अच्छी सोच रखने में कुछ नहीं लगता, फिर भी दरिद्र होते है इंसान- पद्मभूषण श्रीमद्विजय रत्नसुन्दरजी

हरमुद्दा
रतलाम, 14 अप्रैल। जीवन में यदि शुभ भाव आ जाए, तो समझ लेना कि हम जाग गए है। शुभ भाव का मतलब व्यापक होना है। अच्छी सोच रखने में कुछ नहीं लगता, लेकिन फिर भी सोच के मामले में इंसान दरिद्र होता है। शुभ भाव, स्नेह भाव, सद्भाव और समर्पण भाव से जीवन स्वर्ग बन सकता है। ये चार भाव नहीं होते, तो दुर्भाव, दुष्प्रभाव और दुश्मनी का भाव हावी होता है। इनसे बचने के लिए जीवन में व्यापकता, विलीनता, विशिष्टता और विशुद्धता जरूरी है।
यह बात राज प्रतिबोधक, पद्मभूषण, सरस्वतीलब्धप्रसाद, परम पूज्य आचार्य श्रीमद्विजय रत्नसुन्दर सूरीश्वरजी महाराज ने कही।
जो जितना तपता, वह ऊंचाई पर जाता Screenshot_2019-04-14-18-16-11-972_com.google.android.gm
सैलाना वालो की हवेली, मोहन टॉकीज में श्री देवसुर तपागच्छ चारथुई जैन श्रीसंघ, गुजराती उपाश्रय एवं श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी जैन श्वेताम्बर पेढ़ी द्वारा आयोजित 11 दिवसीय प्रवचनमाला में जीना है, जीतना है कि जागना है? विषय पर प्रवचन देते हुए उन्होंने कहा कि पानी का नीचे जाना उसका अस्तित्व और टिककर बर्फ बनना व्यक्तित्व है, लेकिन भाप बनकर उपर जाना प्रभुत्व का परिचायक है। यही स्थिति दूध की भी होती है। दही बनना उसका अस्तित्व, दूध रहना व्यक्तित्व और घी बनना प्रभुत्व दर्शाता है। प्रभुत्व ऐसे ही प्राप्त नहीं होता, उसके लिए पानी हो, दूध हो अथवा कोई अन्य हो, सभी को तपना पड़ता है।आध्यात्म के क्षेत्र में भी जो जितना तपता है, वह उतनी उंचाई प्राप्त करता है।
समर्पण भाव के बिना प्रभुत्व संभव नहीं
आचार्यश्री ने कहा कि प्रभुत्व के क्षेत्र में आगे जाने के लिए जिस प्रकार शक्कर दूध में मिलती है, तो उसके कण-कण में व्यापक होकर शुभ भाव दर्शाती है। उसी प्रकार हमारे मन में सबको लाभ देने का शुभ भाव हो,जो व्यापकता का परिचायक होगा। नमक यदि नदी में विलीन होता है, तो यह जगत के प्रति उसका स्नेह भाव है। दूसरो की पीड़ा के प्रति चेतना ही हमारे स्नेह भाव को दर्शाता है। अर्थात हमे विलीनता का भाव आना चाहिए। उन्होंने कहा कि नदी सागर में जाती है, तो विशिष्ट बन जाती है। उसका कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं रहता,लेकिन उसका स्वरूप विराट हो जाता है। यह नदी का सद्भाव है। व्यापकता, विलीनता, विशिष्टता के बाद विशुद्ध भाव के लिए समर्पण का होना जरूरी है। समर्पण भाव के बिना प्रभुत्व प्राप्त नहीं किया जा सकता।
सोमवार को “मुझे कुछ कहना है” विषय पर प्रवचन
आचार्यश्री 11 दिवसीय प्रवचनमाला में सोमवार को मुझे कुछ कहना है, विषय पर प्रवचन देंगे। संचालन मुकेश जैन ने किया।

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