तुम नहीं रहीं – ये कटु सत्य धार धार रुलाएगा

।। स्वर साम्राज्ञी लताजी के महाप्रयाण पर विशेष ।।

 डॉ. प्रकाश उपाध्याय

तुम नहीं रहीं – ये कटु सत्य धार धार रुलाएगा
संगीत जगत का ये महाशून्य कैसे भर पाएगा

मन को किस सूरत समझाएँ , और सांत्वना  दें
तुमको अब कभी कोई, सदेह देख नहीं पाएगा

जब-जब भी कान सुनेंगे, तुम्हारे मीठे सरस गीत
एक हूक सी उठेगी,अश्कों में दर्द छलक आएगा

यूँ तो होंगे मौसिकी की मेहफिल में,कई फनकार
तुम  जैसा  माधुर्य और जादू , कौन  बिखराएगा

काल ने विधिवश यद्यपि , अपना काम किया है
पर लगता है जाते जाते, खुद वो भी पछताएगा

जाओ स्वर साम्राज्ञी ! ये युग अंतिम विदा देता है
हर गीत तुम्हारे होने का, निश दिन बोध कराएगा

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