इसलिए वह डूबते और उगते सूर्य हो पहचान लेते हैं। जानते भी है कि डूबता सूरज अंधेरा लेकर आएगा और उगता सूरज उजाला। अब भला अंधेरा, रात, बेरोशन सा जीवन किसको पसंद है। सभी उजाले की ओर भागते हैं, चमक के साथ रहना पसंद करते हैं।
मैं इन्हीं खयालों में खोया था कि अचानक चाय खतम हो गई और घने बादलों के कारण अंधेरा भी होने लगा। चाय का कप रखते हुए बहते पानी को देख कर विचार आया कि यह पानी बहकर चला जाएगा, सड़कों से नालियों में, नालियों से नदियों में और नदियों से सागर में। फिर सागर से बादल बन कर बरस जाएगा और यह क्रम निरंतर चलता रहेगा।
यही क्रम मनुष्य ने अपने जीवन में भी चलाना शुरू कर दिया है। मोती का पानी उतर जाए तो वह चमक खो देता है और चूना से पानी हट जाए तो वह राख हो जाता है, लेकिन मानव का पानी ने कलयुग में अपना स्तर बदल लिया है। वैश्वीकरण के इस दौर में यहां से पानी उतरा तो वह दूसरे स्थान पर नए रंग से नया दौर ले आता है।
मानव सामाजिक प्राणी है और किसी से भी मेलजोल करने में देर नहीं करता है। अब पानी की क्या बिसात जो उसके मेलजोल करने के झटके से बच जाए। पानी से मनुष्य की ऐसी जान पहचान हो गई है कि अब उसके उतार चढ़ाव का उस पर कोई असर नहीं होता है। सिक्कों की चमक और उनकी खनक से पानी को अपने इशारों पर नाच नचाने लगा है। मनुष्य से पानी इस पहचान ने इस दौर में रहीमदास जी के दोहे की मूल भावना को बदल दिया है। मोटी खाल के कारण पानी भी बह कर निकल जाता है। पानी से पहचान कर मनुष्य ने बता दिया है कि वह ही दुनिया में सर्वश्रेष्ठ है। अपनी इसी श्रेष्ठता के बूते पर मानव ने पानी को मात देने में सफलता प्राप्त कर ली हो, लेकिन फिर भी पानी को ठंडी आग कहा जाता है, यह जब अपनी पर आता है तो फिर रास्ते में आने वाली बड़ी से बड़ी बाधा को दूर करते हुए अपने साथ बहा ले जाता है। इसलिए पहचान कितनी भी नजदीकी हो गई हो,लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि पानी अभी भी मोती और चूने के साथ मनुष्यों से भी जुड़ा है।
संजय भट्ट