सौम्य, शांत और फिर सुंदर
सौम्य
शांत
और
फिर सुंदर
कुदरत
दहकती है भी है तो
तुषार के अंदाज में
प्रभुता
आकर्षक नहीं
सम्मोहक होती है
विशेष जहां कहीं भी
उच्चारित होता है
शेष का अवसान होता है
नयन
सूर्योदय सी स्वर्णिम
और
आभावान
ज्योति से स्वर्ण हो उठtते हैं
तब जब
सूरज
अंदर से उगता हो
और अंदर ही विस्तार लेता हो
प्रकाश के कितने रूप
सुंदर सुहावन
सोम और ज्वाजल्यमान मार्तंड
संयुक्त हो जाए
तब खिलता है
अनिंध्य
उपास्य सौदर्य
अप्रतिम अद्भुत जीवन उन्नायक
वन्दनीय और आदरणीय सौंदर्य
▪त्रिभुवनेश भारद्वाज