वेब पोर्टल हरमुद्दा डॉट कॉम में समाचार भेजने के लिए हमें harmudda@gmail.com पर ईमेल करे एक सप्ताह का असर : …और अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा, राष्ट्रपति ने छोड़ा देश -

एक सप्ताह का असर : …और अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा, राष्ट्रपति ने छोड़ा देश

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 राष्ट्रपति ने कहा खून खराबे से बचने के लिए किया ऐसा

 इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान’ का नाम देने की उम्मीद

हरमुद्दा
सोमवार, 16 अगस्त। लगभग दो दशकों में सुरक्षा बलों को तैयार करने के लिए अमेरिका और नाटो की ओर से अरबों डॉलर खर्च किए जाने के बावजूद तालिबान ने आश्चर्यजनक रूप से एक हफ्ते में लगभग पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति देश छोड़कर ताजिकिस्तान चले गए हैं। राष्ट्रपति भवन पर भी तालिबानियों ने कब्जा कर लिया है। राष्ट्रपति ने कहा कि खून खराबे से बचने के लिए ऐसा कदम उठाया है।

रविवार की शुरुआत तालिबान की तरफ से पास के जलालाबाद शहर पर कब्जा करने के साथ हुई, जो राजधानी के अलावा वो आखिरी प्रमुख शहर था जो उनके हाथ में नहीं था। अफगान अधिकारियों ने कहा कि आतंकवादियों ने मैदान वर्दक, खोस्त, कपिसा और परवान प्रांतों की राजधानियों के साथ-साथ देश की सरकार के कब्जे वाली आखिरी सीमा पर भी कब्जा कर लिया। बाद में बगराम हवाई ठिकाने पर तैनात सुरक्षाबलों ने तालिबान के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है। वहां एक जेल में करीब 5,000 कैदी बंद हैं। बगराम के जिला प्रमुख दरवेश रऊफी ने कहा कि इस आत्मसमर्पण से एक समय का अमेरिकी ठिकाना तालिबान लड़ाकों के हाथों में चला गया। जेल में तालिबान और इस्लामिक स्टेट समूह, दोनों के लड़ाके हैं। तालिबान लड़ाकों का एक बड़ा समूह राजधानी काबुल में स्थित राष्ट्रपति भवन के भीतर नजर आ रहा है। तालिबान की तरफ से अफगानिस्तान पर अपने कब्जे की घोषणा राष्ट्रपति भवन से करने और देश को फिर से ‘इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान’ का नाम देने की उम्मीद है।

फिर से हुआ कब्जा

बीस साल की लंबी लड़ाई के बाद अमेरिकी सेना के अफगानिस्तान से निकलने के कुछ ही दिनों के भीतर लगभग पूरे देश पर फिर से तालिबान का कब्जा हो गया है। रविवार सुबह काबुल पर तालिबान लड़ाकों की दस्तक के बाद राष्ट्रपति अशरफ गनी ने देश छोड़ दिया। वहीं देशवासी और विदेशी भी युद्धग्रस्त देश से निकलने को प्रयासरत हैं। हालांकि काबुल हवाईअड्डे से वाणिज्यिक उड़ानें बंद होने के कारण लोगों की इन कोशिशों को झटका लगा है।

दूतावास के कर्मचारियों का निकाल रहा है व्यवस्थित रूप से

अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन के अनुसार अमेरिका काबुल स्थित अपने दूतावास से बाकी बचे कर्मचारियों को व्‍यवस्थित तरीके से बाहर निकाल रहा है। हालांकि उन्होंने जल्दीबाजी में अमेरिका के वहां से निकलने के आरोपों को तवज्जो नहीं देते हुए कहा कि ये वियतनाम की पुनरावृत्ति नहीं है। अमेरिकी दूतावास के कर्मचारी परिसर खाली करने से पहले दस्तावेज और अन्य सामग्री को नष्ट कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने जोर देते हुए कहा कि ये बहुत सोच-समझकर और सुनियोजित तरीके से किया जा रहा है। ये सब कुछ अमेरिकी सुरक्षाबलों की उपस्थिति में हो रहा है, जो वहां हमारी सुरक्षा सुनिश्चित कर रहे हैं।

नागरिकों में भय, देश छोड़कर जाने को तैयार

काबुल स्थित अमेरिकी दूतावास को खाली करने के क्रम में रविवार को परिसर से सैना के हेलीकॉप्टर लगातार उड़ान भरते रहे। नागरिक इस भय से देश छोड़ना चाहते हैं कि तालिबान उस क्रूर शासन को फिर से लागू कर सकता है, जिसमें महिलाओं के अधिकार खत्म हो जाएंगे। नागरिक अपने जीवन भर की बचत को निकालने के लिए नकद मशीनों के बाहर खड़े हो गए। वहीं काबुल में अधिक सुरक्षित माहौल के लिए देश के ग्रामीण क्षेत्रों में अपने घरों को छोड़कर आए हजारों की संख्या में आम लोग पूरे शहर में उद्यानों और खुले स्थानों में शरण लिए हुए दिखे।

राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर गए ताजिकिस्तान

अफगान राष्ट्रीय सुलह परिषद के प्रमुख अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने इसकी पुष्टि की कि अशरफ गनी देश से बाहर चले गए हैं। अब्दुल्ला ने कहा कि अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अफगानिस्तान को इस मुश्किल स्थिति में छोड़कर देश से चले गए हैं। अल्लाह उन्हें जवाबदेह ठहराएं। अफगानिस्तान में लगभग दो दशकों में सुरक्षा बलों को तैयार करने के लिए अमेरिका और नाटो की ओर से अरबों डॉलर खर्च किए जाने के बावजूद तालिबान ने आश्चर्यजनक रूप से एक हफ्ते में लगभग पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया। कुछ ही दिन पहले एक अमेरिकी सैन्य आकलन ने अनुमान लगाया था कि राजधानी के तालिबान के दबाव में आने में एक महीना लगेगा।

इराक युद्ध के चलते अमेरिका का इस युद्ध से ध्यान भंग

काबुल का तालिबान के नियंत्रण में जाना अमेरिका के सबसे लंबे युद्ध के अंतिम अध्याय का प्रतीक है, जो 11 सितंबर, 2001 को अलकायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन के षड्यंत्र वाले आतंकवादी हमलों के बाद शुरू हुआ था। ओसामा को तब तालिबान सरकार की ओर से आश्रय दिया गया था। एक अमेरिकी नेतृत्व वाले आक्रमण ने तालिबान को सत्ता से उखाड़ फेंका। हालांकि इराक युद्ध के चलते अमेरिका का इस युद्ध से ध्यान भंग हो गया।

तब अमेरिका ने की सेना वापसी की घोषणा

अमेरिका सालों से युद्ध से बाहर निकलने को प्रयासरत है। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में वाशिंगटन ने फरवरी 2020 में तालिबान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जो विद्रोहियों के खिलाफ प्रत्यक्ष सैन्य कार्रवाई को सीमित करता है। इसने तालिबान को अपनी ताकत जुटाने और प्रमुख क्षेत्रों पर कब्जा करने के लिए तेजी से आगे बढ़ने की अनुमति दी। वहीं राष्ट्रपति जो बाइडन ने इस महीने के अंत तक अफगानिस्तान से सभी अमेरिकी सैनिकों की वापसी की अपनी योजना की घोषणा की।

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