उत्सव और उमंग से भागवत कथा में गूंजी श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की बधाइयां

हरमुद्दा
रतलाम, 23 मई।अखंड ज्ञान आश्रम में श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ में भगवान श्री कृष्ण जन्मोत्सव की बधाईयाँ गुजं उठी। महामंडलेश्वर स्वामी श्री चिदम्बरानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा भगवान का जन्म और कर्म दिव्य है। वे हमारे आराध्य और आदर्श है। ये परम सौभाग्य कि इस घोर कलियुग में लोग स्वत:स्फूर्त होकर धर्म और भक्तिरस से अपने जीवन को सवार रहे है। ये दौर बदलाव का है जिसमें लोगों ये समझ में आ रहा है कि जीवन में सुख, सुकून और संतोष तो धर्म संयुक्त आचरण में ही है। इस सत्य को समझाने का कार्य कथा और सत्संग से बढ़ा ही सरल, सहज और सुलभ हो रहा है।
ब्रह्मलीन पूज्य स्वामी श्री ज्ञानानन्द जी महाराज के 28 वे पुण्य स्मृति महोत्सव की अध्यक्षता महामंडलेश्वर स्वामी श्री स्वरूपानन्द जी महाराज ने की। चौथे सत्र के आरंभ में यजमान वीणा अशोक गोयल परिवार ने पोथी पूजन व सहसंचालक स्वामी श्री देवस्वरूपानन्द आदि ने स्वागत किया।
आश्रम परिसर बन गया गोकुलधामScreenshot_2019-05-22-22-55-48-728_com.yahoo.mobile.client.android.mail
श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर आश्रम परिसर गोकुलधाम बन गया। उत्सव, उत्साह और उमंग के वातावरण में भक्तों ने नंद के आनंद भयो…भजन पर झूमते-नाचते प्रभु के प्राकट्य का उत्सव मनाया।
मौनी नहीं मुखर बने
उन्होंने कहा कि धर्म की हानि होने पर भगवान अवतार लेते हैं लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में हमें भी अपना मौन तोड़कर मुखर होना पड़ेगा। जहां भी अन्याय, अत्याचार और अनीति होती है, वहां यह कहने की जगह – हमें क्या करना है? इस प्रवृत्ति को त्यागना होगा। हमारी चुप्पी ने ही अधर्म, अन्याय और अत्याचार का ग्राफ बढ़ाया है। समाज को जागरूक करने का कार्य कथाए करती है।
जरूरी मन का मेंटेनेंस
स्वामी जी ने कहा का जब तक मन को सही मार्गदर्शन नहीं मिलता तब तक वह हमें भटकाता है। मन का मेंटेनेंस करने का कार्य भगवान की कथा और सत्संग करते हैं। इसलिए प्रयत्नशील होकर इनका लाभ लेना चाहिए। आज समाज में हो यह रहा है कि लोग किसी बात को समझने की जगह उलझते ज्यादा है। जिससे विवाद होते है। यदि मनमानी छोड़कर धर्म, शास्त्र और गुरु का आश्रय ले तो कल्याण होने में देर नहीं हो सकती है।
जीवन में उच्च विचार होना जरूरी
आपने कहा कि हमारा लक्ष्य उच्च जीवन में उच्च विचार होना चाहिए। जब तक लक्ष्य बढ़ा नहीं होगा, तब तक प्रयास भी नहीं होगा। सामूहिक प्रयासों से ही इस देश को फिर से विश्वगुरु बनाया जा सकेगा। दुनिया हमारे धर्म और संस्कृति के प्रति निष्ठा को देखकर चकित है। आज हमारा धर्म मन्दिरों तक सीमित नहीं है। हम तमाम विपरीत परिस्थिति के बाद भी धर्म और सेवा के संस्कारों को नहीं छोड़ते! यही तो सनातन संस्कृति और भारत का गौरव है।
मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिए धन का सदुपयोग करें
स्वामीजी ने कहा कि सभी को खूब मेहनत करकर धन कमाना चाहिये। नीतिपूर्वक किए गए धनोपार्जन से सुख और समृधि का सीधा संबंध है। धर्म को आगे रखक़र धन कमाओ और सद्कार्य में उदारता से खर्च करों। इससे लक्ष्मीजी खूब प्रसन्न होती है। जो व्यक्ति अपने अर्थ का उपयोग सद्कार्य में करता है, उसका जीवन व्यर्थ नहीं जाता। मानवता और मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिए धन का सदुपयोग होना चाहिए।
सुख दुख का गणित हमारे आचार-विचार पर निर्भर
आपने कहा कि लंकापति के पास सोने की लंका होने के बाद वह सुखी नहीं था और शबरी के पास झोपडी होने के बाद भी उन्हें कोई दुखी नहीं कर पाया! इसके पीछे उनका दृष्टिकोण था। सुख दुख का गणित हमारे आचार-विचार पर निर्भर करता है। भोग विलास जीवन को तबाही की ओर जबकि भक्तिभाव जीवन को सफल बनाते है। अब यह हमारे हाथ की बात है कि हम जीवन को कैसे जीना चाहते है। विवेक का जागरण बिना सत्संग के नहीं होता है। अपने कल्याण की कामना रखने वालो को सावधान होकर सत्संग को सुनने के साथ उसे आचरण में लाना चाहिए।

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