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सुविधा देने वाला नहीं सुरक्षा देने वाला हो चालक-पद्मभूषण रत्नसुन्दर सूरीश्वरजी

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हरमुद्दा
रतलाम,16 अप्रैल। राज प्रतिबोधक पद्मभूषण आचार्य विजय रत्नसुन्दर सूरीश्वरजी म. सा.ने कहा कि चालक ऐसा होना चाहिए जो सुविधा देने से अधिक सुरक्षा देने वाला हो। हम खुद हो, परिवार हो, समाज हो अथवा देश सभी स्तरों का भविष्य सुरक्षित हाथों में होना चाहिए। हमारे मन मे विचार कई आते है,लेकिन वे फलीभूत नही होते। विचार को आचार में परिवर्तित करने के लिए प्लानिंग, शुरुआत, साहस, सहनशीलता और परिणाम मिलना जरूरी है।
आचार्यश्री सैलाना वालो की हवेली, मोहन टॉकीज में 11 दिवसीय प्रवचनमाला को आठवें दिन “विचार से आचार की ओर” विषय पर संबोधित कर रहे थे।
अच्छे विचारों को आचार में उतारें
श्री देवसुर तपागच्छ चारथुई जैन श्रीसंघ, गुजराती उपाश्रय एवं श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी जैन श्वेताम्बर पेढ़ी द्वारा आयोजित प्रवचनमाला में आचार्यश्री ने वर्तमान परिस्थितियों पर कटाक्ष करते हुए अच्छे विचारों को आचार में लाने की प्रेरणा दी। उन्होंने कहा कि गंदी बास्केट में पानी भरकर लाओ, तो पानी नहीं ला सकते , मगर बास्केट की गंदगी जरूर साफ हो जाती है ।
बनाए धर्म की कार्य योजना
विचार को आचरण में परिवर्तित करने के लिए सबसे पहले प्लानिंग होनी चाहिए। जिस प्रकार प्लाट पर मकान बनाने के लिए पहले डिज़ाइन बनती है, फिर यथार्थ में कार्य होता है । उसी प्रकार हर कार्य की प्लानिंग होती है। जब हम हर क्षेत्र में प्रवेश के पहले प्लानिंग करते है, तो धर्म क्षेत्र में क्यों नही करते। यह शाश्वत सत्य है कि बीजारोपण होगा तो फसल होगी, इसलिए बीज अवश्य डाले।
धर्म से सन्तुष्टि कभी नहीं
उन्होंने कहा प्लानिंग के बाद शुरुआत करना महत्वपूर्ण है। धर्म क्षेत्र में कभी संतुष्ट ना हो, हमेशा आगे बढ़ते रहे। आज लोगो को धर्म क्षेत्र में जोखिम लगती है, जबकि संसार क्षेत्र में अधिक जोखिम है। यही कारण है कि आज शिक्षित और अमीर लोगो की दीक्षा ज्यादा हो रही है।
सहन करके आगे बढ़ें धर्मपथ पर
आचार्यश्री ने कहा कि प्लानिंग और शुरुआत के साथ दूसरे के विचार को नकारने का साहस होना जरूरी है। धर्म क्रिया करने से रोकने वाले, डराने वाले बहुत मिलते है। क्षेत्र जितना बड़ा होगा, उसमे साहस उतना ज्यादा चाहिए। इसी प्रकार सहन करने की शक्ति महत्वपूर्ण होती है। धर्म के क्षेत्र में असुविधा तो होगी,लेकिन सहन किए बिना शुद्धि नहीं आ सकती है। पत्थर भी चोट खाकर ही प्रतिमा बनता है, मिट्टी भी सहन कर ही मटकी बनती है और धर्म क्षेत्र में सहन करके ही आगे बढ़ सकते है । गलत कमजोर और नकारात्मक राय देने वाले को नकार देंगे, तो धर्म सत्ता में उच्च स्तर पर पहुँचोगे।
तो जीत तय
आचार्य श्री ने कहा विचार को आचार बनाने के लिए जितना अर्थात परिणाम पाए बिना मंजिल नहीं मिलती। प्लानिंग, शुरुआत, साहस और सहन करने की चार स्टेप अगर ईमानदारी से पूर्ण हो, तो जीत निश्चित मिलती है। ये चारों स्टेप है प्रक्रिया और पांचवी होती है परिणाम। यदि व्यक्ति की क्रिया-प्रक्रिया सही दिशा में हो तो, परिणाम उच्च मिलना तय है।
बुधवार को “दुख का स्वीकार है यदि” पर प्रवचन
17 अप्रैल को प्रवचनमाला का विषय दुख का स्वीकार है यदि, रहेगा। आचार्यश्री की निश्रा में बुधवार को भगवान महावीर का जन्म कल्याणक महोत्सव मनने के कारण प्रवचन का आयोजन जैन स्कूल पर होगा। संचालन मुकेश जैन ने किया।

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