ऐसी प्रेरणा मिली स्वच्छता की : शहर की सफाई के लिए जिम्मेदार जेब में हाथ डाले घूमते रहे और देश के भविष्य विद्यार्थी कचरा बीनते रहे
🔲 नगर निगम का सफाई अमला रहा नदारद
🔲 बैग उठाकर स्कूल जाने वाले विद्यार्थियों के हाथों में थे कचरा बीनने वाले झोले
🔲 आजादी का अमृत महोत्सव पढ़ने वाले बच्चों को दे गया कचरा बीनने की सीख
🔲 जनप्रतिनिधियों ने रखा इस आयोजन से अपने आप को दूर
हरमुद्दा
रतलाम, 25 दिसंबर। अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन और स्वच्छता प्रेरणा महोत्सव पर शहर में स्कूली बच्चों को कचरा बीनने का प्रशिक्षण दिया गया, जिन हाथों में स्कूल के बैग होते हैं, आज वह कचरे के झोले हाथों में थामे हुए दौड़ रहे थे रतलाम की सड़कों पर कचरा बीनने के लिए। शहर की सफाई व्यवस्था के लिए जिम्मेदार नगर निगम का अमला नदारद था। काम करवाने वाले अधिकारी के हाथ जेब में से नहीं निकल रहे थे। खास बात यह भी रही कि जनप्रतिनिधियों ने इस आयोजन से अपने आप को दूर रखा। इतना ही नहीं कुछ दिन पहले गरिमामय आयोजन में सफाई के लिए बनाए गए ब्रांड एंबेसडर भी स्वच्छता प्रेरणा महोत्सव से किनारा कर गए।
शनिवार को सुबह स्वच्छता प्रेरणा महोत्सव के तहत नगर निगम द्वारा प्लॉग रन का आयोजन किया गया। तय कार्यक्रम के अनुसार प्लॉग रन में जनप्रतिनिधि, गणमान्य नागरिक, कर्मचारी, स्कूल कॉलेज के विद्यार्थी शिक्षक-शिक्षिकाएं व आमजन सम्मिलित होना थे। मगर में जिम्मेदारी का निर्वाह किया तो केवल स्कूल कॉलेज जाने वाले ने। उनके हाथों में ही कचरा बीनने के झोले थे। हां, भाजयुमो के नव मनोनीत जिला अध्यक्ष विप्लव जैन, उनकी टीम के साथ झांकी बाजी के लिए जरूर शामिल हुए लेकिन कचरा बीनने के लिए नहीं। क्योंकि उनके हाथों में कचरा बीनने वाले झोले नहीं थे। सफाई के लिए ब्रांड एंबेसडर का तमगा लेकर खुश फहमी पालने वाले भी आयोजन में नहीं थे।
उन्हें दिखाई हरी झंडी
नवीन कलेक्टोरेट पर आईएएस आईपीएस ने हरी झंडी दिखाकर प्लॉग रन को रवाना किया। सभी अधिकारियों ने हैंड ग्लव्स पहने हुए थे लेकिन केवल दिखावे के लिए कचरा बीनने के लिए नहीं। विद्यार्थी दौड़ते दौड़ते ब्लू और ग्रीन झोले में कचरा डाल रहे थे। मतलब पाठक समझ गए होंगे कि उन्होंने गीला कचरा भी उठाया। यहां तक कि नाली से भी कचरा उठाया और झोले में डाला।
वे देते रहे विद्यार्थियों को निर्देश दे रखे कचरा झोले में
जोन प्रभारी स्तर के कर्मचारी विद्यार्थियों को निर्देश देते हुए नजर आए कि यह कचरा उठाओ, वह कचरा उठाओ। इस झोले में डालो, उस झोले में डालो। इस तरह शनिवार को क्रिसमस के अवसर पर बच्चों ने कचरा बीनने और झोले में व्यवस्थित तरीके से रखने का प्रशिक्षण लिया बतौर प्रायोगिक रूप से लिया।
पता नहीं चला क्यों दौड़ रहे हैं बच्चे
प्लॉग रन न्यू कलेक्ट्रेट से फव्वारा चौक, गीता मंदिर रोड, स्टेट बैंक तिराहा, लोकेंद्र भवन रोड, महाराजा सज्जन सिंह प्रतिमा, छतरी पुल मेहंदीकुई बालाजी मंदिर, गुलाब चक्कर होते हुए कालिका माता मंदिर परिसर पहुंचा, जहां पर समापन हुआ।
गीता मंदिर रोड पर एक महिला ने पूछा आखिर यह क्यों जोड़ रहे हैं? उन्हें बताया कि यह स्वच्छता की प्रेरणा देने के लिए दौड़ रहे हैं। हालांकि दौड़ के आगे ऑटो रिक्शा में माइक की व्यवस्था की गई थी लेकिन कोई बोलने वाला नहीं था। इस तरह स्वच्छता प्रेरणा महोत्सव का प्लॉग रन गुमसुम तरीके से 45 मिनट में संपन्न हो गया। आयोजन स्थल से अधिकारी सरकारी चार पहिया वाहनों में सवार होकर निकल गए।
जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय ने दिया फरमान
जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय से शहर के शासकीय व अशासकीय हाई व हायर सेकेंडरी स्कूल के विद्यार्थियों के लिए फरमान निकाला। निर्देश दिए गए कि स्कूल से कम से कम 50 बच्चे और जिम्मेदार शिक्षक शिक्षिकाएं अवश्य शामिल रहे। फरमान जारी करने वाले अधिकारी ही आयोजन में शामिल नहीं थे।
स्कूली विद्यार्थियों को शामिल करने पर सवालिया निशान, राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग लें संज्ञान
शिक्षाविद, चिंतक, समाजसेवी ने बताया कि वाकई में यह मुद्दा काफी गंभीर है। सरकार जहां कचरा बीनने वाले बच्चों को स्कूल भेजने का जतन कर रही है, वही जिम्मेदार अधिकारी स्कूल जाने वाले विद्यार्थियों को कचरा बीनने का प्रशिक्षण दे रहे हैं। यह स्थिति ठीक नहीं है। ऐसी सोच रखने वाले जिम्मेदार अधिकारियों ने आयोजन पर सवालिया निशान लगा दिए हैं। स्कूली विद्यार्थियों को सफाई के प्रति जागरूक ही करना था तो उन्हें अपने स्कूल परिसर में स्वच्छता का सबक सिखाते। वहां पर स्वच्छता रखने की सीख देते। यह बेहतर रहता। मुद्दे की बात तो यह है कि देश के भविष्य सड़कों पर कचरा बीनते देख किन मां बाप का सर गर्व से ऊंचा हुआ होगा? सरकारी स्कूलों में ऐसे ही माता-पिता बच्चों को भेजते हैं जिनका आर्थिक स्तर कुछ कमजोर है। वे अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल में पढ़ने के लिए भेजते हैं अथवा कचरा बीनने का प्रशिक्षण लेने के लिए। इस मामले को राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग को संज्ञान में लेना चाहिए। जबकि यह प्रशिक्षण शहर की सफाई करने वालों को दिया जाना चाहिए था कि उन्हें कैसे झाड़ू लगाना है। कैसे कचरा उठाना है और भरना है, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ क्योंकि जिन लोगों की जिम्मेदारी है शहर की सफाई रखने की, वही हर सुबह कचरा नालियों में या इधर-उधर उड़ा कर चले जाते हैं। या फिर कचरे का ढेर करके आग लगा देते हैं।