अत्यंत गौरवशाली रहा रतलाम का वैभव : ऐतिहासिक, धार्मिक, सामाजिक और प्राकृतिक रूप से है समृद्ध

 नरेंद्र गौड़

सैकड़ों साल पहले से रतलाम का वैभव अत्यंत गौरवशाली रहा है धार्मिक प्राकृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से समृद्ध है। सामाजिक, धार्मिक सांस्कृतिक, सांप्रदायिक सद्भावना की मिसाल मिलती है।महाराजा रतनसिंह राठौर ने रतलाम राज्य की स्थापना 1652 में की थी। वह अपने दौर के अत्यंत शूरवीर राजा थे। रतलाम राज्य में लम्बे समय तक उनके ही राठौर वंश का शासन रहा। सैलाना और सीतामउ के राजा भी रतनसिंह जी के ही निकट वंशज थे। इन सूर्यवंशी राठौर राजाओं की वंशबेल मुख्यत; राजस्थान के राजघराने से थी। महाराजा रतनसिंह के बारे में कहा जाता है कि उनकी 12 पत्नियां थी जिनमें से एक महारानी सुखरूपदे कवंर शेखावत ने 1658 में सती होने का फैसला किया था। मुगल सम्राट शाहजहां ने रतनसिंह को उनकी शूवीरता के कारण रतलाम रियासत बतौर उपहार में प्रदान की थी।

शाहजहां की बचाई थी जान

कहा जाता है कि शाहजहां को हाथियों की लडाई देखने का बड़ा शौक था। एक बार उसने अपने दरबार में हाथियों की लड़ाई का ऐसा ही भव्य आयोजन किया। इस लडाई को देखने के लए उसने राजपुताने के अनेक राजाओं को आमंत्रित किया। राजा रतनसिंह ने इस मौके पर राठौर राजाओं का प्रतिनिधित्व किया था। लडाई के दौरान एक हाथी पागल हो गया और शाहजहां की तरफ सूंड उठाए दौड पड़ा। तभी रतनसिंह ने बहादुरी का परिचय देते हुए तलवार के वार से हाथी का काम तमाम कर दिया। इस बहादुरी से सम्राट शाहजहां अत्यंत प्रभावित हुआ और उसने रतनसिंह को रतलाम रियासत उपहार में प्रदान कर दी। महाराजा रतनसिंह ने इसके पूर्व भी अनेक बार अपनी बहादुरी का प्रदर्शन कर शाहजहां का दिल जीत लिया था। उन्होंने खुरासान तथा कांधार की लडाई में भी शाहजहां मदद की थी।

उत्तराधिकार युध्द में लिया भाग

दिल्ली तख्त को लेकर हुए उत्तराधिकार युध्द में भी महाराजा रतनसिंह ने शाहजहां का साथ दिया था। वह शाहजहां के सबसे चहेते बेटे दारा शिकोह की तरफ से इस युध्द में शामिल हुण् थे। शाहजहां के चार पुत्र औरंगजेब, दारा शिकोह, शाह शुजा, मुराद और तीन पुत्रियां थी। शाहजहां बूढा हो चुका था और ऐसे में उसका उत्तराधिकारी कौन होगा इस बात को लेकर उसके चारो बेटों में लडाई छिड गई। इस युध्द में महाराजा रतनसिंह ने शाहजहां की तरफ से मोर्चा सम्भाला लेकिन शाहजहां को पराजय का सामना करना पडा और औरंगजेब ने उसे आगरा के लालकिले में नजरबंद कर दिया। इस लडाई में महाराजा रतनसिंह भी वीरगति को प्राप्त हुए। इस तरह 21 जुलाई 1658 को  दिल्ली के सिंहासन पर औरंगजेब का आधिपत्य हो गया और उसने उन राजे रजवाड़ों से बदला लेना शुरू कर दिया जिन्होने उसके खिलाफ लडाई में भाग लिया था। इस तरह रतलाम रियासत पर भी मुगलों ने अघिकार कर लिया।

परमार शासकों ने कराई उपस्थिति दर्ज

इतिहास गवाह है कि 10-11 वीं शताब्दी में रतलाम सहित समूचे मालवा पर धार के परमार राजाओं का शासन था। भगवान शिव के भक्त इन राजाओं ने भोपाल के निकट भोजपुर में शिवमंदिर बनवाया। उज्जैन, देवास, इंदौर में भी अनेक मंदिर परमार कालीन हैं। रतलाम के पास गढखंकई माता मंदिर के निकट माही नदी के किनारे प्राचीन शिव मंदिर की पुरानी और खंडित मूर्तियां आज भी बिखरी देखी जा सकती हैं।

दिल्ली दरबार में मानसम्मान

रतलाम के महाराजा रतनसिंह का दिल्ली के मुगल दरबार में बड़ा मानसम्मान हुआ करता था। वे अपने दौर के महान शूरवीर शासक थे जिनकी ताकत और बहादुरी का लोहा मुगल शासक भी मानते थे। शाहजहां के दरबार में रतनसिंह को महाराजाधिराज, श्री हुजूर और महाराजा बहादुर की उपाधियां प्रदान की गई थी। शाहजहां ने उन्हें चौर यानी याक की पूंछ, मोर्चल यानी मोर की खाल आदि प्रदान कर सम्मानित किया था। कहा जाता है कि मुगलों व्दारा रतलाम रियासत छीन लिए जाने के बाद औरंगजेब ने महाराजा रतनसिंह के पुत्र को यह रियासत सौप दी थी। शाहजहां ने अपने शासन के दिनों रतलाम के सैयद परिवार के मुखिया को शहर काजी नियुक्त करने के साथ ही और सरवन की जागीर भी दी थी। इसी शहर काजी की मध्यस्थता से औरंगजेब ने महाराजा रतनसिंह के बेटे को रतलाम रियासत का उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया।

सोलह राजाओं ने किया रतलाम पर शासन

रतलाम राज्य पर सोलह राजाओं का शासन रहा था। सर्वप्रथम महाराजा रतनसिंह ने 1652 से 1658 तक, उनके बाद महाराजा रामसिंह ने 1658 से 1682 तक, तीसरे राजा शिवसिंह ने 1682 से 1684 तक, चौथे महाराजा केशवदास ने 1684, पांचवें महाराजा चेतसाल ने 1684 से 1709 तक,  छठे महाराजा केएसएच आरआई सिंह ने 1709 से 1716 तक, सातवें महाराजा मानसिंह ने 1717 से 1743 तक, आठवें महाराजा प्रथ्वीसिंह ने 1743 से 1773 तक नौवें महाराजा पदमसिंह ने 1773 से 1800 तक दसवें महाराजा प्रभातसिंह ने 1800 से 1824 तक, ग्यारहवें महाराजा बलवंतसिंह ने 1824 से 1857 तक बारहवें महाराजा भैरोनसिंहजी ने 1857 से 1864 तक, तेरहवें महाराजा रणजीत सिंह ने 1864 से 1893 तक,चौदहवें महाराजा सज्जनसिंह ने 1893 से 1947 तक लेकिन इनके बाद पंद्रहवें महाराजा लोकेंद्रसिंह बहादुर 1947 से 1991 तक, सोलहवें महाराजा रणबीर सिंह 1991 से 2011 तक आजाद भारत में नाममात्र के राजा रहे।

जून 1948 को बनाया गया जिला       

रतलाम को जून 1948 मेे जिला घोषित किया गया और जनवरी 1949 में इस जिले को पुनर्गठित किया गया। यह रतलाम, जावरा, सैलाना, पिपलोदा के पूर्व रियासती क्षेत्रों को अपने में समाहित करता है। देवास सीनियर की रिंगनोद तहसील, देवास जूनियर की आलोट तहसील और ग्वालियर राज्य की मंदसौर तहसील के कुछ हिस्से, धार राज्य के कुछ गांव और पिपलोदा के भी कुछ हिस्सों को रतलाम में शामिल किया गया। 

कैप्टन बोरथविक का योगदान

अंग्रेजों के शासनकाल 1829 में कैप्टन बोरथविक ने रतलाम में न्यू टाउन की स्थापना की थी, इसके अलावा अनेक चौड़ी सड़कों का भी निर्माण कराया।

वाणिज्यिक चेहरों में थी गिनती

मध्यभारत प्रांत के दिनों रतलाम की गिनती देश के प्रमुख वाणिज्यिक शहरों में की जाती थी। उन दिनों इस क्षेत्र में अफीम, तम्बाकू और नमक के सौदागरों का तांता लगा रहता था। यदि सम्पन्नता की बात की जाए तो उन दिनों रतलाम जैसा धनी देश का कोई शहर नहीं था। रेल लाइन डलने के बाद यह शहर और उन्नति करता चला गया। कालका माता मंदिर, बिल्पकेश्वर, नागेश्वर मंदिर, जावरा की हुसैन टेकरी, सैलाना का कैक्टस गार्डन और केदारेश्वर अतीतकाल से ही धार्मिक तथा पर्यटन स्थल रहे हैं।

 लेखक की अपनी जानकारी के अनुसार

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