साहित्यकार डॉ. प्रकाश उपाध्याय की रचना : लौ कितनी भी नन्हीं हो, वो आलोक लुटाएगी ही

 डॉ. प्रकाश उपाध्याय

लौ कितनी भी नन्हीं हो, वो आलोक लुटाएगी ही
जब तक दम में दम है , तिमिर तो मिटाएगी ही

इस अमराई को रहने दो, आरियाँ रख दो एक ओर
जबभी वसंत आएगा,कोयल तो गीत सुनाएगी ही

नये घरों की दीवारों में, कहीं तो खिड़कियाँ रखो
जब भी चाहेंगी आना, ठंडी हवाएँ तो आएँगी ही

जितने चाहो फूल खिला लो,जीवन फुलवारी में
ये उमर निगोड़ी कहाँ रुकेगी, यह तो जाएगी ही

रहे भरोसा इक दिन जरूर,धरा की प्यास बुझेगी
अम्बर से मदमस्त-घटाएँ, जल तो बरसाएँगी  ही

जीवन- गाथा के कई कथानक, सबके पात्र जुदा
अनुभव की पीर बेजुबाँ सही, कुछ तो गाएगी ही

 डॉ. प्रकाश उपाध्याय

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