मुद्दे की बात : बारिश ने धूम मचाई, डेंगू की हो गई धुलाई, नालियों की गंदगी घरों में समाई

🔲 हेमंत भट्ट

शनिवार देर रात आराम से सोए शहर और शहर के जिम्मेदारों को पता नहीं था कि रविवार सुबह इंद्र देवता की मेहरबानी भयंकर रूप लेकर धूम मचाएगी। कुछ घंटे में हुई 6.29 इंच बारिश में एक बात अच्छी रही कि डेंगू की धुलाई हो गई। लेकिन नगर सरकार के जिम्मेदारों की लापरवाही की गंदगी लोगों के घरों में समा गई। डेंगू की बीमारी से बचने वाले गंदगी के कीटाणुओं से बीमार होंगे। जिला प्रशासन इस स्थिति से निपटने के लिए जरा भी तैयार नहीं था। धीरे-धीरे पानी की रफ्तार कम होती गई, पानी बहता गया और स्थिति धीरे-धीरे सामान्य होती गई। जिम्मेदार फोन उठाने तक को तैयार नहीं थे। तो आखिर आम जन समस्या बताएं तो किसे?

मुद्दे की बात यह है कि नगर सरकार के जिम्मेदारों की लापरवाही का खामियाजा आज रतलाम शहर के हजारों परिवारों ने भुगता। जिम्मेदार अधिकारी अपने दलबल से शहर की सफाई कराने में नाकाम और नाकारा सिद्ध हो रहे हैं। नतीजतन नालियां गंदगी से पटी पड़ी हुई है। सफाई व्यवस्था ठप है। बड़ी-बड़ी डींगे हांकते हैं कि कचरा संग्रहण की गाड़ी आती है। उसमें कचरा डाले। सड़क पर ना फेंके। मगर हकीकत से कोसों दूर है। जिम्मेदारों को यह पता है या नहीं यह तो वही उनकी आत्मा से पूछें मगर यह बात सच है कि कचरा वाहन सप्ताह में 3 या 4 दिन ही आता है। साथ ही कोई समय की पाबंदी भी नहीं है। जब कर्मचारियों की इच्छा होती है। मुंह उठाकर चले आते हैं जबकि इंदौर में कचरा गाड़ी कचरा संग्रहण के लिए घर के सामने तय समय पर खड़ी होती है। यदि रात 9 बजे का है तो कचरा संग्रहण गाड़ी ठीक 9 बजे घर के सामने आ जाएगी, हर दिन। गाड़ी से घड़ी मिला सकते हैं। मगर रतलाम में कचरा संग्रहण करने वाले वाहन चालकों के तो तेवर ही सातवें आसमान पर रहते हैं। सीधे मुंह बात ही नहीं करते। कॉलोनी और मोहल्लों में आमजन कचरे का डिब्बा लेकर दौड़ते हैं लेकिन गाड़ी वाले रुकते नहीं। अक्सर तो गाड़ी में इतना कचरा रहता है कि उसमें कचरा डालने तक की जगह नहीं होती है। कचरा गिराते हुए चले जाते हैं।
हां एक बात जरूर है कि शहर के दुकानदारों के वहां पर जरूर यह खड़े रहते हैं और कचरा संग्रहण करते हैं क्योंकि वहां से इनको कुछ न कुछ मिलता रहता है। चाय नाश्ते वाली दुकानों पर तो इनका फिक्स है। सुबह या शाम को इनको नाश्ता मिल जाता है। चाय मिल जाती है। लगता है नगर निगम प्रशासक और कलेक्टर इस बात से अनभिज्ञ हैं कि शहर में सफाई व्यवस्था बिल्कुल ध्वस्त है।

तब आते हैं वे भी झाड़ू लगाने

यही आलम शहर में झाड़ू लगाने का भी है। जब मन में आती है कर्मचारी आते हैं वरना नहीं आते। झाड़ू लगाने भी तब आते जब शहरवासी अपने घर के सामने सफाई कर देते हैं। कचरा समेटकर घरवाले डस्टबिन में डाल देते हैं।

असर होता है बस गांधी दर्शन का

यह कई बार बता चुके मगर जिम्मेदारों की कान में जूं तक नहीं रेंगती या यूं कहें कि यह इतनी मोटी चमड़ी के हो गए हैं कि इन्हें किसी भी बात का कोई असर नहीं होता। बस असर होता है तो गांधी दर्शन का। यदि नगर निगम का स्वास्थ्य हमला अपना कार्य मुस्तैदी से और तत्परता से करता तो रविवार को शहर की जो हालात हुई, वह नहीं होती। नाले और नालियों का पानी निचली बस्तियों के घरों में नहीं घुसता, नहीं वे परेशान होते। घरों में समाए गंदगी को साफ करते करते परिजनों के हाथ पैर दुखने लग गए क्योंकि ठंडे पानी में ज्यादा देर रहने से यह समस्याएं आती ही है। साथ ही गंदगी के कीटाणु भी शरीर में प्रवेश कर गए।

तो कैसे रहेंगे शहरवासी स्वस्थ

इन सब हालातों के मद्देनजर शहर के लोग कैसे स्वस्थ रह सकेंगे? भले ही आमजन स्वच्छता की ओर ध्यान देते हैं लेकिन जिम्मेदार किए कराए पर गंदगी फेरने में देर नहीं करता।

हकीकत की जमीन पर आंकड़े कुछ और ही

शहरवासी और स्वास्थ्य विभाग का अमला काफी समय से इस इंतजार में था कि तेज बारिश हो जाए और डेंगू का मंडरा रहा खतरा धूल जाए और वही हुआ। यूं तो देखा जाए तो स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों में डेंगू के मरीज की संख्या 300 ही पार हुई है, लेकिन हकीकत की जमीन पर हर अस्पताल और घरों में डेंगू और वायरल फीवर के मरीजों की तादाद हजारों में है।

दवाई छिड़काव के नाम पर नौटंकी

जहां स्वास्थ्य विभाग जोरदार बारिश के बाद खुश खुशहाल है वहीं नगर निगम बेहाल है जोकि वह जो डेंगू को नेस्तनाबूद करने में कमर कस कर मैदान में उतर गए थे और जो बजट पास हो गया था, उसमें कटौती संभव है। हालांकि यूं भी दवाई छिड़काव के नाम पर नौटंकी ही की जा रही। इसका उदाहरण तो डेंगू पर प्रहार अभियान में ही नजर आ गया था। कुछ दूर चलते ही अभियान संपन्न हो गया था और वर्तमान में भी शहर में मुख्य मार्ग पर ही धुंआ किया जा रहा है। कालोनियों और मोहल्लों की गलियों में धुंआ करने वाला वाहन नहीं पहुंच रहा है, ऐसा लोगों का कहना है। टंकी से दवाई छिड़कने का क्रम तो अभी कहीं देखने में नजर नहीं आ रहा है।
खैर, नाले नालियों जो पानी लोगों के घरों में घुसा है, उसका खामियाजा तो उन लोगों को ही भुगतना है

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