फागुन गीत : बज रही परिवेश में भी एक मोहक धुन, फागुन सुन, ओ फागुन सुन
आशीष दशोत्तर
इक नई चादर
मधुर संबंध की फिर बुन।
फागुन सुन, ओ फागुन सुन।
टहनियों पर फूल दहके गुफ्तगू करते,
प्रेम रंगों की नई उम्मीद इक भरते।
ऐ मनुज तू भी कभी
इन टेसुओं को चुन।
फागुन सुन, ओ फागुन सुन।
रंग भी हम तो यहां पर बांट लेते हैं ,
आदमी को आदमी से छांट देते हैं।
दूर कर दे तू हमारा
बस यही अवगुन।
फागुन सुन, ओ फागुन सुन ।
आपसी संबंध कर दे कुछ यहां ऐसे,
जिन को छूकर फागुनी आभास हो जैसे।
भा रही जैसे ह्रदय को
मौसमी गुनगुन।
फागुन सुन, ओ फागुन सुन ।
ज़िन्दगी का गीत अबके तुम यहां गाओ,
दूरियां मन की मिटाकर पास कुछ लाओ।
बज रही परिवेश में भी
एक मोहक धुन।
फागुन सुन, ओ फागुन सुन।